बहुओं को भी दें बेटियों जैसा प्यार

जवानी की दहलीज़ पर पैर रख रही हर बेटी के मन में सिर्फ यही सपने होते हैं कि उसका अगला घर यानि ससुराल कैसा हो। अर्थात् उसको प्यार करें, उसका सत्कार करें इत्यादि। अक्सर लड़कियों में सास और ननद के प्रति अनेक प्रकार के विचार रहते हैं। जिस कारण लड़कियां अपने सम्भावित ससुराल के बारे में सोचकर अनेक प्रकार के विचार बना लेती हैं। दूसरी तरफ ससुराल वालों का यह कर्त्तव्य बनता है कि नवविवाहित सदस्य यानि बहू को पूरा प्यार और मान-सम्मान दे। उसको अपनी बेटी बनाकर रखें। नवविवाहिता को अपने नए परिवार वालों की पसंद न पसंद, रुचि का कोई ज्ञान नहीं होता इसलिए परिवार के बाकी सदस्यों का खाने का समय इत्यादि बताना चाहिए। बनाम उसके मन को ठेस पहुंचाए। उससे उसकी मनपसंद चीज़ के बारे में पूछो और उसको उपहार आदि दें ताकि नए परिवार में उसको अपनापन महसूस हो। कई बार देखा जाता है कि बहू की ओर से लाए सामान में  कमियां निकाली जाती हैं तो ऐसा नहीं करना चाहिए। ऐसा करना कोई भी लड़की सहन नहीं करती। उसके मन में ससुराल के प्रति कड़वाहट आ जाती है। अगर बहू आगे पढ़ना चाहती है तो उसको पूरी इज्जत दें। क्योंकि एक पढ़ी-लिखी औरत परिवार का अधिक कुशलतापूर्वक ध्यान रखती है। पति को भी अपनी पत्नी के साथ पूरा योगदान देना चाहिए। वह सिर्फ बहू बनकर नहीं बल्कि आपके दिल के सबसे करीब होती है। चाहे वह कुछ बातें सास को न बोल सके लेकिन पति के साथ मित्रतापूर्वक संबंध होने पर वह अपनी बात आराम से कर सकेगी। वैवाहिक रिश्ते में दोस्ती पहला कदम और रिश्ता होती है, जोकि बाकी के रिश्ते को निभाती है। पारिवारिक सदस्यों को भी पति-पत्नी की निजत्वता का ध्यान रखना चाहिए। बिना वजह से उनकी ज़िंदगी में दखल नहीं देना चाहिए। छोटी-छोटी घरेलू बातों पर लड़ाई झगड़ा नहीं करना चाहिए। लड़की का भी कर्त्तव्य है कि वह छोटी-छोटी बातों पर कलह न करें और न ही माता-पिता को बताएं। रिश्ते दोनों ओर से निभाए जाते हैं न कि एक ओर से। रिश्तों में घमंड, लालच, ईर्ष्या, द्वेष नहीं होनी चाहिए, तभी बहू बेटी बनेगी और सास मां बनेगी।

—गुरप्रीत कौर चहल