पाक अधिकृत कश्मीर में गूंजने लगा इन्कलाब ज़िंदाबाद        

भारत-पाकिस्तान में बंटा कश्मीर एक अजीब हालत से गुज़र रहा है। पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में आजकल एक तूफान करवट ले रहा है। यह भी एक हकीकत है कि वहां के लोगों ने एक बार भी सुख की सांस नहीं ली। जम्हूरियत के नाम पर वहां हमेशा तानाशाही ही कायम रही। खेद की बात तो यह है कि जब जनरल ज़िया-उल-हक ने जम्हूरियत का तख्ता पलट कर सत्ता सम्भाली थी तब से आतंकवाद को पाकिस्तान के जीवन के लिए ज़रूरी मान लिया गया। जनरल हक यूं तो भारत से बंगलादेश बनने का बदला लेना चाहते थे और सीधी जंग से इसलिए डरते थे कि भारतीय सेना के आगे 93000 पाकिस्तानी सैनिकों ने हथियार डाल दिए थे, तब उसने कश्मीर के बेरोज़गार और अशिक्षित युवकों को भारत के विरुद्ध छद्धम युद्ध में उतारने की साज़िश रची। थोड़ी-सी गोलीबारी की सिखलाई और अधिक कट्टरवाद की शिक्षा देकर दहशतगर्द बनाना आरम्भ कर दिया। कट्टरवाद और भारत से घृणा का ज़हर पिलाकर आत्मघाती युवक हाफिज़ सैयद जैसे लोगों की बन आई। धीरे-धीरे पी.ओ.के. में दहशतगर्दी के कई केन्द्र खुलने लगे। एक अनुमान के अनुसार अब पाकिस्तान में आतंकवाद के 42 कैंप चल रहे हैं, जिनमें से 32 केवल पी.ओ.के. में हैं और 10 पाकिस्तान के ‘घाट’ के करीब लग रहे हैं। पी.ओ.के. जिसे वहां के नवयुवकों को गुमराह करने के लिए आज़ाद कश्मीर का नाम दिया जाता है, परन्तु वहां की गुलामी दर्दनाक हालत तक देखने को मिलती है। पाकिस्तान शासकों की फौलादी पकड़ के कारण यह गुलामी मौत से भी बदतर है। इसीलिए वहां के युवकों ने भारतीय सुरक्षा कर्मियों के हाथ मरना स्वीकार कर लिया अब वहां जो बचे-खुचे युवक रह गए हैं, वह जनरल मुशर्रफ की खूनी साजिश से कैसे बच गये यह हैरानी की बात है। हज़ारों पी.ओ.के. के युवक मौत के घाट उतर रहे हैं। पंजाबी युवक दहशतगर्दी से बचाए जाते हैं। मुजफ्फराबाद के निकट दहशतगर्दी के कैंपों में केवल कश्मीरी युवक ही मरने-मारने की सिखलाई लेते देखे जा सकते हैं। अब पी.ओ.के. में पाकिस्तानी दबदबे और ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठने लगी है। यह बात अब सिद्ध करती है कि पी.ओ.के. के लोग ‘प्राक्सी वार’ यानि छद्मयुद्ध और दहशतगर्दी से कितने ऊब चुके हैं, क्योंकि पाकिस्तानी सेना ने केवल कश्मीरी युवकों को मौत के गाल में जाने के लिए तैयार किया है। जो युवक अब वहां दिखाई भी नहीं देते, उनकी जगह नाबालिग लड़कों को आत्मघाती बनाया जा रहा है। नियंत्रण रेखा के इस पार जो विकास दिखाई देता है वह भी पाकिस्तानी हाकमों को परेशान कर रहा है। यहां पी.ओ.के. में कोई हुर्रियत जैसी संस्था तो है नहीं फिर भी कुछ लोग भारत में शामिल होने के लिए आवाज़ बुलंद करते देखे जाते हैं। एक बार तो पाकिस्तान के हाकमों ने पी.ओ.के. को अपना पांचवा प्रदेश बना कर पाकिस्तान के मानचित्र में दिखाना भी शुरू कर दिया था। यह बात भी ‘गुलाम कश्मीर’ के लोगों को बेचैन कर गई। प्रदर्शन हुए और पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा गोलियां भी चलाई गईं, दर्जनों कश्मीरी कब्रों में चले गए। यह भी एक हकीकत है कि पाकिस्तान में मीडिया पर अजीब सैंसरशिप लगी रहती है, वह न तो सैनिकों के मरने की खबर जग-ज़ाहिर होने देता है और न ही प्रदर्शन करने वालों पर टूटता ज़ुल्म सितम। वर्ष 2003 में जब अटल बिहारी वाजपेयी तत्कालीन भारत के प्रधानमंत्री सार्क सम्मेलन में भाग लेने पाकिस्तान गये थे तब जनरल मुशर्रफ ने युद्ध विराम के दस्तावेज़ पर अमल करने का वादा किया था। युद्ध विराम के तहत सीमा पर अमन तो हो गया परन्तु पी.ओ.के. में भारत के साथ शामिल होने के लिए आवाज़ बड़े ज़ोर से उभरी। अब एक बार फिर पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में आज़ादी और इंकलाब ज़िंदाबाद के नारे गूंजने लगे। मौजूदा प्रधानमंत्री इमरान खान जिसे पाकिस्तानी सेना की कठपुतली भी कहा जाता है, वह भी पी.ओ.के. में उभर रही इस आवाज़ में छुपा दर्द नहीं समझा पा रहे। जेहलम नदी के दोनों तरफ बंकर बने हैं। हमारे देश में कुछ नेता जो यह कहते हैं कि पाकिस्तान से बात की जाए, उन्हें कहना तो यह चाहिए कि पी.ओ.के. के लोगों से बात की जाए, जहां विकास के नाम की हवा का एक झोंका तक भी नहीं पहुंचा। गरीबी, अनपढ़ता और बेरोज़गारी धीरे-धीरे पी.ओ.के. में कश्मीरियों की आने वाली नस्लों को तबाह कर रही है। शेख फारुख अब्दुल्ला तो यहां तक कहते हैं कि पी.ओ.के. को हमेशा के लिए पाकिस्तान के हवाले कर दिया जाए और भारत उस कश्मीर का हिस्सा मानने से इंकार कर दे। यह बात भी पी.ओ.के. के लोगों को बहुत नागवार गुज़र रही है। उनको कुछ सकून तब मिला था जब वाजपेयी के दौरे में श्रीनगर-मुजफ्फराबाद बस आरम्भ हुई। उधर से आने वाले लोगों ने भारतीय कश्मीर में विकास की बहती बयार देखी तो पी.ओ.के. में जाकर उन्होंने खुशहाली के दस्तक देने की बात कही। अब पी.ओ.के. में भारत के प्रति सोच बहुत बदल चुकी है। हाफिज़ सैय्यद, मौलाना मसूद अज़हर, मो. सय्यद सलाहूद्दीन जैसे घृणा के व्यापारियों की दाल गलना कठिन हो रही है और पी.ओ.के. में इन लोगों के खिलाफ भी आवाज़ें गूंजने लगी हैं।