घर को शो-रूम मत बनाइये

घर को सुव्यवस्थित रखना, सफाई पसंद या सलीकेदार रखना, हर चीज़ सजी हुई होना नि:संदेह प्रशंसनीय है लेकिन इस व्यवस्था में जरा सा फेरबदल न हो, जो चीज़ जैसी है, वैसी की वैसी बनी रहे, यह संभव नहीं लेकिन कई महिलाओं को ज़रूरत से ज्यादा घर को सजावट में रखना एक आदत सी होती है। इनकी इस आदत के कारण पति एवं बच्चे तनावग्रस्त हो जाते हैं तथा आए दिन उनको हिदायतों के कड़वे घूंट पीने पड़ते हैं। कपड़ा यहां क्यों रखे? मोजे वहां क्यों उतारे? टावेल तरीके से क्यों नहीं रखा? आदि अनगिनत टोका-टोकी से बच्चे और पति घर के बजाय बाहर ज्यादा रहना पसंद करते हैं। पति आफिस छूटने के बाद दोस्तों के घर पर जाते हैं और बच्चे पड़ोस के घर जम जाते हैं जहां उन पर बंदिशें नहीं होती। अगर ऐसा हुआ तो क्या फायदा ऐसी सजावट और सफाई का जो, घरवालों को घर का अहसास कम तथा शोरूम का अहसास ज्यादा दे। घर तो वह आरामगाह तथा विश्राम स्थल है जहां दिन भर की माथा-पच्ची से थका हारा व्यक्ति चैन की सांस लेना चाहता है, मनचाहे ढंग से आराम करना चाहता है परंतु यदि गृहस्वामिनी के माथे पर सिलवटें पड़ती हों तो घर से विरक्ति होना स्वाभाविक ही है। कई महिलाएं ड्राईंग रूम में किसी को ज्यादा जाने नहीं देती। कीमती फर्नीचर या कारपेट गंदे न हो जाए, इसलिए बड़ों को भी टोकने से बाज नहीं आती। बच्चों पर भी उनकी हज़ार बंदिशें रहती हैं, तो आप खुद ही बताइए कि आपका घर है या फिर ‘शोरूम’।यह सही है कि घर की सुव्यवस्था में पारिवारिक सदस्यों का योगदान अपेक्षित है, नहीं तो घर गंदा, बिखरा हुआ और अव्यवस्थित सा लगेगा, परंतु यह बात आप अपने पति एवं बच्चों को प्यार एवं धैर्य से भी समझा सकती हैं। पति यदि थका-हारा मन-पसंद तरीके से आराम करना चाहता है तो तानाशाह बनकर टोकें नहीं। बच्चों को प्यार से सफाई एवं सुव्यवस्था का महत्त्व समझाएं, टोका-टोकी से तो वे उद्दंड ही होंगे, समझेंगे कम। यह बात ध्यान में रखिए कि घर सबके आराम के लिए है, सबका सुख-चैन हरने के लिए नहीं।

          —मीना जैन छाबड़ा