भारतीय टेनिस का नया सितारा द्विज शरण

रामनाथन कृष्णन, विजय व आनंद अमृतराज बंधुओं और रमेश कृष्णन के रूप में भारत ने कुछ शानदार टेनिस खिलाड़ी दिए हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय मंच पर शानदार व सराहनीय प्रदर्शन करने के बावजूद कोई ग्रैंडस्लैम तो न जीत सके लेकिन डेविस कप में देश का नाम अवश्य रोशन किया। इनके बाद जो खिलाड़ियों की खेप आयी- लिएंडर पेस, महेश भूपति, रोहन बोपन्ना व सानिया मिर्जा- ने सफलता की नई बुलंदियों को स्पर्श किया और युगल (पुरुष, महिला व मिश्रित) स्पर्धाओं में अनेक ग्रैंडस्लैम जीते। पेस ने एकल में ओलंपिक (1996) कांस्य पदक भी जीता और सानिया मिर्जा ने महिला युगल व मिश्रित में ध्यान देने से पहले एकल के अनेक डब्ल्यूटीओ खिताब जीते।अब भारतीय युगल टेनिस परिवर्तन के दौर में है। महेश भूपति दौड़ में शामिल नहीं हैं, लिएंडर पेस अपने कॅरियर के अंतिम चरण में हैं और रोहन बोपन्ना भी शुरुआत की जगह अंत के करीब हैं। बेटे को जन्म देने के बाद सानिया मिर्जा के बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि वह सर्किट पर कब लौटेंगी, अगर लौटती भी हैं तो उनमें अपना पुराना दमखम होगा या नहीं? कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसे में द्विज शरण अपने लिए बहुत ही खामोशी से स्थान बनाते जा रहे हैं। हाल ही में जारी एटीपी युगल रैंकिंग में द्विज शरण 38 वें स्थान पर पहुंच गये हैं, जोकि फिलहाल उच्चतम रैंकिंग प्राप्त भारतीय रोहन बोपन्ना से एक स्थान ऊपर है। द्विज शरण के अनुसार, ’मेरे लिए यह आश्चर्यजनक लेकिन सुखद एहसास है। मैं बहुत खुश हूं। यह आसान नहीं है। भारत में महेश व लिएंडर जैसे लीजेंड रहे हैं जो विश्व में नंबर 1 रैंकिंग तक पहुंचे और रोहन भी 3 नंबर रैंकिंग प्राप्त कर चुके हैं। इसलिए यह अच्छा एहसास है।’गौरतलब है कि एक एटीपी चैलेंजर ट्राफी, जो उन्होंने जनवरी में जीती थी, के अलावा द्विज शरण के पास दिखाने के लिए 2018 में कोई अन्य खिताब नहीं है। लेकिन इससे उनकी प्रतिभा का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता। वह निश्चित रूप से ऐसे उभरते हुए सितारे हैं, जिनसे भविष्य में काफी उम्मीद रखी जा सकती है। उन्हें खिताब भले ही कम मिले हों, लेकिन द्विज शरण का प्रदर्शन अच्छा व सराहनीय रहा है। वह न्यूजीलैंड के अपने पार्टनर आर्टेम स्टिक के साथ विंबलडन के क्वार्टरफाइनल में पहुंचे। फिर नवम्बर 2017 में टॉप 50 में ब्रेक करने के बाद उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि वह इस से ड्राप आउट न करें। विंबलडन के बाद तो वह अपने कॅरियर की अब तक की सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग 36 तक भी पहुंचे। इस बारे में वह बताते हैं, ’यह बहुत अलग रहा है क्योंकि मैंने ज्यादा बड़ी प्रतियोगिताएं खेली हैं- काफी एटीपी 250, कुछ 500, एक 1000 और सारे ग्रैंडस्लैम। सारे अच्छे खिलाड़ी इन्हें खेलते हैं। अच्छा होता अगर मैं कुछ 250 जीत लेता, लेकिन यह आसान नहीं है। कुल मिलाकर यह बहुत ही सकारात्मक वर्ष रहा। मैं एक बार फिर से अपने कॅरियर की बेस्ट रैंकिंग पर पहुंच चुका हूं। विंबलडन क्वार्टरफाइनल मेजर में मेरा सबसे अच्छा रिजल्ट रहा और फिर एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक मिला। जो मैं कोशिश कर रहा हूं, अब उसके नतीजे सामने आने लगे हैं और यह मुझे अधिक परिश्रम करने के लिए प्रेरित करता है।’ इस सफलता में सिटक के साथ पार्टनरशिप महत्वपूर्ण रही है। वर्ष के पहले छह माह में 11 अलग-अलग पार्टनर्स के साथ खेलने के बाद, किवी के साथ जोड़ी स्थिर हो गई है, जिससे उन्हें काफी शांति मिली है। ऐसा द्विज शरण का कहना है। ’विंबलडन क्वार्टर फाइनल की चार सेटों में वह हार (जैक सोक व माइक ब्रायन के हाथों) मेरा अब तक का सबसे अच्छा मैच था। यह मैच बड़ी वजह थी कि सिटक व मैंने अपनी पार्टनरशिप को जारी रखा। इसलिए अब स्थिरता है। मन अब शांत है क्योंकि आप हर सप्ताह पार्टनर चयन करने के बारे में नहीं सोच रहे हैं,’ एक दार्शनिक के अंदाज में द्विज शरण समझाते हैं। रैंकिंग बढ़ने का अर्थ यह भी है कि अब द्विज शरण पूर्ण सीजन पर ध्यान दे सकते हैं बजाय इसके कि अधिक अंक अर्जित करने के लिए पूरे साल निरंतर खेलते रहें। वह 1,50,000 डॉलर के बंग्लुरु ओपन चैलेंजर में डिफेंडिंग चैंपियन हैं, लेकिन इस प्रतियोगिता में अब उनकी कोई खास दिलचस्पी नहीं है क्योंकि रैंकिंग में उठाना या गिरना बहुत मामूली होगा। वह बताते हैं, ‘मुझे दरअसल लम्बा ऑफ  सीजन चाहिए ताकि अगले वर्ष मैं तरोताजा होकर खेल सकूं और मेरा जो ग्रैंडस्लैम जीतने का लक्ष्य है।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर