भोपाल गैस त्रासदी के 34 वर्ष: आज भी ताज़ा हैं पीड़ितों के घाव 


2 और 3 दिसम्बर 1984 की मध्यरात्रि जब हर कोई गहरी नींद के आगोश  में सो रहा था तभी भोपाल के यूनियन कार्बाइड संयंत्र में रखे टैंक नंबर 610 में अचानक एक विस्फोट हुआ जिससे 42 टन मिथाइल आइसोसाइनेट रिसकर पूरे इलाके में फैल गई। बताया जाता है कि टैंक नं. 610 का तापमान मापने वाला मीटर खराब हो गया था, इसी दौरान टैंक में मौजूद गैस में पानी मिल गया। इससे हुई रासायनिक प्रक्रिया की वजह से टैंक में दबाव पैदा हो गया और टैंक खुल गया और इसकी ज़हरीली गैस ने तीन मिनट के भीतर 15000 से अधिक लोगों को पीड़ादायक मौत की नींद सुला दिया। 
दरअसल कारखाने में बनने वाले कीटनाशक का मुख्य तत्व मिक यानी मिथाइल आइसोसाइनेट था, जो बहुत ही ज़हरीला व प्राणघातक होता है। इसे ठंडा करके सुरक्षित तरीके से खासकर पानी से बचाकर रखा जाता है, क्योंकि यह पदार्थ पानी के संपर्क में आते ही रासायनिक अभिक्रिया करने लगता है जिससे ज़हरीली गैस व गर्मी उत्पन्न होती है। इसके कारण उल्टी, सांस लेने में दिक्कत, फेफड़ों में सांस लेते वक्त असहनीय दर्द, पेट में भयानक दर्द, त्वचा का झुलसना, प्रजनन क्षमता को हानि तथा बेहोशी होती है। 
इसलिए सिर्फ उस दिन ही नहीं, आज भी उस इलाके के लोग विकलांग व आंखों के अंधेपन से जूझ रहे हैं, क्योंकि वहां का पानी आज भी गैस के असर में है। इस असहनीय दर्द को तब निराशा हाथ लगी जब 7 जून 2010 को अमरीका की अदालत ने यूनियन कार्बाइड और उसके पूर्व अध्यक्ष वारेन एंडरसन को बाइज्ज़त बरी कर दिया पर तीन दिसम्बर की वह मनहूस सुबह जब भोपाल का हमीदिया चिकित्सालय मुर्दाघर बन चुका था। 
चारों तरफ लाशें ही लाशें थीं, इस त्रासदी में जो बचे थे वह अपने आपको अभागा मान रहे थे, क्योंकि उनके आंसू पोंछने वाले व गले लगाने वाले नहीं बचे थे। मरने वालों की संख्या 15,274 का आंकड़ा भी पार गई और गांधी मैडीकल कालेज में लाशों का ऐसा अम्बार लगा कि पोस्टमार्टम करने वालों के पास तीन में से एक शव को चुनने के सिवाय कोई चारा न बचा, फिर सामूहिक चिताएं जला कर व मुर्दों को दफना कर उन्हें जमींदोज़ कर दिया गया।  गैस कांड के दुखद पहलू यह भी रहे कि सबसे पहले तो घटना के ज़िम्मेदार वारेन एंडरसन को चोरी छिपे उसी रात निजी विमान से विदेश भेज दिया गया। 
दूसरा गैस प्रभावित 56 वार्डों में से 36 वार्डों को ही सही माना गया और राहत की राशि में तत्कालीन रजिस्ट्रार द्वारा 480 फर्जी केस पकड़ना, तीसरा पीड़ितों के पुनर्वास के लिए बना ‘गैस राहत एवं पुनर्वास विभाग’ भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया और इसकी आड़ में बेशुमार सरकारी अफसर फलते-फूलते रहे, चौथा इस केस में 3008 दस्तावेज़ व 178 गवाह पेश हुए। पुनर्वास हादसे के असली दोषी ‘पीसीआईएल के तत्कालीन अध्यक्ष वारेन एंडरसन’ की मौत हो चुकी है। पीड़ितों के साथ इससे शर्मनाक व घटिया मजाक और क्या हो सकता है कि इस त्रास्दी के दोषी को बनती सज़ा नहीं दी गई। पांचवां हादसे में मरहम की बजाय रिसता जख्म बन गई हाऊसिंग बोर्ड की तरफ से बनाई गई वो बिल्ंिडग जो विधवाओं के पुनर्वास के लिए थी, पर वक्त के साथ वह ‘विधवा कालोनी’  के नाम से मशहूर हो गई।  आज भी भोपाल का यह इलाका विकलांगता के इस दोष से उभर नहीं पाया है। आज भी पैदा हो रहा हर बच्चा किसी न किसी शारीरिक अक्षमता से ग्रस्त है। 33 वर्ष बीत जाने के बाद हमारी जिंदगियों में चाहे अनेकों परिवर्तन आए हों, पर भोपाल का वह इलाका 2 दिसम्बर 1984 की रात जिस मोड़ पर था, आज भी वहीं खड़ा है।