भूल का एहसास

बोर्ड परीक्षा का परिणाम प्रकाशित हुआ तो अखबार में अपना रोल नम्बर न देख कर चेतन की आंखों के आगे अंधेरा-सा छा गया तो आखिरकार वही हुआ जिसका डर था। उसे पहले से ही अंदेशा था कि उसकी परीक्षाएं ठीक नहीं हुई हैं, अत: वह कहीं फेल ही न हो जाए? मगर फिर भी चेतन के दिल के किसी कोने में एक छोटी सी उम्मीद की किरण टिमटिमा रही थी कि कहीं अगर संयोग से परीक्षा को चैक करने वाला निरीक्षक नरम दिल का निकले और कम से कम पास होने लायक मार्क्स भी दे दे तो उसका बेड़ा पार हो जायेगा। मगर परीक्षा के परिणाम ने चेतन की सारी की सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया अथवा तुषाराघात कर दिया था। अब वह घर में क्या मुंह दिखायेगा? उसे अपने पिछले साल भर के कारनामे याद आने लगे। जब वह दसवीं में गया था। दो-चार महीने तो ऐसे ही खेलकूद में ही गुजार दिए थे। अभी तो रेस्ट करने का समय है, बाद में पढ़ाई कर ली जाएगी। फिर बाद के महीनों में भी उसका रवैया रहा और वह अपनी पढ़ाई को लेकर टाल-मटोल ही करता रहा। घर में जब सभी उसे पढ़ने की सलाह देते थे तो वह उन्हें दिखाने के लिए किताबें लेकर बैठ तो जाता था मगर उसका दिमाग कहीं का कहीं घूमता रहता था। उसकी दोस्ती (संगत) कुछ ऐसे लड़कों से हो गई थी जिनकी पढ़ाई में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी। स्कूल से गायब रह कर इधर-उधर आवारा घूमना, फिल्में देखना, सिगरेट पीना, तम्बाकू खाना, ताश और जुआ तक खेलना जिनका रोज़ का ही कार्य था। उन लड़कों का कहना था कि जब परीक्षा आएगी तो एक बार ही खूब मेहनत करके सारे के सारे विषयों को देख लेंगे। उनका यह भी कहना था कि वे हमेशा ही ऐसा करते हैं और आज तक कभी भी फेल नहीं हुए और उन्हीं लड़कों की गलत संगत में पड़कर चेतन ने पढ़ाई को ज्यादा महत्व नहीं दिया अहमियत ही नहीं दी। और उसी का नतीजा यह निकला कि जब परीक्षाएं सिर पर आ गईं तो वह क्या पढ़े और क्या नहीं, इसी जद्दोजहद में फंसा रहा। पढ़ने को ढेर सारी चीज़ें थीं और समय बेहद कम। वह नोट्स आदि के लिए अपने दोस्तों के पास दौड़ता रहा। मगर किसी से भी कोई खास मदद हासिल नहीं हुई। परीक्षा के दिनों में भला कौन उसे अपने नोट्स देता? वह पढ़ाई में दिन-रात जुटा रहता। उसका खाना-पीना यहां तक कि घर से बाहर निकलना भी कम हो गया। दिन-रात किताबों-कापियों से घिरे रहने के कारण उसके स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ने लगा था और फिर कुछ ही दिनों में उसने बिस्तर पकड़ लिया था, बीमार होने के बाद पढ़ाई तो मुश्किल ही थी, अब वह सिवाय दिन काटने के अलावा और कुछ भी नहीं कर सकता था और उसकी बीमारी इतनी लम्बी चली कि जो भी कुछ थोड़ा बहुत पढ़ा था, उसका रिवीज़न नहीं कर सका और उसे भी भूल गया और यह मात्र संयोग ही था कि परीक्षा के दिनों में उसके स्वास्थ्य में कुछ थोड़ा-सा सुधार हुआ, जिससे कि वह परीक्षा में बैठ सका। मगर उसके ज्यादातर पेपर बहुत ही खराब हुए (खराब हो गए) वह दु:खी मन से परीक्षा परिणाम का इंतज़ार करता रहा मगर कोई उत्साह नहीं था। उसे अपने पास होने की उम्मीद तो बहुत ही कम थी और अंतत: वहीं हुआ भी था। जब वह घर पहुंचा तो पापा आफिस से आ चुके थे। उन्होंने उसे देख कर पूछा चेतन! क्या रहा तुम्हारा परीक्षा परिणाम। जी पापा... उसने धीरे से कहा—मैं... फेल हो गया... इतने से शब्द कहते हुए उसकी निगाह अपने पैरों में गड़ सी गई। पापा थोड़ी देर तक खामोश रहे फिर उन्होंने कहा इन्सान से अगर कोई भूल हो जाए तो उसमें उतनी गलती नहीं है कि जितनी कि उस भूल से आइन्दा कोई सबक न लेने में है। बीते समय में तुमने जो भी गलतियां की हैं, अगर तुम उन्हें दोबारा न दोहराओ तो सम्भव है कि अगले साल पास हो जाओ। पापा! जी! मुझे गलती का एहसास है। उसने कहा—मैं आपको वचन देता हूं कि इस साल से यह गलती दोहराऊंगा नहीं। बस आप मुझे एक बार माफ कर दें। चेतन! के स्वर में दृढ़-निश्चय का भाव था, जिससे पता चल रहा था कि उसे अपनी भूल का एहसास हो चुका है। इस बात को महसूस करके चेतन के पापा धीरे से मुस्करा उठे। मानो उन्होंने उसे माफ कर दिया हो।