काकोरी केस के शहीदों की स्मृति में विशेषर्  ... जब अश़फाक ने कहा, हमें भी शहीद होने दो !


उत्तर प्रदेश का छोटा सा ज़िला शाहजहांपुर है। इस ज़िले के तीन लाल राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान और ठाकुर रौशन सिंह ने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर अपनी मातृभूमि का कर्ज चुकाया था। बिस्मिल और अशफाक दोनों शाहजहांपुर नगर के थे और उनमें गहरी दोस्ती थी। अशफाक पक्के मुस्लमान थे तो बिस्लिम आर्य समाजी। आर्य समाज के संस्कारों के चलते बिस्मिल मातृवेदी नामक संगठन से जुड़ गए थे। 
वह उर्दू और हिन्दी भाषा खूब जानते थे। शायरी, कविता करने की रुची भी रखते थे। भातृवेदी की गतिविधियों के कारण पुलिस उन पर नज़र रखने लगी थी।
गांधी जी द्वारा संचालित असहयोग आंदोलन की असफलता के कारण देश में हताशा का वातावरण था। युवा अंग्रेज़ों के विरुद्ध कुछ विशेष करने की सोचने लगे थे। ऐसे समय में बिस्लिम ने ‘हिन्दुस्तान प्रजातान्त्रिक संगठन’ नाम से एक क्रांतिकारी संगठन बनाया जिसके साथ चन्द्रशेखर, अशफाक उल्लाह, रौशन सिंह, राजेन्द्र लाहिड़ी, मनमथ गुप्ता व शचीन्द्रनाथ सान्याल जैसे क्रांतिकारी जुड़े थे। इस संगठन के विधान में पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त कर प्रजातंत्र की स्थापना का लक्ष्य दर्ज था। अंग्रेज़ों को यह खुली चुनौती थी। 
अपने क्रांतिकारी कार्यों को अंजाम देने के लिए उन्हें धन की आवश्यकता थी। इसके लिए उन्होंने सरकारी खजाना लूटने की योजना बनाई, जिसके तहत 9 अगस्त, 1925 को योजनाबद्ध तरीके से काकोरी और आलमगीर (लखनऊ) के बीच सरकारी खज़ाना ले जा रही गाड़ी को रोका और खज़ाना लूट कर फरार हो गए। इससे हथियार खरीदे गए। बम आदि बनाने की सामग्री जुटाई गई। उधर अंग्रेज़ प्रशासन ने इस संगठन से निकटता रखने वाले दो गद्दारों बनवारी लाल जो शाहजहांपुर कांग्रेस कमेटी सचिव था और इन्दुभूषण की मुखबिरी पर खजाना लूटने वालों की धर-पकड़ के लिए प्रदेश के कई स्थानों पर छापामारी की और 26 दिसम्बर को कई क्रांतिकारी पकड़े गए। 
उन पर मुकद्दमा चला। बिस्मिल, अशफाक, रौशन सिंह और लाहिड़ी को फांसी की सज़ा हुई। शचीन्द्र नाथ सान्याल को आजीवन काला पानी और मनमथ गुप्ता को 15 साल कैद की सज़ा सुनाई गई। इसके अलावा कुछ अन्य को भी कारावास भेजा गया। 19 दिसम्बर, 1927 को बिस्मिल, अशफाक और रौशन सिंह को फांसी दे दी गई। ये सभी बिस्मिल द्वारा रचित ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है—देखना है ज़ोर कितना बाजू-ए-कातिल में है’ गाते हुए वतन पर शहीद हो गए।