बरखा - बहार...

 तितलियों भंवरों की तरह एक फूल का रस चूसा फिर अन्य फूलों की ओर रुख कर लिया। इससे कदापि मन नहीं भरेगा। तृष्णा बढ़ती जाती है। तृप्ति खत्म नहीं होती। बरखा के इन विचारों को सुनकर हाल तालियों से गूंज उठा। इसके बाद पम्मी को बोलने का मौका दिया गया। उसने भी प्रभावशाली ढंग से अपने विचार रखे। पम्मी ने कहा ‘दोस्तो ! भगवान ने नर-नारी को आदिम-हौब्बा के रूप में क्यों पैदा किया ? सृष्टि चलाने के लिए यह ज़रूरी भी है। सृष्टि जितनी रोचक है उतनी गुंझलदार भी है। हां, अगर प्यार की बात की जाए तो सुनिए प्यार किया नहीं जाता यह तो स्वयंमेव हो जाता है। अपने विचारों को प्रस्तुत कर पम्मी जब अपना स्थान ग्रहण करने एक कुर्सी की ओर जाने लगा तो बहार ने उससे पूछ ही लिया, ‘महाशय ! भला प्यार और विवाह के बारे में आपके विचार क्या हैं पम्मी ने पलट कर कहा, ‘बहार! जहां प्यार हो वहां विवाह होना स्वाभाविक है। याद रखो! प्यार और विवाह दो अलग भाव नहीं। पम्मी ने ही फिर प्रश्न दागा, ‘क्या तुम प्रेम विवाह की बात कर रही हो?’ हां-हां, पम्मी, मैं इसी बात का उत्तर चाहती हूं। तभी पम्मी ने तुरन्त बहार को बरखा से दोस्ती करवाने की प्रार्थना भी कर दी। बहार ने कहा,पम्मी, तुम भूल जाओ बरखा को। वह प्यार-व्यार को नहीं मानती, नहीं जानती, नहीं पहचानती। वह बहुत स्वाभिमानी है। बहार ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, पम्मी! समूची धरती पर दरी बिछी नहीं होती इसलिए स्वयंमेव बूट पहन लेने चाहिए। पम्मी एक और बात मैं तुम्हें बताना चाहती हूं कि जीवन में सफेदे के पेड़ की तरह न बनना जो हवा चलते ही टूट जाता है। बांस के पेड़ की तरह बनना जो हवा चलने पर झुक कर पुन: खड़ा हो जाता है। अच्छा, एक बात बताओ कि बरखा में ऐसा क्या गुण है जो तुम उससे दोस्ती करने को इतने बेकरार हो? ‘बरखा की भोली सूरत, प्यारी सीरत और उसका बड़बोलापन मुझे अपनी ओर बराबर आकर्षित करते रहते हैं,’ पम्मी ने उत्तर दिया। सावन-भादों के महीनों में आसमान पर उमड़ते-घुमड़ते बादल आवारगी का नयनाभिराम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। आज आसमान बादलों से पूरी तरह आच्छादित था। रिमझिम बारिश होने से मौसम काफी सुहावना हो चला था। हैरी ने पम्मी को छेड़ते हुए पूछा,‘मलकी से कोई बात बनी, मलकी आज कहीं भी दिखाई नहीं दे रही। नहीं यार! वह मेरी मलकी नहीं। वह पता नहीं किस हाड़-मांस की बनी है। हैरी जोर से हंस कर बोला, वो देखो बरखा-बहार आ रही हैं। पम्मी का दिल खुश हो गया। प्रथम लेक्चर पंजाबी प्रवक्ता का था। हल्की बूंदाबांदी जारी थी। छात्र-छात्राएं प्राय: ऐसे मौसम में पढ़ना नहीं चाहते। जब प्रवक्ता ने लोकगाथा ‘हीर-रांझा’ पर लेक्चर देना शुरू किया तो सभी विद्यार्थी पीरियड लगाने को तैयार हो गए। पर आज न जाने क्या हुआ! बरखा कनखियों से पम्मी को देखे जा रही थी। पम्मी इस बात को ताड़ गया था। लेक्चर समाप्ति पश्चात् विद्यार्थी पुस्तकालय की ओर जा रहे थे तो बरखा ने आगे बढ़कर पम्मी को गुड मोर्निंग कही। पम्मी ने भी शुभ प्रभात कह उत्तर दिया। बरखा का दिल बहुत तेज़ी से धड़क रहा था। पम्मी की मुराद पूरी हो गई। अब बरखा अपनी सखी बहार से थोड़ी दूरी बना कर रखने लगी। यह अब उसकी विवशता भी थी। प्रेमी प्राय: एकान्त और अंधेरा ढूंढते हैं। एक दिन बहार ने बरखा को कह ही दिया, ‘सखी ! मुझे तुम से कोई गिला-शिकवा नहीं है।’ परन्तु मेरी एक बात हमेशा याद रखना कि प्यार में धोखा न खा लेना क्योंकि प्यार में कभी-कभी धोखा भी मिलता है। वह बरखा को छेड़ते हुए कहने लगी, अजी संभलना बड़े धोखे हैं इस प्यार की राहों में.............।