भविष्य में मजदूरों पर राज करेंगी मशीनें!

जी, हां! यह हॉलीवुड की किसी साइंस फि क्शन की कपोल कल्पित पटकथा का हिस्सा नहीं है बल्कि एक दिन-दहाड़े घटित होने जा रही हकीकत है। जिसके अनुमान का ही बल्कि अस्तित्व का भी समूचा नक्शा विश्व आर्थिक मंच द्वारा तैयार कर लिया गया है। गौरतलब है कि विश्व आर्थिक मंच या डब्ल्यूईएफ  हर साल जिनेवा के निकट दावोस में होने वाली रईसों, नेताओं और कारोबारियों की एक सालाना बैठक है। लेकिन इस मंच को सिर्फ  सालाना सभा के लिये ही नहीं जाना जाता है, बल्कि इसकी सालाना बैठकों का पूरी दुनिया को इसलिए भी तत्परता से इंतजार रहता है क्योंकि इस बैठक में हर साल तकनीक, बाजार, धन और धनार्जन के मनोविज्ञान पर बेहतरीन शोध अध्ययन भी पेश किये जाते हैं। पिछले साल विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) द्वारा मानव और मशीनों द्वारा किये जा रहे श्रम पर एक अध्ययन पेश किया गया था, जिसमें कई चौंकाने वाले निष्कर्ष थे। इस अध्ययन के मुताबिक साल 2025 तक रोबोट दुनिया में हर साल सम्पन्न होने वाले काम का 52 प्रतिशत खुद कर रहे होंगे और इंसान के हिस्से उससे कम 48 फीसदी काम ही होगा। कहने का मतलब आज से 7 साल बाद मशीनें अपने मौजूदा काम के मुकाबले 100 प्रतिशत ज्यादा काम कर रही होंगी और इस तरह वे दुनिया के कामकाज को इंसानों से कहीं ज्यादा अपने हाथ में ले लेंगे। जो लोग इस अनुमान को अभी तक कोरी कल्पना समझते हों, वे जरा अपने इर्द-गिर्द नजरें दौड़ाकर देखें और अंदाजा लगाएं कि पिछले एक दशक में हम इंसानों के हाथों से मशीनों ने कितना काम छीन लिया है। इसी से अंदाजा हो जाएगा कि यह अनुमान कितना सटीक है या महज डराने का धौलधप्पा है। 21वीं सदी के इस आधुनिक युग में हम किस कदर तकनीक के नाम पर मशीनों के गुलाम होते जा रहे हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज की तारीख में मजदूरों की सबसे बड़ी प्रतिद्वंदी मशीनें हैं न कि दूसरे मजदूर। शायद मशीनों के निर्जीव होने के कारण मजदूर आमतौर पर मशीनों से न तो उस तरह से ईर्ष्या कर पाते हैं, जिस तरह कोई एक मजदूर किसी दूसरे मजदूर से करता है और न ही उसका डर उन्हें उस मनोवैज्ञानिक स्तर पर सताता है, जैसे किसी मजदूर से कोई दूसरा मजदूर असुरक्षा की भावना महसूस करता है। यही कारण है कि मशीनें, मजदूरों के हाथों से सरेआम काम छीनती जा रही हैं, लेकिन मजदूर न तो कुछ कर रहे हैं और न ही कुछ करने की सोच रहे हैं। क्योंकि हकीकत तो यह है कि उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा है कि मशीनों के साथ कोई कैसे मुकाबला कर सकता है? जबकि हकीकत यही है कि आज की तारीख में मशीनें ही मजदूरों की अदृश्य प्रतिद्वंदी हैं।मशीनें मजदूरों की आंखों के सामने ही उनके हिस्से का काम छीनती जा रही हैं लेकिन मजदूर या कि कोई भी आम आदमी बेबस है उसे समझ में ही नहीं आ रहा कि वह करे तो क्या करे? विकास की होड़ में नि:संदेह मानव जाति ने हमेशा ही सफ लता की नई-नई बुलंदियों को छुआ है। मशीनों का आविष्कार और उनके जरिये ज्यादा से ज्यादा काम करने में सफ लता हासिल करना भी इंसान की एक महान सफ लता ही रही है। अपनी लगन व मेहनत की बदौलत इंसान ने ऐसी मशीनों को ईजाद किया है, जो आज इंसानों द्वारा महीनों में किये जाने वाले काम को महज कुछ दिनों में और कुछ दिनों  में किये जाने वाले कामों को महज कुछ घंटों में ही निपटा देती हैं। मशीनों के कारण कामकाज के संबंध में दिन और रात का फ र्क मिट गया है। क्योंकि दिन हो या रात जब भी जी चाहे आप मशीन को ऑन कीजिये और वह आपसे बिना कोई सवाल किये काम करना शुरु कर देगी, जो इंसान से संभव नहीं है। मशीन जितनी देर तक ऑन रहेगी बस काम ही काम करेगी बशर्ते वह खराब न हो। इंसान की तरह उसमें काम करते हुए भी काम से कोताही किये जाने की कोई आशंका नहीं है। मशीन जब तक कार्यरत रहती है तभी तक उसके लिए बिजली, डीजल या किसी तरह की ऊर्जा अथवा ईंधन की जरूरत रहती है। एक बार मशीन ने काम करना बंद कर दिया, तो फि र उसकी यह खपत या खुराक भी बंद हो जाती है। कहने का मतलब इंसानों की तरह मशीनों के साथ किसी भी तरह की फि जूलखर्च की कोई आशंका नहीं होती। वर्तमान समय में बड़े कामों के अलावा मशीनें तमाम छोटे-छोटे काम भी करने लगी हैं, जिससे इंसान के हिस्से से बहुत तेजी से काम कम हो रहे हैं। इंसान की मशीनों पर काम के संबंध में किस कदर निर्भरता बढ़ती जा रही है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब तो नाले की सफ ाई जैसे काम की जवाबदेही भी इंसान की जगह जेसीबी मशीन को दे दी गई है। इसी तरह पगमेल मशीन के आ जाने से एक मशीन 10 मजदूरों से ज्यादा हर दिन ईंटें थापने का काम कर रही हैं। सैद्धांतिक तौर पर भले हम कहें कि इससे रोजगार कम नहीं होंगे बल्कि कुछ रोजगारों का रूप बदल जायेगा लेकिन यह बात 100 फीसदी सही नहीं हैं। तमाम मजदूरों से इन तेज-तर्रार आटोमेटिक मशीनों ने रोजगार छीन लिया है। जिस कृषि क्षेत्र को आज के एक दशक पहले तक मशीनों के मामलों में सबसे पिछड़ा क्षेत्र समझा जाता था, आज उसी कृषि क्षेत्र में सबसे ज्यादा मशीनों का दखल हो रहा है। पढ़ाई-लिखाई, लेखा-जोखा और जटिल किस्म के संयोजनों वाले कामों में तो मशीनें पहले से ही मौजूद रही हैं लेकिन समय के साथ यह मौजूदगी न सिर्फ  और ज्यादा बढ़ी है बल्कि दूसरे क्षेत्रों में भी और तेजी से विस्तारित हुई है। विश्व आर्थिक मंच ने रोजमर्रा की जिंदगी के हर क्षेत्र में मशीनों की घुसपैठ का जो आंकलन किया है उसके मुताबिक सन 2025 तक हमारी रोजमर्रा की जिंदगी के दो तिहाई काम मशीनें करने लगेंगी। आज की तारीख में मशीनें सिर्फ  29 प्रतिशत काम कर रही हैं जबकि साल 2025 में सैद्धांतिक तौर पर भी मशीनों द्वारा किये जाने वाले काम का प्रतिशत बढ़कर कुल का 52 फीसदी तक पहुंच जायेगा। जबकि देखा गया है व्यवहारिक मशीनीकरण सैद्धांतिक से कहीं ज्यादा होता है इसलिए अगर अनुमान से भी ज्यादा मशीनें इंसान के हाथों का काम छीन लें तो कोई अतिश्योक्ति न होगी।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर