कौन बनेगा शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का आगामी प्रधान ?

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान के चुनाव सिर पर हैं। सच्चाई यह है कि अकाली दल में फूट के बावजूद अभी तक शिरोमणि कमेटी के सदस्यों की बड़ी बहु-संख्या पर सुखबीर सिंह बादल का आदेश ही चलता है। अब भी प्रधान वही व्यक्ति बनेगा, जिसको सुखबीर सिंह बादल चाहेंगे। इस स्थिति का एक पक्ष यह भी है कि अभी ब़ागी अकाली खुल कर विरोध न करने की रणनीति पर ही चल रहे हैं। इस समय पंजाब के राजनीतिक और विशेष तौर पर सिख हल्कों में यह सवाल सबसे अधिक पूछा जा रहा है कि 13 नवम्बर को शिरोमणि कमेटी का कोई नया प्रधान बनेगा या मौजूदा प्रधान ही दोबारा चुन लिया जाएगा? दूसरा सवाल यह भी पूछा जा रहा है कि शिरोमणि कमेटी की अध्यक्षता की दौड़ में कौन-कौन शामिल है? हमारी जानकारी के अनुसार इस समय तो भाई गोबिंद सिंह लौंगोवाल के ही पुन: फिर प्रधान बनने के आसार सबसे अधिक हैं। अगर कोई अचानक दबाव न पड़ा तो भाई लौंगोवाल के नाम पर फैसला हो ही गया बताया जाता है। चाहे उनके खिलाफ शिरोमणि कमेटी के सदस्यों का एक बड़ा हिस्सा सुखबीर सिंह बादल के पास एतराज़ कर चुका है कि हमारे काम नहीं होते। फिर उनकी शिरोमणि कमेटी के प्रशासन पर पकड़ न होने और शिरोमणि कमेटी के शैक्षणिक संस्थानों की आर्थिक स्थिति खस्ता होने पर वेतन न देने की बातें भी की जा रही हैं। परन्तु यही समझा जा रहा है कि आज के अकाली राजनीतिक हालात अनुसार भाई गोबिंद सिंह लौंगोवाल ही सुखबीर सिंह बादल को आगामी प्रधान के लिए सबसे अधिक सही बैठते हैं। एक तो उनसे किसी भी तरह की ब़गावत के आसार नहीं। दूसरा स. बादल जैसे चाहें उनको चला सकते हैं और चला भी रहे हैं। तीसरा और सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यह बताया जा रहा है कि संगरूर बरनाला इलाकों में सुखदेव सिंह ढींडसा जैसे बड़े कद के राजनीतिक नेता के मुकाबले हेतु शिरोमणि कमेटी के प्रधान को खड़ा करना एक राजनीतिक पैंतरा होगा। वैसे भाई लौंगोवाल के अलावा इस समय शिरोमणि कमेटी की अध्यक्षता के लिए अन्यों के अलावा दौड़ में शामिल प्रमुख नेताओं में पूर्व मंत्री जत्थेदार तोता सिंह, तीन पूर्व प्रधानों जत्थेदार अवतार सिंह, बीबी जगीर कौर और प्रो. कृपाल सिंह बडूंगर के अलावा शिरोमणि कमेटी के पूर्व महासचिव अमरजीत सिंह चावला ही हैं। जहां तक कि जत्थेदार तोता सिंह का संबंध है, उनके समर्थकों का कहना है कि जिस तरह की स्थिति अकाली दल में बनी हुई है, उसमें जत्थेदार तोता सिंह को शिरोमणि कमेटी की अध्यक्षता देकर उनको एक संकट-मोचक के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं क्योंकि वही एकमात्र ऐसे उम्मीदवार हैं जो बादल परिवार के निकट हैं और उनके ब़ागी अकाली नेताओं के साथ भी संबंध काफी ठीक हैं। इन सूत्रों का कहना है कि प्रधान बनने की स्थिति में जत्थेदार तोता सिंह नाराज़ हुए अकाली नेताओं को मना सकते हैं और उनके डट कर बादल परिवार के पक्ष में खड़े होने से ब़ागी गुट को ताकत मिलनी रुक जाएगी। वैसे वह एक अच्छे प्रशासक भी हैं और शिरोमणि कमेटी के बिगड़े ढांचे को ठीक करने में सफल हो सकते हैं। वैसे बताया जा रहा है कि उनकी एक प्रमुख केन्द्रीय मंत्री के साथ निकटता भी अंतिम समय में उनके पक्ष में कोई करिश्मा दिखा सकती है। जत्थेदार अवतार सिंह लम्बा समय शिरोमणि कमेटी के प्रधान रहे हैं। चाहे उनके कार्यकाल में उन पर भी आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गए थे, परन्तु उनके बाद के दो वर्षों में भी शिरोमणि कमेटी के कामकाज में गिरावट ही आई है। वैसे उन्होंने सिरसा डेरी प्रमुख की माफी के संबंध में मुंह खोल कर ब़ागी सुर अपना लिया था। परन्तु सुखबीर सिंह बादल और बिक्रम सिंह मजीठिया उनको मनाने में सफल रहे थे। उनका दावा है कि उनके कार्यकाल में शिरोमणि कमेटी ने सबसे अधिक शैक्षणिक संस्थान स्थापित किए, सबसे अधिक गुरुद्वारों की कब्ज़ाई ज़मीनें छुड़वाईं गईं और सबसे अधिक सदस्यों को संतुष्ट रखा गया। शिरोमणि कमेटी की पूर्व प्रदान बीबी जगीर कौर एक निडर नेता हैं और हर मुश्किल में डट कर बादल परिवार के साथ खड़ी रही हैं। उन्होंने कभी भी ब़ागी सुर नहीं अपनाया। हालांकि अभी उनके खिलाफ चल रहे केस का फैसला नहीं आया, परन्तु वह शिरोमणि कमेटी की अध्यक्षता के लिए काफी गम्भीर उम्मीदवार हैं। इस संकट की घड़ी में वह सुखबीर सिंह बादल के लिए काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकतीं बताई जाती हैं। पूर्व प्रधान प्रो. कृपाल सिंह बडूंगर इन सभी से अधिक विद्वान माने जाते हैं, वह 2 बार प्रधान रह चुके हैं। उनकी पकड़ भी शिरोमणि कमेटी पर काफी मज़बूत थी। उनके आदेशों को टालने की किसी की हिम्मत नहीं थी। परन्तु वह भी एक बार ब़ागी सुर अपना चुके हैं और बाद में वह फिर बादल परिवार के समर्थक हो गए। उनके नाम की चर्चा भी शिरोमणि कमेटी की अध्यक्षता के सम्भावित उम्मीदवारों में की जा रही है। अमरजीत सिंह चावला इन सभी से नौजवान नेता हैं और वह प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर सिंह बादल दोनों के नज़दीक हैं। आजकल वह सुखबीर सिंह बादल की किचन कैबिनेट बैठकों में भी नज़र आ रहे हैं। सिख स्टूडैंट फैडरेशन की पृष्ठभूमि वाले चावला शिरोमणि कमेटी के महासचिव रह चुके हैं। समझा जाता है कि वह एक तेज-तर्रार नेता हैं और शिरोमणि कमेटी के प्रधान बन कर सुखबीर सिंह बादल को धार्मिक उलझनों में से बाहर निकालने के समर्थ हैं।प्रधान के चुनाव के बाद होगी लड़ाई तेज समझा जा रहा है कि अकाली दल बादल की असली लड़ाई तो चाहे 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद ही होगी परन्तु फिर भी शिरोमणि कमेटी के प्रधान का 13 नवम्बर के चुनाव के बाद अध्यक्षता या अपने व्यक्तियों को कार्यकारिणी में अधिक प्रतिनिधित्व दिलवाने के चाहवान उनकी चाहत पूरी न होने पर ब़गावती सुर अपना सकते हैं। इस दौरान अगले दिनों में एक आधी और ब़गावत कर चुके टकसाली नेता द्वारा स. ढींडसा और स. ब्रह्मपुरा की तरह अपने पदों से इस्तीफा देकर अकाली दल के एक सिपाही के रूप में काम करते रहने की घोषणा भी की जा सकती है। जारी है जी.के. और सिरसा की लड़ाई चाहे अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल द्वारा दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के प्रधान मनजीत सिंह जी.के. और महासचिव मनजिन्द्र सिंह सिरसा के मध्य चल रही राजनीतिक लड़ाई खत्म करवाने के काफी प्रयास किए गए हैं परन्तु यह लड़ाई अभी भी बदस्तूर जारी है। जहां जी.के. ने ब़ागी सुर अपना कर सुखबीर सिंह बादल को अपने साथ चलने के लिए मजबूर किया, वहीं मनजिन्द्र सिंह सिरसा सुखबीर सिंह बादल के अत्यंत विश्वासपात्रों में पहुंच गए हैं। इस समय वह अकाली दल के प्रधान के निजी सलाहकारों की बैठकों में भी शामिल होते हैं। सिरसा के नज़दीकियों का कहना है कि उन्होंने दिल्ली कमेटी से दूरी दिल्ली कमेटी में फैले भ्रष्टाचार के अरापों से स्वयं को अलग दिखाने के लिए बनाई है। उनको एतराज़ है कि दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी इन संगीन आरोपों का जवाब क्यों नहीं दे रही और कुछ व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही? इस दौरान दिल्ली के सिख राजनीतिक हल्कों में दिल्ली कमेटी द्वारा कथित रूप में किए ऐसे खर्चे भी चर्चा का विषय बन गए हैं जो अकाली दल के कुछ प्रमुख नेताओं की चुनाव मुहिम में खर्चे गए परन्तु दिल्ली सिख गुरुद्वारा कमेटी के प्रधान मनजीत सिंह जी.के. इन चर्चों को पूरी तरह नकार रहे हैं।

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