बिरहा का दर्द

आसमान पर गहरे काले बादल छाये हुए थे। कभी-कभी बादलों में बिजली कौंध जाती थी। बादलों की घनघोर गर्जना बहुत भयंकर थी। बादलों की ऐसी गर्जना से चंदा का मन बहुत घबरा रहा था। उसका मन शंका में डूबा हुआ था। वह पिछले आठ वर्षों से बिरही जीवन व्यतीत कर रही थी। परन्तु पिछली रात से ही उसका मन बहुत घबरा रहा था, कि कल जो जोगी उसकी ज़मीन पर आया था, जिसे उसने भला-बुरा कह कर भगा दिया था, और वह जोगी उनकी ज़मीन पर बनी छन्न के अन्दर  चला गया था। वह खेतों में गोडाई का काम छोड़कर घर लौट आई थी। अब बारिश पड़ने लगी थी। बारिश बहुत तेज हो गई। इसी दौरान भयानक गर्जना के साथ बिजली कौंध गई। वह डर गई।
चन्दा को ख्याल आया कि कल अपने खेत की गुडाई कर रही थी। वह अपने ध्यान में मग्न थी। अचानक उसने अपना सिर ऊपर उठाकर देखा कि एक जोगी काफी देर से उसे गुडाई करते हुए ताकता रहा था। आखिर जोगी ने उसे कहा, ‘ऐ सुन्दरी, तुम खेत में स्वयं क्यों यह काम कर रही हो? क्या तुम्हें तु्महारे पति और घर वालों ने त्याग दिया है?’ ‘हे जोगी, तुमने यह कैसे जाना?’
‘हम जोगी बाबा हैं...सब कुछ जानते हैं, सुंदरी!’
चंदा ने तुरंत नीचे झुखकर जोगी के पांव पकड़ लिए और बोली ‘गांव के मुखिया की बेटी हूं, मेरा नाम चंदा है, गिलों की बहू हूं, सहझंगी हमारा गांव है...तुम्हारी बड़ी कृपा होगी, ऐ जोगी...हमारे हाथ और माथे की रेखाएं देखकर बताओ कि हमारे पति घर कब वापस आएंगे? वो कैसे हैं और कहां हैं? किस  हाल में रह रहे हैं?’
जोगी ने चंदा का हाथ पकड़कर, उलट-पुलट कर, फिर माथे को भी ध्यान लगाकर देखा। कुछ देर तक अपनी आंखें बंद करके न जाने अपने मन में क्या कुछ बुड़बड़ाता रहा। फिर उसने कहा, ‘हे सुन्दरी, अपने मन में धीरज रख कर मेरी बात को ध्यान से सुनो... तुम्हारे पति घर का मोह त्याग कर नागा साधुओं में जाकर रह रहा है..तुम्हें भी वह भूल चुका है। ...अब वह घर कभी नहीं लौटेगा। तुम्हारे लिए उचित यही है कि तुम अपना नया परिवार बसा लो...अभी तुम्हारी आयु भी कम है... और तुम जवान हो... अत्याधिक सुंदर भी हो....।’
जोगी ने इतने ही शब्द कहे थे, कि चंदा उस पर क्रोधित हो उठी। गुस्से में बोली, ‘हे, निर्मोही जोगी तेरा सर्वनाश हो, तू जो ऐसी ऊट-पटांग बातें बोलता है... तूं नहीं जानता कि हमने कैसे कष्ट के दिन काटे हैं। ऐ जोगी, तूं यहां से चला जा, अपना रास्ता पकड़, और मैं अपना...तुम्हारी यहां दाल नहीं गलने वाली।’
जोगी अपना कपड़ा-लता और सामान सम्भाल कर क्रोध से अपनी आंखें लाल कर बोला, ‘जाओ सुनयना, सदा खुश रहो, जवानी मानो, परन्तु मेरी बातों को अपने दिल में धर लो, तेरा स्वामी अब कभी वापस घर नहीं आएगा...!’
चंदा पागलों की भांति घर की ओर भागने लगी और बोल रही थी, ‘तूं...तूं झूठ बोल रहा है जोगी, झूठ बोल रहा है... मेरा मालिक, मेरा स्वामी आएगा...ज़रूर आएगा....।’
चंदा विवाह करके उस समय लाई गई थी, जब पांच गावों की लड़कियों में से चुनकर उसे इस गांव में लाया गया था। सब की आंख उस पर टिकी हुई थी, परन्तु सह-झंगी गांव खुशकिस्मत निकला, जिसकी बहू बनकर वह आ रही थी।