संकीर्ण और नकारात्मक सोच

पाकिस्तान के कस्बे करतारपुर साहिब में प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा करतारपुर गलियारे के लिए रखे गए नींव पत्थर के समय जो घटनाक्रम हुआ और जिस तरह की स्पष्ट बातें प्रधानमंत्री इमरान खान ने कही हैं, उन्होंने भारतीय शासकों को हैरान भी कर दिया है और परेशान भी। इस समय केन्द्र सरकार के लिए यह बात समझनी निहायत ज़रूरी है कि पाकिस्तान में लोगों द्वारा चुनी गई नई सरकार को बने महज़ तीन महीने हुए हैं। 100 दिन पूर्व भी शपथ ग्रहण समारोह के बाद इमरान खान ने विशाल हृदय से भारत के साथ अच्छे संबंध बनाने की बात करते हुए यह कहा था कि यदि भारत दोस्ती के लिए एक कदम उठाएगा, तो वह दो कदम आगे बढ़ाएंगे। उन्होंने भारत को बातचीत करने का निमंत्रण भी दिया था। लगभग दो महीने पूर्व न्यूयार्क में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात भी निश्चित हुई थी, परन्तु बाद में भारत सरकार इससे पीछे हट गई थी। पाकिस्तान की समय-समय पर रही सरकारों ने गत कई दशकों से भारत के विरुद्ध छद्म जंग छेड़ रखी है। उन्होंने हमेशा अपने पाले हुए आतंकवादी संगठनों द्वारा भारत को लहू-लुहान करने के लिए कार्रवाइयां जारी रखी हैं। यह भी कहा जाता रहा है कि पाकिस्तान की चुनी हुई सरकारें सेना के दबाव के कारण अपने देश के लिए पर्याप्त राजनीतिक फैसले लेने में लाचार बनी रही हैं और यह भी कि वहां के पूरे ताने-बाने पर सेना का प्रभाव है। समय-समय पर पाकिस्तान में सेना की ही नीति चलती रही है। इसमें किसी भी तरह का कोई सन्देह नहीं रहा। चुनी हुई सरकारों को सेना ने अक्सर कठपुतलियां बनाए रखा। उदाहरण के तौर पर एक तरफ भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बस द्वारा लाहौर का ऐतिहासिक सफर करते हैं, वहां के प्रधानमंत्री नवाज़ शऱीफ तहेदिल से उनका स्वागत करते हैं, परन्तु उसी समय सैन्य प्रमुख परवेज़ मुशर्रफ कारगिल हथियाने की योजनाएं बनाते रहे हैं। जिससे अंत में दोनों देशों के बीच जंग छिड़ गई।  नि:संदेह पाकिस्तान में आतंकवादी संगठनों का बड़ा जमावड़ा है। उनसे निजात पाना किसी भी सरकार के लिए बेहद मुश्किल है। दशकों से भारत के विरुद्ध अपनाई गई नीतियों को व्यवहारिक रूप में कुछ दिनों या महीनों में बदला नहीं जा सकता। न ही अचानक ऐसा किया जाना सम्भव नज़र आता है। परन्तु वहां के नए प्रधानमंत्री ने अब तक संक्षिप्त समय में जो कुछ किया है वह बड़ी उम्मीद अवश्य पैदा करता है। इमरान खान को इस बात का एहसास है कि आज पाकिस्तान आर्थिक तौर पर बिल्कुल खोखला हो चुका है। इस संबंध में उन्होंने विस्तृत बयान भी दिए हैं और आर्थिक सहायता के लिए चीन और सऊदी अरब के दौरे भी किए हैं। नई सरकार के लिए यह भी बड़ी चिंता का विषय हो सकता है कि अमरीका जैसे लम्बे समय से रहे उसके सहयोगी ने चेतावनियां देकर उसको बड़ी आर्थिक सहायता बंद करने का ऐलान कर दिया है। इमरान खान ने बार-बार देश की कमज़ोर आर्थिकता और बड़े स्तर पर फैली गरीबी का उल्लेख किया है। उन्होंने अपनी प्राथमिकता अपने लोगों को ़गरीबी से निकालने और विकास के द्वार खोलने की निश्चित की है। खान का यह विश्वास भी है कि दोनों पड़ोसी देश हथियारों की होड़ में अपने आर्थिक संसाधन फिज़ूल गंवा रहे हैं। खान ने ऐसी सोच में से ही दोनों देशों के संबंध सुधारने की दिशा में अपनी ओर से अधिक कदम उठाने की बात कही है। इसी पृष्ठभूमि को सामने रख कर ही करतारपुर गलियारे की बात पर विचार किया जा सकता है। नि:संदेह भारत सरकार की ओर से गत 20 वर्षों से इस गलियारे की मांग की जा रही थी। परन्तु गत दिनों सहमति व्यक्त करके जब केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने अपनी ओर का गलियारा मुकम्मल करने के लिए पाकिस्तान को ऐसी ही अपील की, तो शायद भारत सरकार को ख्वाबो-ख्याल भी नहीं था कि पाकिस्तान इस कद्र तेजी से इस दिशा में कदम उठाएगा और यह गलियारा बनाने के ऐलान के साथ ही प्रधानमंत्री द्वारा इसका नींव पत्थर रखने की तिथि का भी ऐलान कर देगा। इस ऐलान के बाद भारत सरकार को अपनी तरफ पहले नींव पत्थर रखने की जल्दबाज़ी पड़ गई। पाकिस्तान की ओर से आयोजित इस समारोह में जिस कद्र स्पष्ट, दृढ़ और विशाल हृदय से इमरान खान बोले, उसकी शायद भारत सरकार को उम्मीद नहीं थी। 71 वर्ष के लम्बे समय के बाद खान सरकार ने तत्काल करतारपुर गलियारा खोलने का ऐलान कर दिया था। समारोह में स्पष्ट रूप में बोलते हुए उन्होंने कहा कि वह भारत के साथ सुखद संबंध बनाना चाहते हैं। दोनों देशों में कश्मीर ही एक ऐसा मामला है जिसको दोनों देशों का नेतृत्व मज़बूत इच्छा शक्ति से हल कर सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि आज मनुष्य ने बेहद मेहनत करके चांद पर कदम रख लिए हैं, तो इस मामले को हल करना कितना मुश्किल है? इससे भी आगे बढ़ते हुए उन्होंने कहा, कि यदि जर्मनी और फ्रांस  जिनमें अक्सर रक्त-रंजित युद्ध होते रहे थे, दोनों देशों के लाखों ही लोग इनमें मारे जाते रहे थे, वह देश यदि एकजुट होकर शांति से विकास के पथ पर आगे बढ़ सकते हैं, तो हमारे यह दोनों देश ऐसा क्यों नहीं कर सकते? इस उद्घाटन समारोह में पाकिस्तान की सेना के प्रमुख कमर जावेद बाजवा भी उपस्थित थे। उनके सामने इमरान खान ने कहा, आज मैं स्पष्ट रूप में कह रहा हूं कि पाकिस्तान का प्रधानमंत्री, सत्ताधारी पार्टी, देश की अन्य पार्टियां और सेना सभी भारत के साथ बेहतर रिश्ते बनाने के लिए आगे बढ़ना चाहते हैं। ऐसे स्पष्ट और विशाल हृदय का प्रदर्शन करने के बाद भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तथा कुछ अन्य नेताओं द्वारा अपनाए गए नकारात्मक रवैये को समझ सकना हमारे लिए मुश्किल है। सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान की ओर से दिखाई इस दरियादिली के बाद यह कहा है कि उनकी सरकार पाकिस्तान की ओर से सार्क सम्मेलन के लिए दिए गए निमंत्रण को स्वीकार नहीं करेगी और न ही आतंकवादी कार्रवाइयों के खत्म होने तक भारत पाकिस्तान के साथ कोई बातचीत ही करेगा। यदि ऐसी बात है तो गत दशकों में इससे बदतर हालात के होते हुए भारत की सरकारें प्रत्येक स्तर पर पाकिस्तान के साथ बातचीत क्यों करती रही हैं? प्रधानमंत्री वाजपेयी ने तो परवेज़ मुशर्रफ जैसे तानाशाह के साथ आगरा में विस्तृत बातचीत भी की थी, जबकि भारत को पता था कि यही तानाशाह कारगिल युद्ध करवाने के लिए मुख्य तौर पर ज़िम्मेदार था। कुछ राज्यों में चुनाव हो रहे हैं। आगामी महीनों में लोकसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। भारत सरकार इनको मुख्य रख कर पाकिस्तान के साथ संबंधों के बारे में राजनीतिक आंकलनों में पड़ी दिखाई देती है। इससे यह परिणाम अवश्य निकाला जा सकता है कि हमारी आज की राजनीति के स्वार्थ देश की बेहतरी से कहीं ऊपर हैं और राजनीतिज्ञों के आंकलन वोटों के आस-पास ही घूमते हैं। ऐसी सीमित सोच जहां मनों में बेचैनी पैदा करती है, वहीं देश के हितों की बजाए राजनीतिज्ञों की संकीर्ण राजनीतिक चालों को भी प्रकट करती है। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द