कैसे निकलती है गले से आवाज़ ?

चूंकि जन्म से ही हम बोलते-सुनते आए हैं विविध प्रकार की ध्वनियों को सुनने के आदी हैं इसलिए सब कुछ सहज ही लगता है, अन्यथा यह एक विचारणीय प्रश्न है कि ध्वनि की यात्रा कैसे होती है। एक प्रयोग करें, जब बात कर रहे हों या गाना गा रहे हों तो अपने कंठ पर उंगलियां रख लें। आप पाएंगे कि वहां कुछ कंपन हो रहा है। आप सितार, वीणा या वायलिन के तारों को छुएं, उनमें कंपन करें तो कुछ ध्वनि सुनाई देती है। निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि सभी प्रकार की ध्वनियां किसी न किसी कंपन का परिणाम हैं, अगर हमारे शरीर के किसी हिस्से में कंपन हो तो भी ध्वनि निकलेगी। इस कार्य के लिए प्रकृति ने मानवकंठ में दो स्वर-रज्जु दी हुई हैं। सभी प्रकार की ध्वनि इन दो स्वर रज्जुओं-दक्षिण तथा बाम से ही उत्पन्न होती है, ये रज्जुएं उत्तकों के तांतुओं से बनी होती है। कितनी और कैसी ध्वनि निकले, यह इस पर निर्भर करता है कि स्वर-रज्जुओं का कितनी आवृत्तियों के साथ कंपन हो रहा है। सामान्यत: हम इन ध्वनियों को सुन पाते हैं जो 20 से लेकर 20000 कंपन प्रति सैकंड की आवृत्तियाें से उत्पन्न होती है।  ध्वनि तरंगों के रूप में एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाती है। ध्वनि तरंग अति सूक्ष्म होती है। इन्हें हम सुन सकते हैं। इनका अनुभव कर सकते हैं, ये तरंगे शून्य में नहीं आगे बढ़ती। इन्हें चलने के लिए कोई साधन या माध्यम चाहिए। हमारे चारों ओर फैली वायु ध्वनि तरंगों का उत्तम माध्यम है। इसका मतलब यह हुआ कि अगर किसी कमरे को पूर्णत: वायु रहित कर दिया जाए तो उसमें आमने-सामने खड़े लोगों को भी एक-दूसरे की बात नहीं सुनाई देंगी। ठोस और तरल पदार्थ भी ध्वनि तरंगों के माध्यम हो सकते हैं। परंतु इस कार्य हेतु प्रयुक्त ठोस वस्तु में लचीलापन होना चाहिए। जैसे ही ध्वनि तरंग निकलती है, वायुकणों को आगे ठेलती है। यह क्रम तब तक चलता रहता है जब तक कि वे तरंगें कान के पर्दे से नहीं टकराती। तरंगों से उस पर्दे में भी कंपन होता है जिसके माध्यम से मस्तिष्क को संदेश पहुंचता है। इसी को सुनना कहते हैं। ध्वनि-तरंगें किस गति से चलें यह वायु के तापक्रम पर बहुत निर्भर करता है।