चौकीदार की तलाश


देश के सामने आजकल बड़ी समस्या यह पैदा हो गई है कि इसका चौकीदार कौन है? देश में आधी रात को क्या, दिन-दहाड़े ही ‘जागते रहो’ चिल्लाने वालों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि ये चौकीदार ही कहीं आपका जमा जत्था और माल असबाब लेकर चम्पत न हो जाये, डर लग रहा है। इसलिए इन चौकीदारों पर नज़र रखने की चौकीदार रखने पड़ रहे हैं। फिर भी कसमखुदा की कि जब हर चौकीदार दूसरे को चोर और अपने आपको रखवाला बताने लगे तो अनबूझे सवालों के मकड़जाल आपको इसके गिर्द नज़र आने लगते हैं।
देश में चौकीदारों की चौकियां हर जगह सजने लगीं, लेकिन इनके पास अपने साथ हो गई चोरी की रपट लिखाने जाओ, तो यह चौकीदार आपको पकड़ कर वहीं बिठा लेते हैं कि ‘भय्या या तो अपना चोर पकड़ कर लाओ, या अपना चोरी का माल खुद ही उगल दो।’ हमने तो इस पौन सदी की आज़ादी में इस देश को सत्यवादी हरिशचन्द्र की नगरी बना दिया है। रपट किसी नेता के दबाव में हमें लिखवा जाओगे तो हम तुम्हारे बन्धु-बान्धवों को ही पकड़ कर यहां बिठा लेंगे। हमारा चोर दे जाओ, और अपने भाई बन्धु छुड़ा लो।
इस अदला-बदली ने कानून और व्यवस्था की ऐसी-तैसी करके रख दी। दहेज लेना-देना अपराध घोषित हुआ, तो उस पर ‘अपनी बेटी को उपहार’ का नकाब चढ़ा कर दहेज मांगने वाले भद्रजनों की संख्या और बढ़ी। जी नहीं, यह हम नहीं कह रहे। चौकीदारों के रोज़नामचे ने हमें बताया है, जिसमें दहेज की मांग की आग में झुलस कर मरने वाली औरतों की संख्या और बढ़ गई है। अन्धेरे साईं का, अब तो एक और ‘दूल्हा बचाओ आंदोलन भी चल निकला’। पति पीड़क संस्थाओं के धरने राजधानी के जन्तर-मन्तर पर लगे हैं, कि उनसे दुल्हिनें मांगने के नाम पर अमानवीय यातनाएं देकर पतियों और ससुराल वालों को अन्दर करवा रही हैं। अब बताइए हमारा चौकीदार कहां-कहां जुर्म मिटाये। पीड़ित का दु:ख हरने जाओ तो वहां उत्पीड़क रूप बदले बैठा मिलता है। चौकीदार को काम पर लगाया तो वह स्वयं चोरों की मंडली में बैठ कर तमूरा बजाने लगा। इन्हें पकड़ने के लिए केन्द्रीय ब्यूरो बनाया, तो वे एक-दूसरे के साथ सिर-फुटौवल करने लगे, ‘कि तू हमसे बड़ा चोर’। लीजिए इस कहानी की तो तासीर ही बदल गई, साहिब। दो बिल्लियों की लड़ाई में बन्दर उनसे रोटी छीन कर खा गया, कि बन्दरों की लड़ाई में बिल्ली न्यायाधीश बनी।
सब ओर आपाधापी जारी है। जो चोर है वही सबसे ऊंचे स्वर में चिल्लाता है कि उससे बड़ा साधु और कोई नहीं। चौकीदार परेशान है और इन्साफ बांटने वाला पशेमान। अधूरे सत्य बता कर अपने भद्र होने के तगमे बटोरे जा रहे हैं। जब उंगलियां उठाने वाले इसे झूठा सच कह देते हैं, तो बताया जाता है, ‘बन्धु यह झूठा सच नहीं, व्याकरण की गलती है।’ आपको लाख बार समझाया था कि सही ढंग से पढ़ लिख लो। व्याकरण के पोथे बांच लो, ताकि आपके बयानों में भूतकाल और वर्तमान भविष्य के साथ गड्डमड्ड न हो, लेकिन यहां साहिब कौन परवाह करता है? जनता की सेवा करने के लिए भला डिग्री पास करने की क्या ज़रूरत? वहां तो शिक्षण-प्रशिक्षण सीधा-साधा है। वोट बटोरने के दिन आये, तो वोटरों की चिरौरी करते हुए गली-गली छान मारो। चार दिन उनके घर आंगन में जुमलों की चांदनी बरसा दो, बाद में उन्हें अंधेरी रातों की भूल-भुलैया भेंट करनी है। विजयश्री ने नेताओं का वरण कर लिया, वे सत्ता के मीनार या भव्य प्रासाद बन गये। अब तो यह जन्म इन प्रासादों के लेखे लगेगा। ज़िंदगी से रुखसत लेने लेगेंगे, तो सत्ता के इस बुर्ज खलीफा पर अपने वंशज बिठा जायेंगे। सर्वकालिक सत्य है यह कि ‘पिता पर पूत, जात पर घोड़ा। बहुत नहीं तो थोड़ा थोड़ा।’
इसलिए नायक पूजकों का यह देश अपनी प्रवृत्ति अपने विश्वास कैसे बदल दें? रजवाड़ाशाही खत्म हो गई, अब नये व्यावसायिक घरानों ने राजपाट संभाल लिए हैं। वे दिन गये जब अंग्रेज़ के राज्य का इतना विस्तार था कि उसमें सूरज नहीं डूबता था। भौगोलिक उपनिवेशवाद के दिन लद गये, अब व्यावसायिक उपनिवेशवाद आ गया है। देखते ही देखते बड़ी-बड़ी रियासतों का सितारा डूब गया और अब पूरा संसार इनकी मुट्ठी में समा गया। इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की मुट्ठी खुलती है और करोड़ों लोगों की दुनिया जिसे भूख, गरीबी, बीमारी और बेकारी की विरासत मिल गई सिसकती है। दानवाकार स्वचालित मशीनों ने उन्हें लील लिया। अब भला बताइए, ऐसे माहौल में किसको चौकीदार कहें और किसे चोर? जो आपकी मैली-कुचैली टूटी-फूटी बस्तियों के चोर हैं, वही इन भव्य प्रासादों के चौकीदार बन कोर्निश बजाते हैं।
दुनिया तरक्की कर रही है बन्धु। कल का किसान अपना हल बैल छोड़ कबूरतबाजों के टूटे पंखों पर सवार हो दोयम दर्जे की नागरिकता तलाशने सात समन्दर पार चला गया। आपने इस कबूतरबाज को चोर कह नकारना चाहा, तो वह बोला ‘मैंने तो तेरे देश की भूख और गरीबी कम की। देखते नहीं इस देश से पलायन कर गये लोग ही सबसे अधिक पैसा कमा कर वापस इस देश में भिजवा रहे हैं। तो बताइए भला हम मुज़रिम हुए कि इस देश के सबसे बड़े अहलकार।’ सच ही कहा आपने, आजकल चोर कौन है और चौकीदार कौन, कुछ पता नहीं चलता? पाप क्या है, और पुण्य क्या, कुछ पता नहीं चलता? आमीन।