आधुनिकता के दौर में पंजाबियों से दूर होती जा रही है देसी गुड़ की मिठास


मलौद, 20 नवम्बर (अ.स.): लगभग 20 वर्षों के अंतराल से पीढ़ी दर पीढ़ी देसी बेलने का गुड़ बनाने का धंधा मिशनरी युग व आधुनिकता के दौर में समाप्त ही होता जा रहा है। ऐसा लगता जैसे पड़ौसी राज्यों के प्रवासियों के हाथ ही रह गया हो। वैसे तो कृषि के धंधे, मकान बनाने, औद्योगिक कारखानों सहित बहुत सी जगहों पर प्रवासियों ने काम के ज़रिये कब्ज़ा किया लगता है, क्योंकि पंजाबी युवा पिछले समय से रोज़गार न मिलने के कारण विदेशों की धरती की ओर प्रवास कर रहे हैं, पीछे अभिभावकों के अकेले वश की बात नहीं तथा न लेबर मिलती है। प्रवासियों ने गुड़ बनाने के धंधे को रोटी रोज़ी का साधन बना लिया। बुज़ुर्गों के अनुसार आज़ादी के समय पंजाब में कोई शुगर मिल नहीं थी। हर किसान समर्था, ज़रूरत के अनुसार गन्ना बीजता था तथा बनाए गुड़ से अपने परिवार के अतिरिक्त काम करते साझी सीरी, रिश्तेदारों व लिहाज़ियों का भी काम चल जाता था। हर घर गुड़ की चाय बनाने के लिए 35 किलो से दो-अढ़ाई क्ंिवटल तक का गुड़ जमा करता था। काम करते लोग दोपहर की रोटी के साथ गुड़ ज़रूर खाते थे। बच्चे, बड़े सभी चीनी के गुड़ का आनंद चखते थे। चीनी अमीरों के चोज होते थे, देखा देखी में समाज से गुड़ की मिठास दूर होती गई तथा चीनी के तेज़ मीठे ने हमें जकड़ लिया। चाहे किसानों ने कमाद बीजना तो शुरू किया परन्तु बेलना चलाने की बजाय शुगर मिलों में गन्ना ले जाया जाता है। यू.पी. के प्रवासी बेलने चलाकर समाज से समाप्त हो चुकी मिठास भरने की कोशिश कर रहे हैं। रमन शाहू के अनुसार लगभग 50 हज़ार रुपए वार्षिक कज़र् पर एकड़ ज़मीन लेकर नवम्बर से मार्च अंत तक बेलना चलाते हैं। 300 से 350 रुपए क्ंिवटल गन्ना मिलता है जिसमें से छ:-साढ़े छ: किलो गुड़, शक्कर 5 किलो तैयार होती है, गुड़ 50 रुपए किलो व शक्कर 60 रुपए किलो बेची जाती है। उसके अनुसार अब काफी लोग बीमारियों से बचने के लिए चीनी से दूर होते गुड़ को पसंद करते घरों के लिए लेकर जाते हैं।
डाक्टर दविन्द्र गेरा (गेरा नर्सिंग होम) का मानना है कि गुड़ में फासफोरस, आयरन होने के कारण स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभप्रद है। हड्डियां मज़बूत करता है, आयरन होता है, एच.बी. बनाता है, इम्युनिटी को बढ़ाते ताकतवार बनाता है, लीवर साफ व ताकतवर करता है तथा बढ़ रहे प्रदूषण से बचने के लिए गुड़ को तुरंत हमारे आहार में शामिल करना चाहिए।