अंतत: देर से मिला न्याय

34 वर्ष पूर्व हुए सिख विरोधी दंगों के संबंध में गत दिनों निचली अदालत द्वारा एक अपराधी को फांसी तथा एक को उम्रकैद की सज़ा सुनाए जाने के बाद यह विश्वास बंधना शुरू हुआ था कि अब हुए इस भीषण कृत्य के लिए अदालतों के द्वार खुलने शुरू हो गए हैं। इससे पूर्व अलग-अलग समयों पर दस के लगभग आयोग तथा कमेटियां इसकी खोज-पड़ताल के लिए बनीं परन्तु उनमें से अधिकतर परिणाम न निकल सके। इसका कारण इन्दिरा गांधी की मौत के बाद उनके पुत्र राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाया जाना था। नि:संदेह राजीव गांधी, अरुण नेहरू तथा उनके कुछ निकटतम साथियों ने तत्काल एक सोची-समझी साज़िश के तहत यह कहर बरपाया था, जिसमें हज़ारों ही निर्दोष सिखों को दिन-दहाड़े बुरी तरह बेरहमी से कत्ल कर दिया गया। उनके घर-द्वार, व्यापारिक केन्द्र तथा अनेक गुरुद्वारा साहिब जला दिए गए। किए गए इस जुल्म संबंधी कोई सबूत नहीं मिल सके इसलिए बड़ी सीमा तक उस समय इसके बारे में विवरण नष्ट कर दिए गए। दिल्ली में पुलिस को यह हिदायत दी गई कि सिखों पर बरपाए जा रहे कहर संबंधी वह मूकदर्शक बनी रहे और यह भी कि इस संबंधी रिपोर्टें न लिखी जाएं। यदि लिखी भी जाएं तो इस तरह की जिनसे तथ्य सामने न आ सकें। परन्तु उसी समय मानवाधिकारों से जुड़ी कुछ संस्थाओं ने तथ्यों के आधार पर ऐसी रिपोर्टें तैयार कीं, जिनमें काफी विवरण थे। यहां तक कि इन रिपोर्टों में कई बड़े-छोटे कांग्रेसी नेताओं के लोगों को हिंसा के लिए भड़काने और कत्लेआम संबंधी साज़िश रचने के बारे में नाम दर्ज किए गए थे। उसके बाद कई सरकारें बनीं। कांग्रेसी सरकारों की बात तो छोड़ें, विरोधी गुटों की सरकारें भी बनीं, जिनके प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर, वी.पी. सिंह, इन्द्र कुमार गुजराल, एच.डी. देवगौड़ा और अटल बिहारी वाजपेयी बने। इस समय के दौरान इन खूनी दंगों की चर्चा तो होती रही। इन प्रधानमंत्रियों ने भी अपने द्वारा लगे इन घावों पर मरहम लगाने के प्रयास किए परन्तु वह प्रभावशाली ढंग से इनके प्रति न्याय दिलाने में असफल रहे। परन्तु इस सब कुछ ने कांग्रेस पार्टी को लगातार कठघरे में खड़ी करके रखा। इसके द्वारा बनाये सिख प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने इन दंगों के लिए माफी भी मांगी परन्तु वह भी दोषियों को सज़ा दिला सकने में बेबस नज़र आते रहे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मई 2014 में सत्ता संभाली। उनके द्वारा 12 फरवरी 2015 को पुन: विशेष जांच टीम का गठन किया गया, जिसने पूरी मेहनत और प्रतिबद्धता से हुए इस दुखद घटनाक्रम संबंधी ऐसे तथ्यों को सामने लाने का प्रयास किया जिनके आधार पर अदालतें अपने दायित्वों का पालन कर सकें, इसके परिणामस्वरूप यह फैसला सामने आया। गत तीन दशकों से अन्य कांग्रेस नेताओं के साथ-साथ सज्जन कुमार का नाम भी प्रमुखता से सामने आता रहा, जो अपने साथियों के साथ मिलकर इन दंगों को भड़काने के लिए ज़िम्मेदार थे। अब दिल्ली उच्च न्यायालय ने सज्जन कुमार को ताउम्र जेल में बंद रखने के साथ-साथ उनके तीन अन्य साथियों की निचली अदालत द्वारा सुनाई गई उम्रकैद को बरकरार रखा तथा दो अन्य अपराधियों की निचली अदालत द्वारा दी गई सज़ा को तीन वर्ष से 10 वर्ष तक बढ़ा दिया। उच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाते हुए इन दंगों को मानव जाति के विरुद्ध अपराध करार देते हुए स्पष्ट रूप में यह कहा है कि इनको भड़काने वालों को राजनीतिक संरक्षण हासिल था। इस कारण लम्बे समय तक न्याय नहीं दिया जा सका, परन्तु अंतत: सच्चाई की जीत होगी और न्याय किया जायेगा। यह फैसला दिल्ली छावनी के राज नगर क्षेत्र में हुए घटनाक्रम में आया है, जिसमें दो परिवारों के पांच लोग मार दिए गए थे। इससे यह उम्मीद बंधनी शुरू हुई है कि आगामी समय में पुन: खोले गए बहुत सारे अन्य केसों में भी अदालत द्वारा न्याय दिया जा सकेगा। इस फैसले ने एक बार फिर उस समय के कांग्रेसी नेताओं और उनकी सरकारों के कुरूप चेहरे को नंगा किया है। यदि आगामी समय में अधिक से अधिक दोषियों को इन घिनौने अपराधों के प्रति दोषी ठहराया जाता है और उनको कड़ी तथा उपयुक्त सज़ाओं के भागीदार बनाया जाता है तो इससे आम व्यक्ति का लोकतंत्र तथा देश की अदालतों पर विश्वास मज़बूत होगा, जो आज बड़े स्तर पर डगमगा चुका है। इस विश्वास की बहाली बेहद ज़रूरी है। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द