मीराबाई चानू  डर ने बनाया जिन्हें विश्व चैम्पियन

मीराबाई चानू को 5 अगस्त 2018 की रात कुछ इस तरह से याद है- ‘शाम को मैंने कैंप (एनआईएस) में हल्का जिम सत्र किया था, सीरियल्स व अण्डों का डिनर किया और फिर फोन पर थोड़ी देर अपनी मां से बात की। रात की शांत हल्की ठंडक में न चाहते हुए भी मैं इस तरह से सो गई जैसे बच्चा अपनी मां की गोद में सो जाता है। शायद मैं बहुत थक गई थी।’ एशियन गेम्स से पहले के कैंप में चानू जब सुबह को उठतीं तो उनके ऐसा दर्द होता जैसे सैंकड़ों सुईयां उनकी कमर में किसी ने चुभो दी हों। दर्द धीरे-धीरे खत्म हो जाता या वह अपने को दिलासा देकर दिखावा करतीं कि तीव्र प्रैक्टिस सत्र के दौरान सब कुछ ठीकठाक है। वह बताती हैं, ‘विश्व चैंपियनशिप के बाद से मैं एशियन गेम्स को दिमाग में रखकर ट्रेनिंग कर रही थी। एशियन गेम्स का स्तर ओलंपिक जैसा है और इसमें पदक मिलना टोक्यो गेम्स के लिए राह हमवार कर देता। हर चीज सही थी, लेकिन...।’वह कहते कहते रुक जाती हैं, उनका गला भर आता है। डाक्टरों ने उन्हें वजन उठाने से मना कर दिया था। एक वेटलिफ्टर के लिए इससे बुरी कोई खबर नहीं होती है। अब शरीर का दर्द दिमाग की परेशानी बन गया था। उन्हें एशियन गेम्स से अलग होने का निर्णय लेना था और वह भी ऐसे समय पर जब हर किसी को उम्मीद थी कि वह वेटलिफ्टिंग में जो 20 वर्ष का पदक-सूखा है, उसे दूर कर देंगी। वह एक बड़ी प्रतियोगिता में चोटिल स्थिति में नहीं जा सकती थीं, इसलिए एशियन गेम्स से हटना ही पड़ा। इससे भी बड़ी समस्या यह थी कि दर्द का कारण मालूम नहीं हो पा रहा था। एक्सरे में न क्रैक था और न ही स्ट्रेस फ्रैक्चर। पटियाला से लेकर दिल्ली तक हर डाक्टर बस यही कहता कि दो सप्ताह तक वजन न उठाएं, बस आराम करें। चानू के लिए मन व शरीर दोनों में युद्ध की स्थिति थी। वजन व गुरुत्वाकर्षण से अधिक हर वेटलिफ्टर को अकेलेपन के राक्षस से अधिक लड़ना पड़ता है। मंच पर पहुंचने से पहले कोच व दोस्त सब होते हैं। फिर अचानक आप अकेले हो जाते हैं। चानू के अनुसार, ‘यह कभी-कभी डिप्रेसिंग होता है। मैं इससे अतीत में नर्वस भी हुई हूं। दो वर्ष पहले रिओ सेंटर में कुछ ऐसा ही हुआ था। अचानक मेरा दिमाग बंद हो गया जैसे किसी ने मुझे ड्रग्स दे दी हों। जो कुछ कोच ने कहा था, उस पर मैं फोकस करने का प्रयास कर रही थी, लेकिन मेरे दिमाग में कुछ नहीं आ रहा था। जैसे आप परीक्षा में बैठे हों, सब उत्तर जानते हैं लेकिन एक भी शब्द नहीं लिख पा रहे हों।’ वह चानू के जीवन की सबसे अकेली रात थी।