लाहौर में गुमनामी का सन्ताप भोग रही है रानी ज़िंदा की समाधि

अमृतसर, 21 नवम्बर (सुरिन्द्र कोछड़): लाहौर शहर में मौजूदा महाराजा रणजीत सिंह की समाधि के पीछे यात्रियों के लिए बनाए कमरों के बीच डेढ़ फुट ऊंचे थड़े पर बनाई गई महाराजा रणजीत सिंह की पत्नी रानी जिंद कौर की समाधि गत 70 वर्षों से गुमनामी का संताप भोग रही है। उपरोक्त समाधि पर इसके इतिहास संबंधी कोई सूचना बोर्ड या तख्ती न लगी होने के कारण तथा इसके अस्तित्व बारे कोई जानकारी न होने के कारण अक्सर भारत से पाकिस्तानी गुरधामों की यात्रा के लिए श्रद्धालु कमरों की कमी के कारण इस समाधि पर ही दरियां बिछाकर सो जाते हैं या इस समाधि का उपयोग गीले कपड़े सुखाने के लिए करते हैं। पाकिस्तान पुरातत्व विभाग, इवैकुई ट्रस्ट प्रापर्टी बोर्ड सहित पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को इस ओर ध्यान देते हुए उक्त समाधि का नवनिर्माण करवाकर इसके पास समाधि से संबंधित सूचना बोर्ड लगाना चाहिए। वर्णनीय है कि 1 अगस्त 1863 को कैनसिंग्टन (लंदन) में रानी जिंद कौर उर्फ ज़िंदां का निधन होने के बाद उनका शरीर पहले अस्थाई तौर पर कैंसल ग्रीन कब्रिस्तान में दफनाया गया, फिर अगले वर्ष उनका शव भारत भेज कर नासिक में अंतिम संस्कार किया गया। इसके पूरे 61 वर्ष बाद 27 मार्च 1924 को महाराजा दलीप सिंह की शहज़ादी बंबा ने नासिक से अपनी दादी रानी जिंद कौर के शरीर की राख लाकर लाहौर में महाराजा रणजीत सिंह की समाधि के पास स. हरबंस सिंह रईस अटारी से अरदास करवाकर एक थड़े के रूप में उक्त समाधि तैयार करवाई। इस समाधि के बिल्कुल पीछे महाराजा खड़क सिंह, कंवर नौनिहाल सिंह व शेर-ए-पंजाब से सती होने वाली चार रानियों, सात दासियों व एक कबूतरों के जोड़े की समाधि स्थापित है।