परेशान हैं कारोबारी सरकार की कर-क्रांति से !

राजधानी दिल्ली में पिछले दिनों सम्पन्न हुई जीएसटी कौंसिल की बैठक में जब यह तथ्य सामने आया कि देश के अधिकतर राज्यों में जीएसटी वसूली में गिरावट का दौर बदस्तूर जारी है, तो यह बात कई अर्थ-चिंतकों के लिए हैरानी का सबब नहीं बनी। वजह ये कि जीएसटी की मौजूदा व्यवस्था शुरू से ही आदर्श नहीं लग रही थी। इसके विपरीत एक दशक पूर्व जब राज्यों में बिक्री कर के बदले वैट प्रणाली की शुरुआत हुई थी तब गिरावट की आशंका के बावजूद पहले ही साल में कर वसूली में रिकार्ड वृद्धि दर्ज हुई थी। कहना न होगा करीब एक दशक पूर्व जब देश में वस्तु व सेवाकर यानि जीएसटी की परिकल्पना आयी थी, तब हमें इस बात का एक स्वप्निल एहसास हुआ था। लगता था इस बहाने देश में एक महान कर क्रांति का आगाज होगा, जिससे कि देश में किसी भी अप्रत्यक्ष कर की चोरी, करों का दोहराव और कर अधिकारियों के भ्रष्टाचार का खात्मा हो जायेगा। सबसे अव्वल समूची कर प्रणाली बेहद सरल व समवेत हो जायेगी, क्योंकि इसमें एक साथ केन्द्र के उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क तथा सेवाकर और राज्यों के वैट व आबकारी कर सभी शामिल होंगे। लेकिन करीब एक दशक बाद जब वास्तव में 1 जुलाई, 2017 को जीएसटी हासिल हुआ तो इससे जुड़े तमाम स्वप्न खाम-ख्याली साबित हुए। हासिल जीएसटी बेहद उबाऊ और उलझाऊ रही। सबसे पहले कारोबारियों से कहा गया कि वे अपना पंजीयन कराएं और रिटर्न भरें। यदि ऐसा नहीं किया गया तो आपके तमाम बिजनेस लेन देन बंद हो जाएंगे। साथ ही आप पर जुर्माना भी लगेगा। गौरतलब है कि भारत सरकार की दो बड़ी मुहिम मसलन पैन कार्ड और आधार कार्ड का पंजीयन देशव्यापी रूप से तभी बढ़ पाया जब सरकार ने इसके लिए एजेंसियां बना दीं। इसी से देश भर में बेहद आसानी से पैन और आधार कार्ड का निरंतर विस्तार हो सका मगर जीएसटी को लेकर सरकार ने एक तुगलकी फरमान दे दिया कि खुद ऑनलाइन पंजीयन करो और बिजनेस चले या न चले, उसका रिटर्न अवश्य भरो। यदि यह नहीं किया तो उसका हर्जाना भरो। क्या  जीएसटी की यही सरल कर व्यवस्था है? यह व्यवस्था न तो व्यावसायिक ईमानदारी की है और न ही व्यावसायिक लोकतंत्र की भावना की परिचायक लगती है। पहले तो यह कहा जा रहा था कि देश में केन्द्र और राज्य कई तरह के परोक्ष कर लगाते हैं, जिससे करों का दोहराव होता है, चीजें महंगी होती हैं और कर वसूली में लीकेज होती है।  मगर अब कौन सा तीर मार लिया गया है? आज भी देश में सभी उत्पादों व सेवाओं के मूल उत्पादन स्रोत पर कहां कर लग रहा है? वह तो दुकानदारों को करारोपित करने के लिए कह दिया गया है और कई दुकानदारों को अपने कारोबार की मात्रा के हिसाब से गैर पंजीकृत होने की छूट दे दी गई है। क्या इससे हमारी कर व्यवस्था में एक जबरदस्त बेतरतीबी नहीं पैदा हो गई? यह काम तो वैट के जरिये भी हो रहा था, जिसमें यह कहा जाता था कि सारे शांपिग बिल कंप्यूटराइज्ड होंगे तो कर-चोरी और फिजूल के कर लगाए जाने बंद हो जाएंगे। फिर जीएसटी के समक्ष भी तो वही सवाल है। ऐसे में आखिर  अंतर क्या आया? कहने को तो एक जीएसटी है पर बिल में अभी भी केन्द्रीय व प्रांतीय जीएसटी लिखा जा रहा है। इसका मतलब है कि केन्द्र ने राज्यों का सेवाकर पहले ही हड़पा हुआ था और अब जीएसटी के बहाने उसने उनके वस्तुकर यानी वैट को भी हड़प लिया। सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि इस नयी जीएसटी रिजीम में भी बिना बिल के वैसे ही व्यापार हो रहे हैं जैसे पहले होते थे। कहना न होगा कि प्रत्यक्ष करों के मामलों में केन्द्र सरकार किसी भी तरह के भुगतान पर दो प्रतिशत का टीडीएस काटती है जिसका अंतिम निपटारा आयकर रिटर्न भरने के वक्त किया जाता है। यह एक बेहतरीन व्यवस्था है जिसमें यह काम कर-दाता और कर वसूलकर्ता दोनों को अनिवार्य रूप से करना होता है। क्या ऐसी ही व्यवस्था जीएसटी के तहत नहीं लायी जा सकती थी, जिसमेें वस्तु या सेवा पर उसके उत्पादन स्रोत पर ही कर लगा दिया जाता, और सरकार को भी वहीं पर राजस्व प्राप्त हो जाता? इससे कर दोहराव और कर अदायगी के लिए जीएसटी पंजीयन और रिटर्न का लम्बा तामझाम भी नही करना पड़ता। अगर ऐसा नहीं है तो फिर यह काहे की सरल कर व्यवस्था है। यदि जीएसटी एक उन्नत व्यवस्था है तो फिर सरकार को यह भी सोचना चाहिए कि आखिर देश के 48 फीसदी जीएसटी पंजीयनकर्ताओं ने अभी तक अपना रिटर्न क्यों नहीं भरा? क्या सरकार की इनसे कर लेने की बजाय इनसे जुर्माना वसूलने पर ही ज्यादा दिलचस्पी है? अगर सरकार जीएसटी की इस व्यवस्था को लोगों पर बलात थोपना भी चाहती है तो उसके कर अधिकारी सभी जीएसटी पंजीयन के पात्र कारोबारियों को ढूंढकर उनका पंजीयन क्यों नहीं करा रहे ? वे क्यों नहीं रिटर्न भरने में उनकी मदद कर रहे हैं? सरकार का जीएसटी पोर्टल अभी तक यूजर फ्रैंडली क्यों नहीं बन पाया है? सबको मालूम है कि देश में अधिकतर बिक्रीजनित उत्पादों पर लेबल नहीं लगे होते हैं। सब जगह कंप्यूटर और इंटरनेट नहीं है। हर महीने जीएसटी रिटर्न दाखिल करने का पूरा इंफ्रास्टक्चर अभी तक सब जगह उपलब्ध नहीं है। बार बार जीएसटी की वेबसाइट हैंग हो जाती है।  राजधानी दिल्ली तक में जब व्यवसायियों को इतनी दुश्वारी झेलनी पड़ती है तो देश के बाकी जगहों की स्थिति क्या होती होगी? एक तरफ  कहा गया कि जीएसटी व्यवस्था के तहत करों की चोरी रुकने से सरकार के कर राजस्व में भारी बढ़ोत्तरी होगी, तो दूसरी तरफ  सरकार ने उपभोक्ताओं की आंखों में धूल झोंककर अपनी मोटी कमाई किये जाने के रास्ते जीएसटी रूट से अलग कर दिये और केन्द्र व राज्य दोनों ने अपने-अपने  कर आमदनी के मलाईदार तरीके जारी रखे। इसका मतलब है कि सरकार पहले से ही जीएसटी व्यवस्था के जरिये पर्याप्त राजस्व नहीं कमा पाने के प्रति आशंकित थी। तभी उसने इस तरह से अधूरे सुधारों को अंजाम दिया। इसी का नतीजा है कि सभी पेट्रोलियम उत्पादों पर पुरानी कर प्रणाली लागू कर उपभोक्ताओं को इनके दामों से जीएसटी से राहत मिलने की आकांक्षाओं पर कुठाराघात किया गया। राज्यों ने अपनी आबकारी कर प्रणाली तथा जमीन व मकान की रजिस्ट्री पर पुरानी कर व्यवस्था को चालू रखा है, तो फिर जनता को जीएसटी से क्या राहत मिली?

(लेखक वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार तथा ‘इकोनॉमी इंडिया’पत्रिका संपादक हैं)     
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर