मानव जीवन के कल्याण हेतु भगवान महावीर के सिद्धांत

भगवान महावीर जितने अधिक सादग्री-प्रिय थे, उतना ही हम अधिक आडम्बर से युक्त हो चुके हैं। महावीर ने जिस संयम के साथ जीवन जिया, यदि उसमें से अंश मात्र भी हम ग्रहण कर सकें तो हमारा जीवन सार्थक हो सकता है। मानव जीवन के कल्याण हेतु भगवान महावीर ने कुछ सिद्धांत दिये। उनमें से कुछ निम्नलिखित अनुसार प्रमुख हैं :— सत्य : भगवान महावीर ने सत्य की परिभाषा देते हुए लिखा है कि ‘सच्च भयवं सच्चं लोय मिसार भूयं’ अर्थात् सत्य ही ईश्वर है। जो तथ्य संसार में कुछ सार लिये हों, या जो कुछ भी घटित हो रहा है, वही सत्य है। अहिंसा : भगवान महावीर ने कहा, किसी प्राणीमात्र को कष्ट देना भी हिंसा की श्रेणी में आता है। प्राणीमात्र में जीव-जंतु यहां तक कि पेड़-पौधों को कष्ट देना भी हिंसा ही है। आचार्य श्री महाप्रज्ञ के अनुसार हिंसा के क्षेत्र में समाज ने इतनी विकृतियां पैदा कर ली हैं कि हम अहिंसा परमो धर्म के अनुयायी कहलाने का अधिकार खोते जा रहे हैं। उनके अनुसार अनजाने में हाथी की हत्या भी एक बार क्षमायोग्य हो सकती है लेकिन संकल्पपूर्वक चींटी की हत्या भी गहन अपराध है। उनके द्वारा अहिंसा चेतना जागरण एवं नैतिक मूल्यों का विकास के लक्ष्य को अहम मानकर निकाली जा रही अहिंसा यात्रा निश्चित तौर पर वंदनीय है। अपरिग्रह : जैन आगमों में भगवान महावीर ने लिखा है कि आवश्यकता से अधिक भौतिक वस्तुओं का हमें त्याग करना चाहिये लेकिन वास्तव में आज हम सुख-सुविधा के भौतिक साधनों के इतने अधिक गुलाम हो चुके हैं कि हमने महावीर के सिद्धांत को दरकिनार कर दिया है। ब्रह्मचर्य : भगवान महावीर ने उपदेश देते हुए कहा है कि संयम: खलु जीवनम् अर्थात् संयम ही जीवन है। उन्होंने कहा है कि एक सीमा से अधिक भोग का त्याग किया जाना चाहिए। अस्तेय : भगवान महावीर के अनुसार बिना आज्ञा से किसी की वस्तु को छूना अथवा उसका उपयोग करना चोरी के अंतर्गत आता है। अस्तेय का अर्थ है चोरी का त्याग। चोर के चोरीकरण में हमारे द्वारा दिया गया सहयोग अथवा सहमति भी चोरी है। दान, क्षमा, शील की प्रतिमूर्ति भगवान महावीर ने मानव जीवन के कल्याण के लिए अनेकांत का सिद्धांत दिया। उनके अनुसार किसी भी तथ्य के प्रति व्यक्ति का दृष्टिकोण व्यापक होना चाहिए, संकुचित नहीं। एक गिलास मेें आधा पानी है। एक दृष्टिकोण से विचार करें तो ऐसा भी कहा जा सकता है कि गिलास आधा भरा है अर्थात् दृष्टिकोण भिन्न-भिन्न हो सकते हैं लेकिन वस्तुत: तथ्य एक है। अत: हमें विवादों में पड़ कर तथ्य को नहीं भूलना चाहिए। भगवान महावीर केवल जैनियों की बपौती नहीं हैं। वह स्वयं एक क्षत्रीय कुल में पैदा हुए थे। उन्होंने प्राणीमात्र के जीवन के  उद्धार के लिए जो नैतिक सिद्धांत प्रतिपादित किये, वे जैन जैनेतर सभी के लिए उपयोगी हैं। इन सभी के अतिरिक्त आज सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम केवल महापुरुषों का गुणानुवाद ही नहीं करें, वरन् उनके चरित्र को हम अपने व्यवहार में आत्मसात करने का प्रयास करें। तभी एक स्वस्थ सुंदर समाज की कल्पना साकार हो सकती है। इन संदर्भ में आचार्य श्री तुलसी की ये पंक्तियां काफी सार्थक हैं कि सुधरे व्यक्ति और समाज से राष्ट्र स्वयं सुधरेगा। अत: आज की समस्त युगीन समस्याओं के समाधान के लिए हमें संस्कारित ही नहीं बल्कि व्यवहारिक भी बनना होगा। (उर्वशी)

— धर्मेन्द्र बम