सचिन तेंदुलकर के 'गुरु' रमाकांत आचरेकर का 87 साल की उम्र में निधन

मुंबई, 2 जनवरी (वार्ता) देश को सचिन तेंदुलकर जैसा महान क्रिकेटर देने वाले कोच रमाकांत आचरेकर का बुधवार को मुंबई में निधन हो गया। वह 87 वर्ष के थे। आचरेकर का जन्म 1932 में हुआ था। उनके निधन से क्रिकेट जगत में शोक की लहर दौड़ गयी है। सचिन ने अपने गुरु के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। आचरेकर को सचिन के करियर को संवारने का श्रेय जाता है। भारत रत्न सचिन के गुरु आचरेकर को क्रिकेट में उनके बेहतरीन योगदान के लिए वर्ष 1990 में द्रोणाचार्य अवार्ड से सम्मानित किया गया था और उसके बाद वह वर्ष 2010 में पद्मश्री से सम्मानित किए गए थे। वर्ष 2010 में ही उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। आचरेकर ने सचिन के अलावा देश को विनोद कांबली, प्रवीण आमरे, समीर दीघे और बलविंदर सिंह संधू जैसे क्रिकेटर दिए। सचिन उनके सबसे बड़े शिष्य निकले जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में इतने कीर्तिमान स्थापित किये कि उन्हें क्रिकेट का भगवान कहा जाने लगा। आचरेकर ने मुंबई के शिवाजी पार्क मैदान पर सैकड़ों युवाओं को क्रिकेट की बारीकियों को सिखाया था और उनका मार्गदर्शन किया था।। वह मुंबई क्रिकेट संघ के चयनकर्ता भी रहे थे। आचरेकर का बतौर खिलाड़ी करियर उतना प्रसिद्ध नहीं रहा लेकिन सचिन के गुरु के रूप में उनका नाम पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हुआ।उन्होंने 1943 में क्रिकेट खेलना शुरू किया था और 1945 में वह न्यू हिंद स्पोट्र््स क्लब के लिए क्लब क्रिकेट खेले। उन्होंने यंग महाराष्ट्र इलेवन, गुल मोहर मिल्स और मुंबई पोर्ट के लिए भी खेला। उन्होंने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के लिए सिर्फ एक प्रथम श्रेणी मैच 1963 में हैदराबाद के खिलाफ खेला था। आचरेकर की निधन खबर मिलते ही क्रिकेट की दुनिया में शोक की लहर फैल गई। मास्टर ब्लास्टर सचिन ने अपने गुरु को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, ‘सर के मेरे जीवन और करियर में योगदान को शब्दों में नहीं समेटा जा सकता। स्वर्ग में क्रिकेट उनकी मौजूदगी से समृद्ध होगा। उनके अनेक शिष्यों की तरह मैंने भी क्रिकेट का ककहरा उन्हीं से सीखा।’ सचिन ने कहा, ‘वेल प्लेड सर, आप जहां भी हैं और सिखाते रहें।’ ‘सर ने मेरे जीवन की आधारशिला रखी और आज मैं जो भी हूं उन्हीं की बदौलत हूं। पिछले महीने ही मैं सर से उनके कुछ शिष्यों के साथ मिला था और उनके साथ समय गुजारा था। हमने पुराने समय को याद करते हुए बेहतरीन समय बिताया था। आचरेकर सर ने हमें क्रिकेट में हमेशा सीधे खेलने और जीवन में सीधे रहने के आदर्श सिखाये थे। मेरा जीवन बनाने के लिए मैं सदैव आपका ऋणी रहूंगा। बहुत बढ़िया खेले सर और आप जहां भी रहें, आप और शिष्य तैयार करें।’ पूर्व भारतीय क्रिकेटर वीवीएस लक्ष्मण और मोहम्मद कैफ ने आचरेकर को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, ‘देश उनका क्रिकेट में योगदान कभी भुला नहीं पायेगा क्योंकि उन्होंने देश को सचिन जैसा हीरा दिया।’ आचरेकर को अपने सभी शिष्यों में सचिन से खास लगाव था। खुद सचिन ने भी अपने गुरु को न केवल अपनी उपलब्धियों से गौरवान्वित किया बल्कि उन्हें जब भी मौका मिलता था वह अपने गुरु के प्रति अपना स्नेह और आदर प्रकट करने उनके पास जाते रहते थे। आचरेकर के जन्मदिन और टीचर्स डे पर सचिन हमेशा उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेते थे। सचिन जब आचरेकर से क्रिकेट सीख रहे थे तब वह सचिन को अपने स्कूटर पर बिठाकर मुंबई में कई अलग-अलग जगहों पर मैच खेलाने ले जाते थे। सचिन के भाई अजीत तेंदुलकर ने ही शिवाजी पार्क में सचिन को आचरेकर से मिलवाया था। सचिन जब अपने शानदार प्रदर्शन से अपने गुरु को प्रभावित करते थे, तो उन्हें अपने गुरु से ईनाम में वड़ा-पाव मिलता था। सचिन ने वेस्ट इंडीज के खिलाफ जब अपना 200वां और अंतिम टेस्ट मैच खेला था तब आचरेकर बीमार होने के बावजूद सचिन का मैच देखने गए थे और उन्होंने पूरा मैच देखा था।क्रिकेट को दिया ‘कोहेनूर’ क्रिकेट में यूं तो कई नामचीन कोच हुए हैं लेकिन रमाकांच आचरेकर सबसे अलग थे जिन्होंने खेल को सचिन तेंदुलकर के रूप में उसका ‘कोहिनूर’ दिया। आचरेकर का बुधवार को मुंबई में 87 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वह क्रिकेट कोचों की उस जमात से ताल्लुक रखते थे जो अब नजर कम ही आती है, जिसने मध्यमवर्गीय परिवारों के लड़कों को सपने देखने की कूवत दी और उन्हें पूरा करने का हुनर सिखाया। अस्सी के दशक में 14 वर्ष के सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट का ककहरा सिखाया। यह आचरेकर का जादू था कि दुनिया जिसके फन का लोहा मानती है, वह क्रिकेटर उनसे एक बार तारीफ करने को कह रहा था।