गंभीर रूप धारण कर सकती है सांस की बीमारी


‘क्रानिक आब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज’ सांस की एक ऐसी बीमारी है, जिससे दुनिया भर में सबसे ज्यादा लोग ग्रसित हैं। पूरी दुनिया में सांस की एक बीमारी ‘क्रानिक आब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज’ से लोग पीड़ित हैं, लेकिन भारत में ज्यादा लोग पल्मोनरी ट्यूबरक्लोसिस से ग्रसित हैं। इस बीमारी के कारण फेफड़ों की कार्यप्रणाली बिगड़ती है। फिर शरीर में पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन नहीं पहुंचती, जिससे सांस की परेशानी पैदा होती है। थकावट जल्दी आती है। रोग के प्रति लापरवाही बरतने पर स्थिति गम्भीर हो जाती है और इलाज कठिन हो जाता है।इसके कई कारण हैं, लेकिन कफ एक आम कारण है। कफ से छुटकारा पाने के लिए रोगी जब डाक्टर के पास जाता है तब डाक्टर कुछ एंटीबायोटिक्स दे देते हैं, जिसको खाकर रोगी अपने को ठीक महसूस करता है। फिर कफ की समस्या होने पर डाक्टर फिर एंटी बायोटिक्स देते हैं। बार-बार एंटीबायोटिक्स दवाइयां खाने से धीरे-धीरे सांस की समस्याएं पैदा होने लगती है, जिसका पता नहीं चलता लेकिन आगे चलकर समस्या गम्भीर हो जाती है।
सांस की बीमारी पैदा करने का मुख्य कारण सिगरेट है। सिगरेट के धुएं का श्वास नली पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इसका दुष्प्रभाव श्वास नली पर धीरे-धीरे पड़ता है, जिसका पता रोगी को नहीं चलता तथा डाक्टर भी इसका पता लगाने में असमर्थ होते हैं। चूल्हे तथा स्टोव के धुएं का भी हानिकारक प्रभाव श्वास नली पर पड़ता है।
अक्सर लोग रोग गम्भीर हो जाने पर ही इलाज के लिए डाक्टर के पास जाते हैं। ऐसी स्थिति में डाक्टर को चाहिए कि रोगी की मेडिकल हिस्ट्री तैयार करें तथा फेफड़े की जांच करें। 
डाक्टर को जांच में इतना कुशल होना चाहिए कि वह रोग का प्रारंभिक अवस्था में ही पता लगा सके। श्वास नली में अवरोध पैदा हो जाने पर उसे पूरी तरह दूर नहीं किया जा सकता लेकिन फेफड़ों के परीक्षण से श्वास की बीमारियों पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है। 
—अशोक चट्टोपाध्याय