इसरो ने फिर रचा इतिहास अब परेशान नहीं करेगा इंटरनेट

बुधवार 5 दिसंबर 2018 को जब समूचा भारत सो रहा था, उस समय यानी तड़के करीब 2 से 3 बजे के बीच यूरोपीय स्पेस एजेंसी के प्रक्षेपण केंद्र फ्रेंच गुयाना में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने इतिहास रच दिया। यह इतिहास रचना इस मायने में है क्योंकि इतना वजनी सैटेलाइट इसरो ने अब के पहले नहीं बनाया था, जितना वजनी जीसैट-11 है। गौरतलब है कि जीसैट-11 का वजन 5,854 किलोग्राम है। ये जियोस्टेशनरी सैटेलाइट पृथ्वी की सतह से 36,000 किलोमीटर ऊपर ऑरबिट में चक्कर लगायेगा। भारत को जैसे ही इस सैटेलाइट की सेवाएं सुचारू रूप से मिलनी शुरु हो जायेंगी, देश में सूचना संचार की दुनिया पूरी तरह से बदल जायेगी। फोन में फिल्में देखना आसान हो जायेगा। यू-ट्यूब की पहुंच गांवों के कोने-कोने तक हो जायेगी और बात करते हुए अब शायद कॉल ड्रॉप की मुसीबत का सामना न करना पड़े। ये तमाम फायदे इस सैटेलाइट से मिलेंगे। सबसे बड़ी बात यह है कि इसके जरिये हम अंतरिक्ष में एक बड़ी ताकत के रूप में उभरे हैं। जीसैट-11 में केयू-बैंड और केए-बैंड फ्रीक्वेंसी में 40 ट्रांसपोंडर हैं जो 14 गीगाबाइट/सैकेंड तक की डेटा ट्रांसफर स्पीड वाला हाई बैंडविथ कनेक्टिविटी प्रदान करेंगे। निश्चित रूप से यह भारत में इंटरनेट इस्तेमाल के अनुभव को पूरी तरह से बदलकर रख देगा। शायद रिलायंस का जियो नेटवर्क इस बात को बहुत पहले से जानता था, इसलिए उसने अपनी बुनियादी संरचना तेज इंटरनेट प्रदान करने के हिसाब से विकसित की है। जीसैट-11 के लांच होने के बाद अब देश का कोई ऐसा कोना अछूता नहीं रहेगा, जहां ब्रॉडबैंड सेवाएं न मिल सकें, यही नहीं ये सेवाएं उन्नत किस्म की भी होंगी। इसलिए विशेषज्ञ कहते हैं कि कनेक्टिविटी के मामले में यह गेम चेंजर साबित होगा। इसके पहले अब तक जितने भी सैटेलाइट लांच किये गये थे, उनमें सिंगल बीम का इस्तेमाल होता था, जिससे एक साथ देश के समूचे भौगोलिक क्षेत्र को कवर करना संभव नहीं रहता था। लेकिन जीसैट-11 की खासियत यह है कि बीम्स को कई बार प्रयोग करने में सक्षम है इसलिए अब अंतरिक्ष से समूचे भारत पर तेज नजर रखी जा सकेगी। इस लिहाज से यह देश की सुरक्षा में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। हर साल देश के तमाम बड़े वन क्षेत्रों में लगने वाली आग और अभ्यारण्यों में वन्यजीवों की स्थिति पर यह सैटेलाइट नजर रखने में मदद करेगा। इसके जरिये मौसम संबंधी भविष्यवाणियां करना ज्यादा आसान हो जायेगा और देश के रेल यातायात पर क्लोज सर्किट नजर रखनी भी आसान हो जायेगी। सच तो यह है कि यह सैटेलाइट अगर अपनी उम्मीदों पर आधा भी खरा उतरता है, तो हिंदुस्तान की कनेक्टिविटी का अब तक समूचा चेहरा बदल जायेगा। आर्थिक सम्पदा के नये परिदृश्य में देखें तो कनेक्टिविटी एक बहुत बड़ा संसाधन है, जो आपकी उन्नति में तो सहायक है ही, साथ ही यह अपने आप में भी सम्पदा है। इस लिहाज से भारत को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने में भी इस सैटेलाइट का बहुत महत्वपूर्ण योगदान होगा। जीसैट-11 को पहले मार्च-अप्रैल 2018 में लांच किया जाना था, लेकिन जीसैट-6ए मिशन के असफल हो जाने की वजह से इसकी लॉचिंग रोक दी गई। दरअसल जीसैट-6ए की नाकामी से भी जीसैट-11 की सफलता के लिए कुछ सबक हासिल किये गये। इस वजह से इसके तयशुदा प्रक्षेपण में देरी हुई। जीसैट-11 के जरिये अब उन दूर-दराज के इलाकों में भी इंटरनेट आसानी से पहुंचेगा, जहां फाइबर पहुंचना आसान नहीं है और एक बात यह भी है कि किसी वजह से अब अगर फाइबर को कोई नुकसान भी हो जायेगा तो भी जीसैट-11 के कारण पूरी तरह से इंटरनेट ठप नहीं होगा, सैटेलाइट के जरिये वह चलता रहेगा। चूंकि इस सैटेलाइट में मल्टीस्पॉट बीम कवरेज की सुविधा है इस वजह से इसका उपयोग कई मायनों में बहुत सटीक जानकारी के रूप में होगा। यूं तो भारत ने आजादी के बाद तमाम क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति की है। लेकिन इसरो एकमात्र ऐसा भारतीय संस्थान है, जो हमेशा उम्मीदों से ही नहीं बल्कि उम्मीदों की कल्पनाओं से भी ज्यादा बेहतर नतीजे देता रहा है। इसलिए इसरो की पूरी दुनिया में बहुत इज्जत है और यह कहना कतई अतिरेक नहीं होगा कि इसरो की वजह से भारत को भी इज्जत मिलती है।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर