बागेश्वरी देवी मंदिर नेपालगंज में दैविक जिह्वा के दर्शन

 नेपालगंज भारत की सीमा से लगा नेपाली कस्बा है, जो भारत-नेपाल व्यापार का मुख्य प्रवेश बिंदु है। यहीं पर स्थित है बागेश्वरी मंदिर।
परिक्रमा के बाद मन्दिर के तालाब के पास से एक छोटा-सा शिव मंदिर है। उसे पार करके बागेश्वरी देवी मन्दिर के आंगन में पहुंचते हैं। ग्रेनाइट से बनी विशाल गणेश की प्रतिमा के प्रवेशद्वार पर पीतल के दो बड़े शेर जड़े हैं। गर्भ गृह में खुलने वाला लकड़ी का दरवाजा अपनी कलात्मकता का जीता जागता उदाहरण है। पूरा दरवाजा चांदी के सिक्कों की चमक से चमकता है। अंदर एक लाल ग्रेनाइट से बनी हुई यज्ञवेदी है, जिसकी  परिक्रमा कर सकते हैं। यज्ञवेदी पर चांदी की दो चीजें हैं- चांदी की एक गोल प्लेट जिस पर देवी के पैरों की छाप है और चांदी का एक स्तूप जिसमें तीन आंखें हैं। ठीक इनके पीछे पीतल की बनी हुई वैभवशाली मूर्ति खड़ी हुई है, जिसमें बागेश्वरी देवी लाल वस्त्र धारण किये हुए अपने वाहन शेर पर सवार हैं। यज्ञवेदी के निकट बैठा पुजारी भक्तों को आशीर्वाद दे रहा है। मंदिर में भजन कीर्तन चल रहा है और भक्तगण लाइन में खड़े होकर बारी-बारी से देवी को प्रसाद चढ़ा रहे हैं।बागेश्वरी देवी मन्दिर का प्रबंधन नाथ सम्प्रदाय के योगी करते हैं, जो कि बाबा गोरखनाथ के अनुयायी हैं। वे कानों में लकड़ी से बने बड़े कुंडल पहनते हैं, जो कि इस कणफट्टा नाथयोगी सम्प्रदाय का प्रतीक हैं। कहा जाता है कि सत्य का प्रसार करने के लिए शिव ने ही गोरखनाथ का रूप धारण किया था। उनके बहुत से शिष्य हिन्दू गुरु और मुस्लिम पीर बन गए और उन्होंने दिव्य ज्योति फैलाने के लिए काबुल व कंधार तक की यात्रा की। यह भी प्रचलित है कि जब शिव अपनी पत्नी सती के अग्नि-दाह पर विलाप कर रहे थे और उनके शव को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे, तो विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र का प्रयोग कर शव के टुकड़े कर दिए ताकि शिव अपने दु:ख से उभर सकें और अपनी दैविक जिम्मेदारियों को निभाने के लिए लौट सकें। जिस-जिस स्थान पर सती के शरीर के टुकड़े गिरे, उन्हें ही शक्तिपीठ माना गया। बागेश्वरी देवी उस स्थान पर है, जहां देवी सती की जिह्वा गिरी थी। यह बहुत पवित्र स्थान है। यहां आकर सबकी मनोकामना पूर्ण होती है। हां, सच्चे दिल से अगर प्रार्थना की जाये तो वह स्वीकार हो जाती है। इस मंदिर का गर्भगृह तीन तरफ  से खुला है। बाहर कुंज में विश्वकर्मा, गणेश और शक्ति के दो रूपों- दुर्गा व बगलामुखी देवी, जिनकी शक्तिपीठ ग्वालियर के निकट दत्तिया में है- की मूर्तियां हैं। मंदिर की बाहरी दीवार पर लोहे की रेलिंग है जिस पर धातु के दिये बने हुए हैं। भक्त उन दियों को जला रहे हैं। दरअसल, भक्तों का उत्साह और भक्ति देखते ही बनती है। भक्तगण वहां मौजूद सारी मूर्तियों में लड्डू और बर्फी का भोग लगाते हैं। 

-समीर चौधरी