सबसे ज़रूरी है सांस लेना

उत्तर भारत एक बार फिर गहरे वायु प्रदूषण की चपेट में है। गत कई दिनों से देश की राजधानी दिल्ली से यह समाचार आ रहे थे कि वहां वायु का प्रदूषण इतना बढ़ चुका है कि लोगों के लिए सांस लेना भी मुश्किल हुआ पड़ा है। वायु में प्रदूषण की मात्रा 371 पी.एम. तक पहुंच चुकी है। यह भी कहा जा रहा है कि आगामी दिनों में यह 400 पी.एम. तक पहुंच सकती है। जोकि वायु में बेहद गम्भीर किस्म का प्रदूषण माना जाता है।  अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की आई ताज़ा रिपोर्ट में यह कहा गया है कि उत्तर भारत के राज्यों उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में बड़े स्तर पर पराली को आग लगाई जा रही है और इस संबंधी नासा ने तस्वीरें भी जारी की हैं। नासा ने यह भी कहा है कि भारत में बारिश का सीजन सितम्बर तक लटक जाने के कारण चाहे गत दिनों के दौरान पराली को कम आग लगाई गई थी, परन्तु आगामी दिनों में आग लगाने की घटनाओं में और भी वृद्धि होने की सम्भावना है। केन्द्र सरकार के स्वास्थ्य और पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन ने इस संबंधी दिल्ली में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान के पर्यावरण मंत्रियों की गत दिनों बैठक भी बुलाई थी, परन्तु इसमें दिल्ली के अलावा अन्य किसी भी राज्य के मंत्री शामिल नहीं हुए। अपितु इन राज्यों का प्रतिनिधित्व इनके वरिष्ठ अधिकारियों ने ही किया है। जिस पर केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन ने अपनी नाराज़गी भी व्यक्त की है। इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी दिल्ली में बढ़ रहे प्रदूषण का नोटिस लेते हुए महानगर में चल रहे गैर-कानूनी निर्माण कार्यों के बारे में केन्द्र सरकार से रिपोर्ट तलब की थी। परन्तु समय पर रिपोर्ट न मिलने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने भी नाराज़गी व्यक्त करते हुए केन्द्र सरकार को कहा है कि यदि सरकार को ही इस संबंध में कोई चिंता नहीं है तो अदालत ही चिंता क्यों करे? 
चाहे केन्द्र सरकार दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा हरियाणा की सरकारों ने उत्तर भारत में वायु प्रदूषण कम करने के लिए गत समय के दौरान कुछ आधे-अधूरे प्रयास किए थे। केन्द्र सरकार ने उपरोक्त उत्तरी राज्यों में वायु का प्रदूषण कम करने के कार्यों को मुकम्मल करने के लिए कुछ धन राशि भी रखी थी। पंजाब सरकार ने सबसिडी देकर किसानों को पराली खेतों में खपाने के लिए कुछ मशीनें मुहैया करने के प्रयास किए थे। परन्तु स्थिति में निचले स्तर पर ज्यादा असर नहीं पड़ा। बहुत ही कम किसानों ने तकनीकी या अन्य पारम्परिक ढंग से पराली को खेतों में बिना आग लगाने के खपाने के लिए कदम उठाए हैं। इस कारण किसानों के विरुद्ध सख्ती करते हुए सरकार ने उनके खिलाफ बहुत सारे केस भी दर्ज किए हैं। परन्तु इन सभी प्रयासों के बावजूद उत्तर भारत में वायु के प्रदूषण का संकट पहले की तरह ही बना हुआ है। क्षेत्र में किसानों द्वारा आज भी बड़े स्तर पर पराली को आग लगाई जा रही है, जिससे गत वर्ष की तरह इस वर्ष भी वायु का प्रदूषण तेजी से बढ़ता जा रहा है। बहुत सारे किसान तथा किसान संगठन आज भी इस बात पर अड़े हुए हैं कि या तो सरकार उनको सस्ती दरों पर पराली को खेतों में खपाने के लिए मशीनरी मुहैया करे या उनको इस मकसद के लिए मुआवज़ा दिया जाए। नहीं तो उनके पास पराली जलाने के अलावा अन्य कोई रास्ता नहीं है। किसानों का यह भी मानना है कि दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पंजाब में सिर्फ उनके द्वारा पराली जलाने से ही वायु प्रदूषण नहीं बढ़ रहा अपितु इनके लिए उद्योग तथा लाखों की संख्या में सड़कों पर चल रहे वाहन भी ज़िम्मेदार हैं। नि:संदेह किसानों की इस बात में दम है कि सिर्फ पराली को जलाये जाने से ही उत्तर भारत में वायु का प्रदूषण नहीं बढ़ रहा, अपितु वायु प्रदूषण के लिए उद्योग तथा अन्य भी अनेक कारण हैं, परन्तु समूचे तौर पर जो उत्तर भारत में वायु के प्रदूषण से जो स्थिति बनी हुई है वह सभी गुटों के लिए गम्भीर चिंतन की मांग करती है। औद्योगिक तथा  गैर-औद्योगिक क्षेत्र जहां से भी वायु का प्रदूषण बढ़ रहा है, उन क्षेत्रों से संबंधित सभी लोगों को ईमानदारी से वायु का प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए आगे आना पड़ेगा, नहीं तो इस क्षेत्र में लोगों का जीना बेहद मुश्किल हो जाएगा। वायु के बढ़ रहे प्रदूषण के कारण दिल्ली से लेकर पंजाब तक सभी वर्गों के लोगों को गम्भीर बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। खास तौर पर बच्चों और बुजुर्गों पर बेहद बुरा असर पड़ रहा है। यह पर्यावरणिक आपात्काल जैसी स्थिति है। केन्द्र सरकार, संबंधित राज्य सरकारों और जहां तक कि इन राज्यों के आम लोगों को भी सचेत होकर हर पक्ष से बड़े कदम उठाने पड़ेंगे। स्थिति को ज्यों की त्यों बनाए रखने से यह गम्भीर मामला हल नहीं हो सकेगा। जीने का अधिकार अन्य सभी अधिकारों से ऊपर है। इस पर किसी भी किस्म का कोई समझौता करना सम्भव नहीं होगा।