विलुप्त होने की कगार पर कश्मीरी हिरण हांगुल

भारतीय उपमहाद्वीप में कश्मीरी स्टैग को सर्वस कैनाडिनिसिस या हांगुल भी कहा जाता है। हांगुल लाल हिरण की आखिरी बची हुई नस्ल है। यह कश्मीर घाटी की ऊंची पहाड़ियों, जंगलों और घनी वादियों तथा हिमाचल प्रदेश के चंबा ज़िले में पाया जाने वाला जानवर है। यह हमेशा 2 से 18 के झुंड में रहते हैं। कश्मीर में यह मूल रूप से दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान में मिलते हैं। गहरे खाकी रंग के हांगुल के शरीर के पिछले हिस्से का रंग हल्का भूरा होता है और पिछली टांगों का ऊपरी हिस्सा भीतर की ओर से सफेद रंग का होता है। दुम का अखिरी हिस्सा काला होता है। दोनों सींगों में पांच-पांच बड़े सींग होते हैं। माथे के पास सींग के निचले हिस्से में दो कांटे होते हैं, सींग पहले बाहर और फि र अंदर की ओर से घुमावदार होता है।  बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के पशु विज्ञानी ई.पी.गी द्वारा इस हिरण पर विस्तृत अध्ययन किया गया था। फियोग गिनेस और टिम क्लटन बोर्क विख्यात हिरण विशेषज्ञों द्वारा कश्मीर जाकर इनका विस्तृत डाटा तैयार किया गया, जिसमें पाया गया कि हांगुल की आबादी में लगातार घटोत्तरी हो रही है। इसकी घटती आबादी को देखते हुए इसे आईयूसीएन द्वारा संकटग्रस्त की श्रेणी में रखा गया है। कहा जाता है कि 1940 में कश्मीर के पर्वतीय क्षेत्रों में हांगुल की अच्छी खासी आबादी थी, उस समय यह 3000 से 5000 की संख्या में मौजूद था। साल 2009 में यह घटकर 234 और 2011 में 218, साल 2015 में इनकी आबादी घटकर मात्र 186 रह गई। इसकी घटती आबादी को देखते हुए आईयूसीएन, जम्मू-कश्मीर सरकार और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ द्वारा इसे संरक्षित करने के लिए विशेष तौर पर प्रोजेक्ट चलाया गया। इस प्रोजेक्ट द्वारा 1980 तक इनकी आबादी बढ़कर 340 हो गई थी। श्रीनगर के जबरवान की तलहटी में स्थित 141 किलोमीटर में फैले दाचीगाम नेशनल पार्क में इस हिरण की आबादी इधर-उधर बिखरी है। इस पार्क में इन्हें विशेष तौर पर संरक्षित करने के लिए कई प्रयास किये जा रहे हैं। दाचीगाम के ऊपरी हिस्से पर गुर्जर चरवाहों के कब्जे के कारण और गर्मियों में उनके पशुओं के साथ आने वाले शिकारी कुत्तों की वजह से इनकी संख्या में लगातार कम हो रही है। इनके खूबसूरत और बेशकीमती सींगों के कारण इन्हें लगातार मारा जा रहा है।हालांकि दाचीगाम से जुड़ा कंजर्वेशन ब्रीडिंग सेंटर इनकी जनसंख्या को बढ़ाने के लिए प्रयासरत है। जहां इन्हें पालतू बनाने और इनकी आबादी को बढ़ाने के लिए अनुकूल परिस्थितियां मुहैय्या कराकर इन्हें बचाने के प्रयास किये जा रहे हैं। इसके लिए ऊपरी दाचीगाम में गर्मी के दिनों में चरवाहों द्वारा अपने जानवरों को घास चराने के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है ताकि इन दिनों हांगुल को भोजन की कमी न रहे और दूसरे अन्य जानवरों के कारण उसे भोजन का दबाव न झेलना पड़े। दाचीगाम नेशनल पार्क में पर्यटकों की भीड़ को कम करने, उनके वाहनों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने, अवैध शिकार को रोकने के लिए पार्क के कर्मचारियों द्वारा संवेदनशील हिस्सों में नियमित पैट्रोलिंग करने और शिकारियों पर पैनी निगाह रखने जैसे उपाय किये जा रहे हैं। इसके अलावा देहरादून वाइल्ड लाइफ  इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के विशेषज्ञ समय-समय पर हांगुल की आबादी को बढ़ाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। वाइल्ड लाइफ  इंस्टीट्यूट ऑफ  इंडिया द्वारा हांगुल के व्यवहार और उसकी इकोलॉजी को समझने के लिए वैज्ञानिक अध्ययन किये जा रहे हैं। इसके बावजूद शिकारी मौका पाकर इनका शिकार कर लेते हैं और इनकी घटती जनसंख्या पशु विज्ञानियों के लिए सचमुच चिंता का विषय है।

—देवेश प्रकाश