प्रकृति पूजा का प्रतिबिम्ब गोवर्धन पूजा

दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा उत्सव मनाया जाता है। यह दिवस यह संदेश देता है कि जीवन में प्रकृति की बहुत बड़ी भूमिका होती है। हमारा जीवन प्रकृति पर निर्भर है जैसे पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, नदी और पर्वत आदि पर इसलिए इनका धन्यवाद करना हमारा कर्त्तव्य है। गोवर्धन पूजा को गोधन व अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने वर्षा के स्वामी देवराज इन्द्र के अभिमान का हनन किया था। गोवर्धन पूजा के विशेष अवसर पर भगवान श्री कृष्ण व गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री कृष्ण ने लोगों को बताया था कि प्रकृति की पूजा की जानी चाहिये जिसका एक रूप गोवर्धन पर्वत भी है।  गोवर्धन पर्वत गिरिपद पर गायों के लिये चरागाह उपलब्ध कराता है। साथ ही गोवर्धन पर्वत से कई प्रकार की खाद्य वस्तुएं भी प्राप्त होती हैं। गोवर्धन पर्वत अपने ऊपर से गुजरने वाली मानसूनी हवाओं को रोककर यह मथुरा, गोकुल व अन्य समीपस्थ स्थानों पर जलवर्षा कराता है। इसके अलावा युद्ध काल में गोवर्धन पर्वत समीपस्थ ग्रामीणों की शरणस्थली भी बनता है। इसलिये गोवर्धन पूजा करना इन्द्र की पूजा से कहीं अधिक मान्य व आवश्यक है। कहते हैं, जब गोकुल- वासियों ने श्री कृष्ण की बात से सहमत होकर गोवर्धन पर्वत की पूजा की, तब देवराज इन्द्र कुपित हो उठे। इन्द्र ने घमण्ड में श्री कृष्ण के वास्तविक दैवीय रूप की अवहेलना कर लगातार कई दिनों तक मूसलाधार वर्षा की। गांव के गांव इस वर्षा में बहने लगे। तब श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी कनिष्ठ अंगुली पर धारण कर ग्रामीणों की रक्षा की एवं इन्द्र के सर्वशक्तिशाली होने के अभिमान को तोड़ दिया। इन्द्र को अपनी करनी पर काफी पश्चाताप हुआ। उसी के बाद से गोकुल, मथुरा के अतिरिक्त भी गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा के रूप में पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश तथा बिहार राज्यों में बड़े उत्साह से मनाया जाने लगा। यह प्रकृति प्रेम एवं उसके महत्व को दर्शाने तथा समझाने वाला त्यौहार है, जिसकी महत्ता को किसी भी रूप में कम करके नहीं आंका जाना चाहिये।