दीपावली पर रंगोली सजाने की परम्परा


भारतीय संस्कृति में तीज-त्यौहारों के पावन अवसरों पर घरों में रंगोली सजाने की परम्परा प्रचलित है। लक्ष्मी के स्वागत में दीपावली पर हज़ारों वर्षों से रंगोली सजती आ रही है। इन रंगोलियों में चित्रकला की भारतीय परम्परा की अमिट छाप है। यही वजह है कि हर अंचल की कला शैली इनके डिज़ाइनों में देखी जा सकती है।
हमारे देश के उत्तरी भागों में प्राय: दीपावली व होली पर रंगोली सजायी जाती है लेकिन दक्षिण भारत में तो रोज रंगोली सजाने की परम्परा है, विशेषकर तमिल, तेलुगू, कन्नड़ व मलयाली क्षेत्रों में प्रतिदिन सवेरे घर आंगन-देहरी व गलियारों को साफ सुथरा कर हर आने वाले व्यक्ति के स्वागत में रंगोली सजायी जाती है। मराठी और कोंकणी अंचल में भी ऐसी दैनिक रंगोलियां सजाने का प्रचलन है। बंगाली परिवारों में आटे से बनाई गयी रंगोली को ‘अल्पना’ कहते हैं। रंगोली की असली छटा दीपावली की रात ही देखने को मिलती है। अकेले गुजरात प्रांत में इस रात तीन हज़ार से ज्यादा डिज़ाइनों में घर-घर रंगोली सजती है जिनमें एक हज़ार डिज़ाइन कलाकृतियों से संबंधित होते हैं। दीपावली की रात कमल की रंगोली को विशेष रूप से ‘शुभ’ माना जाता है क्योंकि कमल लक्ष्मी जी का आसन है।
रंगोली कला में कमल का चित्र ‘प्रतीक’ भर होता है जिसमें विभिन्न प्रकार के रंगों का उपयोग होता है। आंध्र प्रदेश में  ‘अष्टकमल-दल’ बनाने की परम्परा है जबकि हिमालय की तराई में इसे 24 पंखुड़ियों वाला बनाया जाता है। बिहार में सीढ़ियों पर छोटे-छोटे कमल की रंगोली रचायी जाती है। साथ में लक्ष्मी जी के पांवों के प्रतीक स्वरूप नन्हे-नन्हे पांव भी बनाये जाते हैं। महाराष्ट्र में शंख कमल बनाये जाते हैं जो कमल की कली तुल्य होते हैं।
आमतौर पर रंगोली ‘ज्यामितीय’ डिज़ाइनों में ही होती है, परंतु इन्हीं से मछली, स्वास्तिक, कोण, पशु-पक्षी, सूर्य, चन्द्र पेड़ आदि के प्रतीक चित्र भी बनाये जाते हैं। दीपावली पर कई जगह रंगोली में डिज़ाइन के मध्य जलता दीपक या दीप-स्तम्भ भी रखा जाता है। ऐसी रंगोली का प्रचलन सुदूर दक्षिण भारत में ज्यादा देखने को मिलता है।
परम्परागत रंगोली सजाने में चावल का पेस्ट या पाउडर इस्तेमाल किया जाता है जिसमें पीला, हरा, लाल व नीला रंग मिलाया जाता है। आजकल रंगीन रंगोली बनाने में रंग-बिरंगे अबीर का प्रयोग किया जाता है। राजस्थान की ‘मांडणा’ रंगोली सबसे ज्यादा रंगीन होती है। मगध अंचल की ‘मंडल’ तथा मधुबनी की धूलिचित्र रंगोली कच्ची मिट्टी के आंगन पर ही बनायी जाती है। केरल की ‘फूल कोमल’ एक अत्यंत प्रसिद्ध व परम्परागत रंगोली है। इसमें तरह-तरह के रंगीन फूलों का प्रयोग होता है। यह रंगोली आमतौर पर मंदिरों के प्रवेश द्वार पर रचायी जाती है। तमिलनाडु के कुछ ग्रामीण अंचलों में भी फूलों से रंगोली दीपावली पर सजायी जाती है जिसमें फूलों के बीच जलते हुए दीपक रखे जाते हैं।
कुल मिला कर रंगोली का हमारे सांस्कृतिक जीवन में बहुत महत्व है, जिसमें विभिन्न प्रदेशों की लोकभावनाओं की सहज अभिव्यक्ति देखने को मिलती है। रंगोली के अभाव में त्यौहारों पर घर सूना-सूना सा लगता है लेकिन जरा-सी मेहनत से घर-द्वार त्यौहार के अवसर पर रंगोली सजाने से अपनी अलग ही आभा बिखेरता दिखाई देता है।
महामंदिर गेट के निकट, 
जोधपुर (राज़)