तेज़ किया जाए पोलियो-विरोधी अभियान


पोलियो बहुत ही सूक्ष्म किस्म के कीटनाणुओं के कारण होने वाला बहुत ही घातक छूत का रोग है। पोलियो के कीटाणु तीन किस्मों (पी-1, पी-2, पी-3) के होते हैं जोकि बाहरी वातावरण में 48 घंटों तक जीवित रह सकते हैं। अब तक पूरी दुनिया के डाक्टरी विज्ञान में पोलियो का कोई इलाज नहीं परन्तु इस पोलियो जैसी घातक बीमारी से हमारी इस धरती पर जन्म लेने वाले प्रत्येक बच्चे को आसानी से बचाया जा सकता है। इसलिए ज़रूरी है कि नव जन्मे बच्चे को पोलियो बूंदों की पहली खुराक जन्म के कुछ समय बाद, फिर डेढ़ महीने, अढ़ाई महीने और साढ़े तीन महीने की उम्र और एक-एक खुराक, फिर 16 से 24 महीने की उम्र के मध्य यह खुराक साढ़े तीन और साढ़े चार वर्ष की उम्र और एक-एक खुराक ज़रूरी पिलाई जानी चाहिए। यहां यह विशेष तौर पर वर्णनीय है कि पोलियो बूंदों की तीसरी खुराक के साथ अब (साढ़े तीन महीने की उम्र से) पोलियो का टीका (आई.पी.वी.) भी लगाया जाता है जोकि बच्चे के शरीर में पोलियो के कीटाणुओं के साथ लड़ने की समर्था दोगुनी कर देता है।
वर्ष 1995 से विश्व स्वास्थ्य संस्था द्वारा विश्व के सभी देशों की सरकारों सहित लायन्ज़ इंटरनैशनल, रोटरी इंटरनैशनल, यूनिसेफ और अन्य स्वयं-सेवी संस्थाओं के सहयोग के साथ विश्व-व्यापी स्तर पर पोलियो के कीटाणुओं का पूर्ण सफाया करने के लिए अंतिम लड़ाई के रूप में तीव्र पल्स पोलियो मुहिम शुरू हुई है। वर्ष 1995 से पूर्व दुनिया धर के कुल पोलियो के केसों में 60 से 70 प्रतिशत केस हमारे भारत में होते थे।
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का फज़र् बनता है कि पोलियो की दवाई (वैक्सीन) की साभ-सम्भाल अर्थात् कोल्ड चैन की तरफ खास ध्यान दें ताकि प्रत्येक बच्चे को सही वैक्सीन पिलाई जाए। जैसे कि दवाई पिलाने से पूर्व पोलियो बूंदों वाली शीशी के लेबल पर लगे वी.वी.एम. को भी अच्छी तरह देख लिया जाए। हर तरह के संचार माध्यम, रेडियो, अ़खबारों, टी.वी. आदि के अलावा सरकारी और ़गैर-सरकारी संस्थाओं, पंचायतों और समाज के पढ़े-लिखे सूझवान लोगों द्वारा इस मुहिम संबंधी अधिक से अधिक प्रचार करके इसको लोक लहर बनाया जाना, आधुनिक युग, समय और समाज की ज़रूरत है ताकि कोई भी बच्चा पोलियो बूंदें पिलाने से वंचित न रहे और पल्स पोलियो मुहिम को सही अर्थों में 100 प्रतिशत सफल बनाया जा सके।
वर्णनीय है कि वर्ष 1953 में डा. जोनास सालक ने सबसे पहले पोलियो वैक्सीन निर्मित की थी, जिसको वर्ष 1955 में मान्यता मिली थी। डा. सालक का जन्म 28 अक्तूबर, 1914 को अमरीका के न्यूयार्क शहर में हुआ था। जिनकी 80 वर्ष की उम्र में दिल का दौरा पड़ने के कारण 23 जून, 1995 को लाजोला के एक प्राइवेट अस्पताल में मौत हो गई थी। 13 जनवरी, 2011 को हमारे देश में पोलियो का अंतिम मामला पश्चिम बंगाल के हावड़ा ज़िले में सामने आया था।
...दरअसल सच्चाई तो यह है कि पोलियो का जड़ से ़खात्मा हमारे सभी के हाथ में है। तो आओ! अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की ओर अंतिम दौर में पहुंच चुकी पोलियो विरोधी जंग में शामिल हो जाएं ताकि हमारी इस धरती से पोलियो के कीटाणुओं का जड़ से खात्मा हो सके और भविष्य में कोई बच्चा पोलियो का शिकार होकर उम्र भर के लिए विकलांग बन के जीने के लिए मजबूर न हो। यही पोलियो वैक्सीन के पितामा डा. जोनास सालक को सही अर्थों में सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
-गांव : चुग्घे खुर्द, डाकखाना : बहिमण-दीवाना, ज़िला बठिंडा।
मो. 75894-27462