कैसी आज़ादी ?

 यूंतो कहने को हमारे देश में हर नागरिक को स्वतंत्रता अर्थात् आज़ादी का हक है लेकिन फिर भी देखा जाए तो आज भी हमारे समाज में ‘बोलने की स्वतंत्रता’ नहीं है। जब कभी भी या यूं कहें जहां कहीं भी जिस किसी ने कुछ बोलना चाहा, सच के खिलाफ आवाज़ उठानी चाही, तब-तब इस सरकार के डर अथवा कानून की सीमाओं तले चुप्पी साधनी पड़ी। ये सब देख कर यह कहा जा सकता है कि :-
‘अभिव्यक्ति की यह कैसी आज़ादी?
घोले देश में विष, बर्बादी...
हटा मुखौटा, करो बेनकाब,
देश में रहे, 
अफजल न कसाब।’

-शुभिता
विद्यार्थी लायलपुर खालसा कालेज, जालन्धर।