दर्द की दास्तां

बरजिन्दर सिंह हमदर्द
बहुत लम्बी है दर्द की दास्तां। दशकों से इसमें से उठते रहे सेंक में से दिल्ली की उच्च अदालत ने पानी की कुछ बूंदें डाली हैं, जिन्होंने टूट चुकी आशाओं को पुन: बंधाया है तथा राहत का कुछ एहसास पैदा किया है। ’84 के नरसंहार में हज़ारों सिखों के मारे जाने के बाद शासकों के विशेष प्रयत्नों के साथ जहां बहुत कुछ वक्त की गर्त्त में खो गया, वहीं निरंतर की जाने वाली उथल-पुथल में से जो कुछ भी बच रहा था, उसे निकालने का यत्न किया गया। निरंतर आयोगों एवं कमेटियों के गठन, निरंतर कांग्रेसी शासकों के पड़ने वाले दबाव एवं दशकों के सफर ने आशा की डोर को तोड़ दिया था, जिसके जुड़ने की पुन: उम्मीद उभरी है।
इन घातक हमलों में हज़ारों दंगइयों को शामिल किया गया था, जिनमें से अधिकतर आज पूरी तरह गुमनाम हो चुके हैं, परन्तु जिन्होंने नियोजित ढंग से ये कृत्य करवाए थे, उनमें से कुछ नाम अवश्य उभरे हैं। इनसे संबंधित कुछ दर्जन मामले किसी न किसी रूप में अथवा किसी न किसी ढंग से बचे रहे हैं। इनमें से ही एक मामले में कांग्रेस का तीन बार का सांसद रहा बड़ा नेता सज्जन कुमार कानून के शिकंजे में आया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने इन दंगों के दौरान पांच हत्याओं के मामले में सज्जन कुमार सहित चार दोषियों को मृत्यु तक की उम्रकैद की सज़ा सुनाई है। इससे पहले 20 नवम्बर को दंगों से संबद्ध एक भिन्न दोहरे कत्ल के मामले में दिल्ली की पटियाला हाऊस कोर्ट ने यशपाल सिंह नामक एक दोषी को फांसी एवं नरेश सेहरावत को उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी। इन दोनों पर यह आरोप था कि इन्होंने अवतार सिंह एवं हरदेव सिंह नामक दो सिखों की गर्दन में टायर डालकर आग लगाई थी तथा उन्हें घर की छत से नीचे फैंक दिया था। इस मामले का फैसला केन्द्र सरकार की ओर से वर्ष 2015 में बनाई गई एक विशेष जांच टीम के खुलासे के बाद हुआ था। एक अन्य फैसले में हाईकोर्ट ने 88 दोषियों को इन दंगों के संबंध में 5-5 वर्ष की सज़ा बरकरार रखी है।
नवम्बर 1984 में पहले तीन दिनों में दिल्ली तथा देश भर में कांग्रेसी नेताओं की शह पर भीड़ों की ओर से की गई हिंसा की रोंगटे खड़े कर देने वाली अनेक घटनाएं सामने आई थीं। इन्हें पढ़-सुनकर आज भी आंखों में आंसू आ जाते हैं तथा हृदय में सेंक बढ़ने लगता है, परन्तु इन दिनों में सभी लोग दंगई नहीं हो गए थे, अपितु बहुत से ऐसे भी लोग थे, जिन्होंने अपने पड़ोसियों, साथियों एवं बुरी तरह से प्रभावित अन्य लोगों की सहायता करने के लिए पूरी शक्ति लगाई थी। ऐसे संगठन भी उभरकर सामने आए, जिन्होंने निर्भीकता एवं साहस के साथ घटित हुई इन दुखद घटनाओं को लोगों के सामने पेश किया। ऐसे अनेकानेक अन्य भी लोग थे, जो दर्द भीगे लोगों का सहारा बने तथा ऐसे भी लोग थे, जिन्होंने धुआं-से हुए बच गए घटना-जन्य पन्नों को संभालने का यत्न किया।
इतना लम्बा सफर तय करके समूह समाज के सहयोग के साथ यदि राहत की कुछ बूंदें बरसने लगी हैं तो हम इसके लिए इन समूह नागरिकों के अत्यधिक आभारी हैं। हम उन संगठनों एवं संस्थाओं के लिए भी हार्दिक भावनाओं का इज़हार करते हैं, जो प्रत्येक संभव ढंग से पीड़ित एवं प्रभावित हुए परिवारों के साथ खड़े रहे। इसके अतिरिक्त सिख समाज एकजुट होकर इस भावुक साझ के साथ हमेशा जुड़ा रहा। नि:संदेह उपजी ऐसी स्थिति ने देश के कानून के प्रति विश्वास को और मज़बूत करना शुरू किया है। माननीय जज साहिबान की यह टिप्पणी कि 1947 के देश विभाजन के समय जो नरसंहार हुआ था, जिसमें लाखों सिखों, हिन्दुओं एवं मुसलमानों की हत्या कर दी गई थी, के बाद 1984 का सिख नरसंहार व्यापक हिंसा की दूसरी बड़ी घटना था, तो इस दौरान सरकार क्या रह रही थी ? अपराधी इतने दशकों से सज़ा पाने से क्यों बचते रहे तथा यह भी कि हज़ारों सिखों को निर्ममता के साथ मार दिया गया तथा उनके घर नष्ट कर दिए गए। देश के बाकी भागों में भी ऐसा ही कुछ घटित हुआ जो नि:संदेह मनुष्यता के विरुद्ध अपराध था तथा इस नरसंहार को राजनीतिक नेताओं ने अंजाम दिया था तथा इसमें कानून का पालन करवाने वाली एजेंसियों ने भी मदद की थी। हम दिल्ली हाईकोर्ट के माननीय जजों एस. मुरलीधर एवं विनोद कुमार गोयल की प्रशंसा करते हैं, जो टूटते हुए हृदयों के भीतर देश की लोकतांत्रिक प्रणाली के प्रति पुन: विश्वास बहाल करने में सहायक हुए हैं। नि:संदेह घटित हुए इस समूचे घटनाक्रम की तह तक पहुंचकर इसके लिए जिम्मेदार अन्य दोषियों को भी सज़ाएं दिला सकने से ही बन रहा यह विश्वास और मज़बूत होगा।