प्रकृति से सीखिये कृतज्ञता का पाठ

कृतज्ञता का अर्थ है अपने किए हुए उपकारों का भूल जाना और दूसरों के द्वारा किए हुए उपकारों का याद रखना। कृतज्ञ व्यक्ति सदैव अपने उपकारों के  प्रति अहोभाव से भरा हाता है। ठीक वैसे ही जैसे नारियल का वृक्ष। हम उसे जो भी पानी देते हैं, वह उसे अपने फ लों के भीतर संजोकर रख लेता है। भले ही हम उसे खारा पानी दें परन्तु वह अपने भीतर से अमृत तुल्य मीठा जल ही देता है। कितना कृतज्ञ है यह वृक्ष। सारी जिंदगी वह दिए हुए जल का कर्ज मीठे जल से ही चुकाता है । सूर्य, चांद, तारे हमें नि:स्वार्थ भाव से प्रकाश देते हैं तो फूल हमें सुवास देते हैं। नदियां, कुएं और बावड़ियां हमें जल देते हैं तो वृक्ष मीठे फ ल देते हैं अर्थात् सम्पूर्ण प्रकृति हमें देती ही देती है। एक कथा है कि यूनान का एक दास डायसनिस सम्राट के अत्याचारों से परेशान होकर भाग निकला। सारे बंधनों को तोड़कर वह जंगल की ओर भागा। पीछे-पीछे उसे पकड़ने के लिए सिपाही भाग रहे थे। आगे-आगे डायसनिस, पीछे-पीछे सिपाही। बीच में ही डायसनिस देखता है कि एक शेर कराह रहा है। शेर की कराह को सुनकर वह रुक जाता है। सिपाहियों के द्वारा पकड़े जाने की चिंता से बेफिक्र वह दास शेर के पास खड़ा हो जाता है। शेर अपना पंजा आगे पसार देता है जिसमें एक बड़ा-सा नुकीला कांटा चुभा हुआ था।। डायसनिस उसके पंजे से कांटा निकालता है। शेर को इससे राहत मिलती है। पीड़ा से मुक्त होकर शेर  तो  वहां  से  चला जाता है, लेकिन डायसनिस कांटा निकालने के चक्कर में पुन: पकड़ा जाता है तथा  पुन:  बंदी बनाकर राज-दरबार में लाया जाता है। राजा घोषणा  करता  है कि  उसे भूखे शेर के सामने डाल दिया जाए। जंगल से शेर को पकड़ कर लाया जाता है तथा उसे पिंजरे में बंद करके तीन दिन भूखा रखा जाता है। तीन दिन बाद दहाड़ मारते भूखे शेर को डायसनिस  के सामने लाया जाता है  लेकिन यह क्या। शेर शांत हो जाता है। उसने अपने उपकारी व्यक्ति की गंध पहचान ली। उसने सोचा, जिस आदमी ने मुझे नई जिंदगी दी, उसे मैं कैसे मार सकता हूं। शेर पीछे हट जाता है अर्थात् शेर की कृतज्ञता देखिए कि उसने उसका भक्षण नहीं किया । इस तरह पशु-पक्षी और प्रकृति हमें यही संदेश देते हैं कि उपकार करने वाले व्यक्ति की रक्षा और सुरक्षा के लिए उनका अहित सोचना भी गुनाह है । मनुष्य को इससे सीख लेनी चाहिए ।

- रेणु जैन