ऱाफेल संबंधी फैसला

इस में कोई सन्देह की गुंजाइश नहीं थी कि भारत सरकार के फ्रांस सरकार के साथ दसालट एविएशन कम्पनी के ऱाफेल विमान की खरीद को लेकर हुए समझौते संबंधी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनके साथी फिज़ूल का बवाल मचा रहे थे। ऐसा शोरगुल मचा कर वह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के समय हुए घोटालों पर पर्दा डालने का प्रयास भी कर रहे थे और उससे भी पहले राजीव गांधी के प्रधानमंत्री होते हुए स्वीडन से बोफोर्स तोपों की खरीद में ली गई दलाली में उस समय की सरकार के हुए धुंधले अक्स को भी वह ऱाफेल सौदे से जोड़ कर ठीक करने की कोशिश कर रहे थे। बिना कोई ठोस सबूत पेश किए आरोप लगाने से इस बात की समझ अवश्य आती है कि राहुल अपने राजनीतिक विरोधियों को लगातार बेबुनियाद दोषों की झड़ी लगाकर चित्त करना चाहते हैं। हम एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष की इस सोच को कदापि परिपक्व नहीं समझते। लगातार शोरगुल वाली लामबंदी करने के बाद भी वह इस मामले पर मोदी सरकार का ज्यादा नुक्सान करने में सफल नहीं हुए जबकि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के समय हुए घोटाले के बारे में मिले सबूतों पर इन सौदों के बारे में ली गई दलालियां जग-ज़ाहिर हो गई थीं। इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने संसद के पिछले कई सत्रों में भी रुकावट डाली थी, जबकि इसी समय वायु सेना के प्रमुखों ने विस्तार में इस सौदे संबंधी और इन विमानों की बेहद ज़रूरत संबंधी बताया था। ऱाफेल विमानों का सौदा संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के समय से लटकता आया था, जो मुकम्मल नहीं हो सका था। यही बस नहीं, इस संबंधी दसालट एविएशन कम्पनी के प्रमुख एरिक ट्रेपियर ने भी तथ्यों पर आधारित अपनी लम्बी-चौड़ी सफाई देते हुए रिलायंस के साथ किए समझौते का विस्तृत खुलासा किया था। फ्रांस की सरकार ने भी इस संबंध में अपना पक्ष स्पष्ट कर दिया था। इसके बावजूद दो वकीलों ने इस सौदे के बारे में सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की थीं। इन याचिकाओं के बाद भाजपा से ब़ागी पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और वकील प्रशांत भूषण जैसे व्यक्तियों ने भी सुप्रीम कोर्ट में पहुंच करते हुए इस मामले में सी.बी.आई. को रिपोर्ट दर्ज करने के आदेश देने की मांग की थी। जहां तक हथियारों और विमानों की कीमतों को भी सार्वजनिक करने की मांग की जा रही थी, उसके बारे में सरकार ने कहा था कि ऐसा करने से दुश्मनों को ऱाफेल विमान में लगे हथियारों का पता चल जाएगा। अब सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं संबंधी अपना स्पष्ट फैसला दिया है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गगोई के नेतृत्व वाली तीन जजों की पीठ ने यह कहा है कि इस सौदे में किसी तरह की कोई गड़बड़ी नहीं मिली। इसलिए इसकी अन्य एजेंसी से जांच करवाने की ज़रूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह विमान खरीदने की प्रक्रिया, इनकी कीमत और कम्पनी द्वारा अपने साझीदार चुनने की प्रक्रिया पर अपना फैसला सुनाया है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उनको इस सौदे और इस सौदे की प्रक्रिया में कोई त्रुटि नहीं मिली और यह भी सही है कि देश को इन लड़ाकू विमानों की कड़ी आवश्यकता है। जहां तक इनको खरीदने की कीमत का सवाल है, उसके बारे में न्यायिक सुनवाई के समय सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा आदेश दिया था कि सरकार द्वारा न्यायालय को हर हाल में ऱाफेल की कीमत, सौदे की प्रक्रिया तथा अन्य विवरण दिए जाएं। ऐसी हिदायत पर सरकार ने सीलबंद लिफाफे में मांगा गया समूचा विस्तार न्यायालय को दे दिया था। इस विस्तार में यह भी कहा गया था कि इस सौदे के लिए हर तरह की उपयुक्त प्रक्रिया का पालन किया गया है। विमानों का यह सौदा करने से पूर्व डिफैंस एग्जीक्यूशन कौंसिल की स्वीकृति ली गई थी और करार से पूर्व इंडियन नैगोसिएशन टीम गठित की गई थी, जिसने लगभग एक वर्ष तक सौदे के बारे में बातचीत की थी। हस्ताक्षर करने से पूर्व कैबिनेट ऑन सिक्योरिटी और कम्पीटैंट फाइनैंशियल अथॉर्टी की भी स्वीकृति ली गई थी। सुप्रीम कोर्ट के ऐसे फैसले के बाद भी यदि कांग्रेस के अध्यक्ष, उनके साथी तथा अन्य सहयोगी इस मामले के बारे में विवाद खड़ा रखने का प्रयास करते हैं, तो उनकी नीयत पर उंगुलियां उठनी स्वाभाविक हैं। बने ऐसे प्रभाव से इस राष्ट्रीय पार्टी पर प्रश्न चिन्ह अवश्य लगता रहेगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द