अयोध्या विवाद  अदालत को ही करने दिया जाए फैसला

देश के सर्वोच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद के मामले की सुनवाई आगे डाल दी है। अब इस संबंधी आगामी वर्ष जनवरी के महीने में अदालत यह फैसला करेगी कि आगे से कौन-सी नई पीठ इसकी कब सुनवाई करेगी। नि:संदेह बड़ी संख्या में लोगों की नज़रें अदालत पर टिकी हुई थी। काफी लोग यह भी चाहते थे कि उच्च अदालत इसका फैसला शीघ्र करे। कई राजनीतिक पार्टियां लोकसभा के चुनाव निकट आते देख कर इसका लाभ उठाना चाहती थीं। 
कुछ कट्टरवादी संगठनों तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अब यह कहना शुरू कर दिया है कि सरकार को राम मंदिर बनाने के लिए अध्यादेश जारी करना चाहिए। चाहे नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र की भाजपा सरकार ने अपना पक्ष यह रखा है कि उसका अदालत में पूर्ण विश्वास है, परन्तु यह बात भी सही है कि देश के बड़ी संख्या में लोग यह चाहते हैं कि इसकी सुनवाई शीघ्र हो। कांग्रेस के नेता पी. चिदम्बरम ने कहा है कि चुनावों से पूर्व भाजपा राम मंदिर के मुद्दे पर एक माहौल बनाना चाहती है, परन्तु कांग्रेस का दृष्टिकोण यह है कि अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है। इसलिए इस अहम मामले का फैसला अब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ही किया जाना चाहिए। इसके लिए हर किसी को फैसला आने तक इंतजार करना चाहिए। मुस्लिम नेता असाद्दुदीन ओवैसी ने स्पष्ट कहा है कि अदालत के फैसले को सभी को मानना पड़ेगा। यदि सरकार अध्यादेश लाएगी तो उसे मुंह की खानी पड़ेगी। मामला 490 वर्ष पुराना है, जिसको अब तक खंगाला जा रहा है। कहा जाता है कि बाबर ने अयोध्या में राम मंदिर को गिरा कर यहां मस्जिद का निर्माण किया था। बहुत सारे हिन्दुओं की यह आस्था है कि इस स्थान पर भगवान श्री राम का जन्म हुआ था इस स्थान पर मस्जिद के हुए निर्माण के सवा 200 वर्ष बाद इस मुद्दे को गर्माया गया और 350 वर्ष बाद इसको मुद्दा बना कर अदालत में ले जाया गया और 421 वर्ष बाद लगभग 4 दर्जन हिन्दुओं ने मस्जिद पर जाकर भगवान श्री राम की मूर्ति रख दी और वह यहां पूजा करने लगे। इसके बाद इस मामले संबंधी गतिविधियों का दौर बढ़ गया। इस पर अधिकार जमाने के लिए निरमोही अखाड़ा मैदान में आ गया। स्थान के मालिकाना हक के लिए उत्तर प्रदेश का सुन्नी वक्फ बोर्ड भी इसमें कूद पड़ा। बाद में विश्व हिन्दू परिषद् ने इस स्थान का ताला खुलवाने के लिए संघर्ष शुरू कर दिया। फैज़ाबाद की अदालत ने इस विवादास्पद स्थल पर हिन्दुओं को पूजा करने के लिए बंद चला आ रहा ताला खुलवा दिया। 
कांग्रेस के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1989 में इस विवादास्पद स्थल के निकट राम मंदिर के लिए नींव पत्थर रखने की अनुमति दे दी और इस शृंखला में सबसे बड़ी बात 1992 को हुई जब बड़ी संख्या में कार-सेवकों ने यहां एकत्रित होकर मस्जिद को गिरा दिया। यह भी कांग्रेसी प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के समय हुआ। इसको गिराने के बाद इस पर अस्थायी तौर पर एक राम मंदिर बना दिया गया। उत्तर प्रदेश के उच्च न्यायालय के तीन जजों ने इसकी सुनवाई शुरू की। बाद में इस स्थान पर पुन: किए गए हमले में कुछ लोग मारे भी गये। अंतत: इलाहाबाद की हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच ने इसके बारे में ऐेतिहासिक फैसला सुनाया। परन्तु इस पर अधिकतर लोगों की संतुष्टि न होने के कारण यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया। इसकी सुनवाई अब आगे डाली गई है। नि:संदेह जहां यह एक सम्प्रदाय के लोगों के लिए आस्था का सवाल बना हुआ है, वहीं दूसरी सम्प्रदाय के लोग भी इसको अपनी धार्मिक भावनाओं पर हमला समझते हैं, परन्तु केन्द्र में भाजपा सरकार बनने के बाद इस मामले के प्रति कुछ संस्थाएं और संगठन उत्साहित होकर इस बात के लिए उतावले हुए पड़े हैं कि इस विवादास्पद स्थल पर तत्काल मंदिर का निर्माण किया जाए। ऐसी स्थिति में ही वह सरकार पर अध्यादेश लाने के लिए दबाव डालने लगे हैं। 
हम महसूस करते हैं कि यदि यह फैसला सर्वोच्च न्यायालय के पास पहुंच चुका है, तो इसके फैसले का इंतजार करना चाहिए और फैसले का ही सभी सम्प्रदायों और लोगों को सम्मान करना चाहिए, क्योंकि देश आज जिस मुकाम पर पहुंच चुका है वहां हर हाल में देश के संविधान के अनुसार शांति-व्यवस्था बनाए रखने में ही समाज की बेहतरी है। इसलिए हर मामले को भावुकता की बजाए मैरिट के आधार पर निपटा जाना ही बेहतर होगा। 
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द