बहुत जालिम शासक था मुहम्मद बिन तुगलक

‘मेरे राज्य का प्रत्येक वृद्ध मेरे लिए शहंशाह सुल्तान गयासुद्दीन तुलगक (पिता) के स्थान पर है। प्रत्येक युवक बहराम खां (भाई) के स्थान पर और प्रत्येक बालक मेरे पुत्र के स्थान पर है।’ कहने वाला सुल्तान मुहम्मद इब्ने तुगलक शाह यानी मुहम्मद तुगलक, जिसे इतिहास पागल बादशाह के नाम से जानता है, इतना निर्मम और क्रूर हो गया था कि उसके समकालीन इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी का कहना था कि कोई दिन या सप्ताह ऐसा नहीं जाता था, जब उसके महल के दरवाजे पर खून की नदी न बहती हो। मुहम्मद तुगलक दो बातों के लिए दूर-दूर तक मशहूर था, एक तो ऐसा कोई दिन नहीं जाता था जब वह किसी न किसी दरिद्र को खुले हाथ दान देकर अमीर न बना देता हो और दूसरा किसी न किसी को मौत की सज़ा देकर हत्या न कर देता हो। तुगलक के दरबार में आने वाले इतिहासकार यात्री इब्ने बत्तूता  का कहना है, ‘एक दिन मैं घोड़े से दरबार आ रहा था कि महल के दरवाजे पर मेरा घोड़ा भड़क गया। मैंने देखा कि महल के दरवाजे पर एक आदमी की लाश के तीन टुकड़े पड़े हुए थे। लोगों ने मुझे बताया, और बाद में मैंने खुद देखा कि तुगलक जिसे मौत की सज़ा सुनाता था, उसे अपने महल के दरवाजे पर कत्ल करा देता था और उसकी लाश को तीन दिन तक वैसे ही पड़े रहने देता था, ताकि लोग देखें और सबक लें।’
मौत की सज़ा से भी अधिक कष्टदायी होती थी उसकी यातनाएं। वह ऐसी क्रूर यातनाएं देता था कि देखने वालों के रौंगटे खड़े हो जाते थे। इसलिए लोग इन यातनाओं को सहने की बजाय मर जाना बेहतर समझते थे। वह जिस पर भी, जो भी आरोप लगाता, वह उससे यातनाओं द्वारा कबूलवा लेता और फिर मौत की सज़ा देता। इसलिए लोग अपने ऊपर तुगलक द्वारा लगाये गये झूठे आरोपों को भी सहज ही स्वीकार कर लेते। एक बार उसे संदेह हो गया कि उसका सौतेला भाई मसऊद खां उसके विरुद्ध विद्रोह करना चाहता है, जबकि ऐसी कोई बात नहीं थी। उसने मसऊद खां से इस विषय में पूछताछ की। वह उसके द्वारा दी जाने वाली यातनाओं को जानता ही था। अत: उसने यातनाएं भोगने की अपेक्षा यही उचित समझा कि वह अपने ऊपर लगाये गये निराधार और झूठे आरोप को स्वीकार कर ले और उसने यही किया।
तुगलक ने उसे बीच बाज़ार खड़ा कराकर सिर कटवा डाला। फिर नियमानुसार उसकी लाश भी तीन दिन तक वहां वैसी ही पड़ी रही। इसी तरह दो साल पहले व्याभिचार का आरोप लगा  कर तुगलक ने मसऊद खां की मां को, जो सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की बेटी थी, इसी जगह पर पत्थर मरवा-मरवा कर हत्या करा दी थी। उसकी इस क्रूरता का कारण उसकी महत्वाकांक्षी योजनाएं थीं। जहां वह दुनिया का सबसे बड़ा शहंशाह बनना चाहता था, वहीं सबसे बड़ा दानी और न्यायप्रिय भी। इसी महत्वाकांक्षा के वशीभूत होकर वह नए से नए आदेश निकाला करता था। कभी-कभी तो वह एक-एक दिन में सौ-सौ, दो-दो सौ एक साथ फरमान जारी करा दिया करता था। दंड देने में मुहम्मद तुगलक किसी का भी लिहाज़ नहीं करता था, चाहे वह बड़ा से बड़ा अधिकारी हो, मुल्ला, मौलवी या पहुंचा सिद्ध-प्रसिद्ध साधु-सन्त या फकीर, हिन्दू हो या मुसलमान। शेख शिहाबुद्दीन एक बहुत ही बड़े शेख प्रतिष्ठित संत थे, जिनके पास पिछले दोनों सुल्तान कुतुबुद्दीन और गयासुद्दीन आशीर्वाद लेने जाया करते थे।एक बार मुहम्मद तुगलक ने चाहा कि शेख/शहाबुद्दीन उसके दरबार में अधिकारी बन जाएं।  लेकिन शेख ठहरे फकीर आदमी। उन्होंने इस दुनियादारी के झमेले में पड़ने से इन्कार कर दिया। इस पर तुगलक को इतना गुस्सा आया कि उसने एक-दूसरे प्रतिष्ठित संत शेख जियाउद्दीन सिमनानी को आदेश दिया कि वह उनकी दाढ़ी नोच ले। जियाउद्दीन इतने बड़े संत का इस तरह अपमान कैसे कर सकते थे। अत: उन्होंने कह दिया, ‘मैं यह नहीं कर सकता।’ इस पर उसने और क्रोधित होकर दरबारियों को आदेश दिया कि इन दोनों की दाढ़ियां नोच ली जाएं। भयभीत दरबारियों ने दोनों की दाढ़ियां नोच कर अपनी जान बचाई। विद्रोहियों की तो उसने समूहों को पकड़वाकर हज़ारों-हजार की संख्या में हत्याएं कीं। एक बार तो उसने अपनी ही सेना के 350 सैनिकों को एक साथ मरवा दिया था। हुआ यह कि एक बार उसने अपने एक मालिक (अधिकारी) यूसुफ बुगरा के अधीन दिल्ली से एक सेना भेजे जाने का आदेश दिया। यूसुफ काफी बड़ी सेना लेकर चला गया, लेकिन कुछ सैनिक तत्काल नहीं जा सके। तुगलक ने आदेश देकर लड़ाई पर न जा सकने वालों को पकड़वाया। इनमें से 350 सैनिक ही पकड़ में आ सके, जिन्हें तुगलक ने महल के सामने एक साथ कत्ल करवा दिया।

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