आओ जानें क्या है बोशिया (पैरा ओलम्पिक खेल)  ?

भारत योद्धाओं, शूरवीरों, गुरुओं, पीरों, राजाओं, महाराजाओं, खिलाड़ियों का देश है। विभिन्न खेलों के खिलाड़ी भारत का नाम दुनिया भर में रौशन कर चुके है। भारत में अनेक खेल खेले जाते है, जिनके बारे में हम अच्छी तरह जानते है, जैसे कि क्रिकेट, कबड्डी, हाकी तथा एथलैटिक्स आदि यह सभी खेलें एक तंदरुस्त शरीर वाला आदमी ही खेल सकता है पर इसके साथ ही कुछ अपाहिज व्यक्तियों द्वारा भी खेल खेली जाती है इन खेलों को पैरा ओलम्पिक खेलों का नाम दिया जाता है इन खेलों में भारत के पैरा खिलाड़ियों ने विभिन्न समय में बढ़िया प्रदर्शन करके भारत का नाम रौशन किया है। इनमें से प्रमुख नाम है दविंदर झंजरीया (जैवलीन थ्रो), दीपा मलिक (शाटपुट), संदीप सिंह मान (200,400 मीटर रेस) आदि है जिन्होंने अपने प्रदर्शन से यह साबित कर दिया है कि वह किसी से कम नहीं है। इसके अतिरिक्त हमें आज जिस खेल की बात करनी है वह बाकी पैरा ओलम्पिक खेलों से अपनी एक विशेष विभिन्नता रखती है, जिसको उन्होंने अपाहिज खिलाड़ियों द्वारा खेला जाता है जो ना कि अपने आप कुछ खा सकते है, ना उठ सकते है, ना ही अपने आप बैठ सकते है, ना ही कोई ज्यादा भारी वस्तु उठाने में समर्थ होते है, इस खेल का नाम है बोशिया। यह खेल 1984 से पैरा ओलम्पिक खेलों में खेली जाने वाली अपंग खिलाड़ियों की खेल है जो आज लगभग 120 देशों में खेली जाती है तथा पसंद की जा रही है मगर भारत में इस खेल को 2016 में शुरु किया गया है इसकी नैशनल स्पोर्ट्स फैडरेशन के नाम पैरा बोशिया स्पोर्ट्स वैल्फेयर सोसायटी इंडिया है। इसका मुख्य कार्यालय जिला बठिंडा पंजाब में स्थित है। इस खेल को भारत में लेकर आने वाली शख्सीयत जसप्रीत सिंह धालीवाल है जो एक छोटे से गांव अबलू जिला बठिंडा (पंजाब) के रहने वाले है, इनके अतिरिक्त मनजीत सिंह राय मैंबर मनियूरिटी कमिशन आफ इंडिया ने बोशिया खेल को भारत में लाने तथा स्पोर्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पिछले सात वर्षों से जसप्रीत सिंह धालीवाल अपने छोटी ऐसी टीम सरपंच शमिंदर सिंह ढिल्लों, गुरजीत सिंह, टफ्फी बराड़, गुरप्रीत सिंह, जसविंदर सिंह धालीवाल, डा. रमनदीप सिंह, गुरप्रीत सिंह धालीवाल, मनप्रीत सिंह शेखों, प्रमोद कुमार धीर, जसविंदर ढिल्लों, गुरवीर बराड़ आदि सदस्यों के सहयोग से इस खेल को भारत में विकसित करने के लिए भरपूर यत्न कर रहे हैं अपनी मेहनत व यत्नों के चलते वह इस खेल को भारत में लेकर आने में कामयाब हुए है। इसके इतिहास को जानने के बाद अब पता करते हैं कि इसको कैसे खेला जाता है? कौन-कौन इसको खेल सकता है?
आओ इसके बारे में विस्तारपूर्वक जाने। बोशिया उन अपाहिज व्यक्तियों द्वारा खेली जाती है जो सैरेबिल पालसी नामक बीमारी से पीड़ित होते हैं या जिनका इंजूरी लैवल सी-1 से सी-5 तक होता है इसको खेलने के लिए 13 गेंदों का प्रयोग किया जाता है जिसमें छह गेंदें लाल रंग की, छह नीले रंग की तथा एक सफेद रंग की होती है जो गेंद सफेद रंग की होती है वह खेलते समय टारगेट बाल का काम करती है।
इस खेल को खेलने की विधि : इसमें कुल तीन इवेंट है सिंगल, डबल तथा टीम। इनमें इन सभी को 6-6 गेंदें दी जाती है इसमें खिलाड़ियों का मुख्य उद्देश्य खेल में अपनी बाल को टारगेट बाल के पास रोकना होता है, लगातार खेलते समय रैफरी द्वारा समय-समय पर गेंदों की आपसी दूरी की जांच की जाती है, किस खिलाड़ी की गेंद टारगेट बाल (गेंद) के नजदीक है, जिस खिलाड़ी की बाल टारगेट बाल के नजदीक होती है, उसके विरोधी को रैफरी द्वारा अपनी बाल से खेलने का इशारा किया जाता है। खेल के अंत में रैफरी सभी बालों की जांच करता है तथा देखता है कि कौन से बाल टारगेट बाल के सबसे ज्यादा नजदीक है उसके आधार पर खिलाड़ियों को अंक दिए जाते हैं, इसमें चार राऊंड की खेल खेली जाती है, जिस खिलाड़ी के अंक ज्यादा हो उसको विजयी घोषित किया जाता है।