ईश्वर से शिकायत मत करो, उसे धन्यवाद दो!

मुस्लिम बादशाह महमूद शिकार करके अपने नौकर के साथ लौट रहे थे। वे राह भटक गए। भूख लगी तो एक वृक्ष के नीचे खड़े हो गए जो फलाें से लदा था। वृक्ष अपरिचित था सो फल भी अनजान। महमूद ने उसे तोड़ा और चाकू निकालकर एक टुकड़ा काटकर नौकर को दिया। यह उसका स्वभाव था। वह नौकरों सेवकों को वही सम्मान देता था जो अपने परिजनों को। जनता का शोषण करके, उनका पेट काट करके वह अपना कोष नहीं बढ़ाता था। उन्हें अभाव में रखकर बाहर दान-पुण्य, परोपकार करना वह छलावा व पाप समझता था। उसे धर्म के मर्म की बखूबी समझ थी।नौकर ने खाया। बड़े अहोभाव से कहा-थोड़ा और...। इस तरह फल का तीन हिस्सा वह खा गया। वह और मांगने लगा। इस दौरान वे चलते रहकर आगे निकल आए थे, सो और फल तोड़ना भी संभव न था। महमूद ने कहा, अब एक टुकड़ा मुझे खाने दे। वह नहीं माना और फल छीनने लगा। बादशाह ने फल को जल्दी से मुंह में डाल लिया। इतनी कड़वी चीज उसने अपने जीवन में कभी न चखी थी। उसने थूक दिया और नौकर से पूछा, यह जहर है तूने बताया क्यों नहीं? खाया क्यों? उसने कहा-जिन हाथों से इतने स्वादिष्ट फल मिले हों, उन हाथों से मिले एक कड़वे फल की क्या शिकायत। महमूद रोने लगा.....नौकर को जिगर से लगा लिया। शिकायत दूर करती है, धन्यवाद पास लाता है। सख्ती-शोषण सर्वनाश करता है, सहयोग-समत्व-समर्पण विकास का द्वार बनता है। हमारी पात्रता क्या है? योग्यता क्या है? कमाई क्या है? कुछ भी नहीं। कितना कुछ मिला है हमें जो बहुतों के लिए सपना है। यह उसकी अनुकम्पा है, उसका प्रसाद है। इसके लिए हम उसके प्रति अहोभाग से नहीं भरते, उसे कभी धन्यवाद देकर उसके प्रति समर्पित नहीं होते। उससे हमेशा और की मांग करते रहते हैं। उससे मनमानी चीजें न मिलने पर शिकायत करते रहते हैं। जो नहीं मिला, नहीं मिलता। उसकी बात ही नहीं उठाओ। सिर्फ सही तरह से प्रयास करते जाओ, अपना कर्तव्य मात्र समझकर।  धीरे-धीरे हृदय प्रेम, भक्ति रस से भरता जायेगा। आनंदित करने वाली, सहज बनाने वाली, तृप्ति देने वाली नई हवाएं आने लगेंगी। जिंदगी में हमारी चाहत के अनुसार सब कुछ घटित नहीं होता। सब कुछ हमें नहीं मिलता। हम चाहे तो ऐसा होता भी है। मतलब दोनों बातें सत्य हैं। ‘चाह’ जो ‘राह’ दे। उस पर चलने से मंजिल मिलती है।चित्त को शिकायत के बजाय धन्यवाद से भरें और धन्यवाद रुकावट न बन पाए, इसलिए ईमानदारी से गति करते रहें। अक्सर शिकायती दौड़ता है, धन्यवादी बैठ जाता है। ऐसा न हो। गहरे संतुलन की साधना है यह। होश रखेंगे तो सब सध जायेगा।


—डा. विकास मानव