लोग कहेंगे........

 .. एक मज़ेदार किस्सा सुनो-तुमने लंदन स्कूल आफ इक्नोमिक्स का नाम तो सुना होगा।
—ऐसी अनपढ़ भी नहीं हूं मैं।
—हां ठीक है, बी.ए. पास हो। बात सुनो।
लंदन स्कूल आफ इकोनमिक्स ने 2008 में मुआम्मर गद्दाफी के दूसरे बेटे सैफ उल इस्लाम को डॉक्टरेट की उपाधि दी।
सैफ को डाक्टरेट की उपाधि मिलने के बाद ब्रिटिश संस्थान को उसके पिता मुअम्मर गद्दाफी की तरफ से पन्द्रह लाख पाउंड का दान मिला। इसे आप ब्रिटिश संस्थान पर भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा सकते।’
—लेकिन इकोनॉमिक्स की बात कहां से आयी?
—वहीं बता रहा हूं, सैफ ने अंग्रेजों के पन्द्रह लाख की जगह तीन लाख पाउंड ही दिये लंदन-स्कूल आफ इकोनोमिक्स में उसने कुछ तो सीखा।
नीलम की बड़ी-बड़ी आंखों में फिर परछाई सी उभरी परन्तु इस बार वह ज्यादा गहरी नहीं थी। नीलिमा मेरे पास ही बैठ कर मंगवाने वाली चीज़ों की लिस्ट बना रही थी। ऐसा करते हुए बोलते रहना उसकी आदत थी। मुझे लगता था कि अगर घर में कोई भी न हो और उसे लिस्ट बनानी हो तब भी वह ऐसी कमेंटरी करती रही थी।
दालें पहले से बहुत महंगी हो गई हैं। कहां जाकर रुकेगी महंगाई? मैंने इसे रुटीन समझ कर किताब खोल ली तो उसने कहा—ताया जी की बरसी आ रही है। आप कह रहे थे कि वह सीधे आदमी थे। साधारण जीवन अच्छे विचार उनका जीवन रहा है तो कोई बड़ा आयोजन हम नहीं करेंगे। दिखावा उनको पसंद नहीं था, परन्तु अपने परिवारों के दस पन्द्रह लोग तो रहेंगे। अरोग्य संस्थान के लोग भी रहेंगे जिनके लिए वह नि:शुल्क सेवा करते थे। ग्यारह पंडित भी रहें तो तीस-पैंतीस लोगों का खाना बनेगा। ये चीजें आप अलग बंधवा लेना। बाकी जो हलवाई कहेगा एक दिन पहले ले आना।
मैं ताया जी की कुछ यादें बटोर रहा था। वह तंदूर की रोटी ही खाते थे। ज्यादा नहीं खाते थे। एक वक्त में बस दो रोटियां परन्तु नीलिमा बार-बार तंदूर न जलाना पड़े इसलिए चारों रोटियां एक साथ बना देती। किसी शादी-विवाह के आयोजन में या तो जाते नहीं थे या सिर्फ थोड़ा सलाद खाकर लौट आते। मैंने उन्हें बाज़ार की चीज खाते कभी नहीं देखा था। कपड़ों के बक्से में तीन कुर्ते पायजामे, एक दुशाला और एक बास्कट। कपड़े धोने के लिए कभी नीलिमा को नहीं दिये। खुद ही धोते थे।
सुबह उनका एक डेढ़ घण्टा छत पर बीतता था। चिड़ियां आतीं और वह चिड़ियों के साथ इस तरह घुले मिले रहते जैसे वे भी उनके परिवार का हिस्सा हों। चिड़ियां भी न जाने क्या-क्या उनसे चहचहाते हुए कहती थीं। कभी-कभी तो उनके सिर पर कन्धे पर बैठकर अपना हक जाहिर करतीं। अखबार में जब चंद बचे खुचे पक्षी प्रेमियों पर एक लेख छपा था तब उन पर भी दो लाइनें खर्च की गई थीं।
आंगन में दस फुट बाई बारह फुट की जगह में उन्होंने छोटी सी वाटिका बना रखी थी। क्योंकित कोई पेड़ लगाने के लिए घर के सभी लोगों ने मना कर रखा था। इस डर से उसकी जड़ें फैल कर घर के फर्श, दीवारों का सत्यानाश कर सकती हैं, इसलिए उन्होंने गमलों की सहायता से उस जगह को हरा भरा कर दिया था। गमले कुछ इस अंदाज में थे कि  जैसे भारत का नक्शा हो। यह उनकी भारत को हरा-भरा देखने की कामना का परिणाम था।
रामविलास गुप्ता के बड़े घर की छत पर जब किसी टैलीफोन कम्पनी का टावर लग गया, चिड़ियों का आना बिल्कुल बंद हो गया। सदा स्वस्थ रहने वाले ताया जी बीमार रहने लगे, रोटी सिर्फ एक वक्त खाने लगे और अंतिम सांसें लेने में छह महीने भी नहीं लगे। मृत्यु से पूर्व उन्होंने अपने सभी अंग दान कर देने की वसीयत लिखी, जिसे निभाया गया। बिरादरी के कुछ लोग ऐसी सूखी वसीयत जिसमें परिवार के किसी सदस्य को कुछ न मिले का मजाक उड़ाते रहे।
स्कूटर को चीजें लाद-लाद कर ठेला बनाते हुए भीड़-भाड़ भरे बाज़ार से निकलते हुए ट्रैफिक जाम में बेवजह समय और पेट्रोल दोनों को जलाते हुए मुझे समझ नहीं आ रही थी कि इतनी गाड़ियां सड़क पर आ कैसे गईं? एक दूसरे को धकेल कर आगे बढ़ती भीड़ में कोई नम आंखों वाला नदी की कल्पना तो नहीं कर सकता। खैर, घर पहुंच कर नीलिमा के दिये पानी के गिलास से पहला घूंट भर कर लगा कि चीजें लाद कर सुरक्षित पहुंच जाना भी किसी योद्धा से कम नहीं।
मुझे किताबें उठाकर लायब्रेरी जाने के लिए तैयार होते देख नीलिमा ने कहा ‘समय पर लौट आना, सब्ज़ी मण्डी जायेंगे।’
मै—‘ठीक हैं’ कह कर निकल आया।
लायब्रेरी की नई जगह की स्थापना को महीने निकल गये थे, परन्तु अभी तक किताबों के ढेर कई जगह थे और उनके रैक खाली पड़े रह कर किताबों को उदास भाव से निहार रहे थे। नाट्यशाला का सिर्फ नींव पत्थर रखा गया था। पेंटिंग्ज़ हाल की जगह ईंटों का ढेर और जंग खाया सरिया पड़ा था। दाखिल होते ही कोने की मेज पर गांधी की नमक सत्याग्रह वाली तस्वीर पर धूल काफी जमा हो गई थी। एक बड़ी पेंटिंग मेज के पीछे फर्श पर पड़ी थी। इस पेंटिंग में दुर्गा भाभी भगत सिंह के साथ थी और साथ में था तीन साल का दुर्गा भाभी का बेटा शची। उन्हें कलकत्ता स्टेशन पर भगवतीचरण वोहरा दूध बेचने वाले के वेष में इनको मिलेगा। सुखदेव को दुर्गा भाभी ने पांच सौ रुपए दिए थे टिकटों वगैरा के लिए और भगत सिंह की पत्नी के रूप में जाना स्वीकार कर लिया था।