सिमुलेशन टेक्नोलॉजी हकीकत से पहले हकीकत जैसी कवायद

टेक्नोलॉजी का आज के समय में सबसे बड़ा फायदा यह है कि यूजर उसका वास्तविक इस्तेमाल करने से पहले वर्चुअल वर्ल्ड में परीक्षण कर सकता है, जिससे उसकी उपयोगिता व सफलता के बारे में अनुमान लगाया जा सके और उसे लेकर कोई व्यवहारिक सोच-समझ तय की जा सके। दूसरे शब्दों में एक्शन का मूल्यांकन एडवांस में ही किया जा सकता है। उदाहरण के लिए दो तत्वों के मिश्रण का क्या परिणाम होगा या क्या होगा अगर किसी निर्माण इकाई में फंक्शन को बदल दिया जाये? इस प्रकार के प्रश्नों का उत्तर अब वास्तविक कार्य करने से पहले ही बनाये गए डिजिटली मॉडल पर करके प्राप्त किये जा सकते हैं। इस टेक्नोलॉजी को सिमुलेशन टेक्नोलॉजी कहते हैं। ‘कंप्यूटर सिमुलेशन मॉडलिंग टूल है। इस टेक्नोलॉजी का प्रयोग करके मौजूदा या प्रस्तावित सिस्टम्स के वर्चुअल मॉडल्स तैयार किये जा सकते हैं जो रियल सिस्टम के ऑपरेशंस की नकल कर सकते हैं।’ ऐसा श्रीलंका में जन्मे टेर्रेंस परेरा का कहना है, जो शेफील्ड हल्लम यूनिवर्सिटी (एसएचयू), इंग्लैंड में योजना व संसाधन के सहायक डीन हैं। वह एक ऐसे शोध प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहे हैं जिसमें यह देखने का प्रयास है कि इस टेक्नोलॉजी का प्रयोग अस्पतालों की परफॉरमेंस बेहतर करने के लिए कैसे किया जाये ? इस प्रोजेक्ट में वह छह पीएचडी स्कॉलर्स और 15 एमएससी छात्रों का मार्गदर्शन कर रहे हैं। लेकिन इनमें से एक भी भारत से नहीं है। परेरा वर्तमान में एसएचयू में फैकल्टी हैं,जहां सिमुलेशन अनेक पाठ्यक्रम का हिस्सा है जैसे एमबीए औद्योगिक प्रबंधन, एमएससी एडवांस्ड इंजीनियरिंग एंड मैनेजमेंट, एमएससी लोजिस्टिक्स एंड सप्लाई चेन मैनेजमेंट। लेकिन इन पाठ्यक्रमों में भारतीय छात्रों की संख्या हमेशा काफी कम रहती है- लगभग 10 से 20 छात्र प्रति वर्ष।  विश्वविद्यालयों को चाहिए कि वह अपने पाठ्यक्रम को अपडेट करें ताकि उनमें नई टेक्नोलॉजी को शामिल किया जा सके और छात्रों को नये विषयों के बारे में जानकारी मिल सके।  मांग बदल रही है और नियमित उत्पाद सेवा और नई टेक्नोलॉजी आ रही हैं। इसलिए कम्पनियों को लगातार अपने सिस्टम्स में सुधार लाते रहने की आवश्यकता है। यहीं सिमुलेशन टेक्नोलॉजी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। चूंकि उद्योग 4.0 की एक महत्वपूर्ण धारणा रियल व वर्चुअल संसारों का फ्यूजन है और सिमुलेशन एकमात्र टेक्नोलॉजी उपलब्ध है जो वर्चुअल संसार रचती है, इसलिए इसकी मांग निरंतर बढ़ती जा रही है। अधिकतर कम्पनियां अब सिमुलेशन टेक्नोलॉजी के बारे में जानती हैं, लेकिन समस्या यह है कि सिमुलेशन स्किल्स वाले ग्रेजुएट्स की काफी कमी है, जिसमें सिस्टम्स थिंकिंग, मॉडलिंग व डाटा एनालिसिस स्किल्स शामिल हैं। इसका अर्थ यह है कि जो इंजीनियर सिमुलेशन टेक्नोलॉजी में दक्ष होंगे उनके लिए रोजगार के बेहतर अवसर होंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि पाठ्यक्रम में सिमुलेशन टेक्नोलॉजी को शामिल करने से न सिर्फ  भारत उद्योग 4.0 के लिए बेहतर तैयार हो जायेगा बल्कि हजारों जॉब्स भी उत्पन्न किये जा सकेंगे। इसलिए छात्रों को ‘सेफ  इंजीनियरिंग छोड़कर सिमुलेशन टेक्नोलॉजी को अपनाना चाहिए।

-नरेंद्र कुमार