बेहद पेचीदा है नागरिकता देने का मामला

पिछले दिनों लोकसभा में नागरिकता संशोधन बिल 2019 पास कर दिया गया। अभी इसे कानून बनने के लिए लम्बा सफर तय करना पड़ेगा, क्योंकि यह मामला बहुत पेचीदा है। पिछले कई दशकों से पड़ोसी देशों से लाखों की संख्या में किसी न किसी कारण के दृष्टिगत भारत की सीमाओं के भीतर आते रहे हैं तथा यहीं बस जाते रहे हैं। चाहे यह समस्या पूरे देश में है परन्तु असम में तो इसने बहुत गम्भीर रूप धारण कर रखा है। असमी बोलते लोगों को यह प्रतीत होने लगा  कि शरणार्थियों की इस बाढ़ में उनके अपने लोगों की पहचान ही खो जायेगी। इस मामले को लेकर असम गण परिषद ने बहुत बड़ा एवं तीव्र आंदोलन किया था। 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ परिषद का लिखित समझौता हुआ था, जिसके अनुसार राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर पुन: तैयार करना था तथा इसी आधार पर अवैध ढंग से देश में दाखिल हुए लोगों को अलग करके वापिस भेजना था। इस समझौते के अनुसार 1971 के बाद दाखिल हुए लोगों की पहचान के लिए राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर तैयार किया जाना था, जिसके लिए निरन्तर तैयारी की जा रही थी। प्रदेश में भाजपा के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद सर्वेक्षण करके नागरिकता रजिस्टर तैयार किया गया है। इसके अनुसार अकेले असम में ही 40 लाख से अधिक ऐसे लोग हैं, जो भारतीय नागरिक नहीं हैं। लोकसभा की ओर से पास किए गए नागरिकता संशोधन बिल का मंतव्य बंगलादेश, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान से आए हिन्दू, सिख, इसाई, जैन, बौद्ध एवं फारसी भाईचारे के उन लोगों को नागरिकता प्रदान करने का मार्ग प्रशस्त करना है, जो पिछले 6 वर्षों से यहां रह रहे हैं। उन्हें बिना किसी दस्तावेज़ के भारतीय नागरिकता दी जायेगी। ये वे लोग हैं, जिनके पास भारत के अतिरिक्त कोई अन्य जगह नहीं है तथा इन्हें उन देशों में भारी दबावों के अन्तर्गत भारत आने के लिए विवश होना पड़ा है। इनमें मुस्लिम लोगों को शामिल नहीं किया गया, जिसके कारण भिन्न-भिन्न तरीकों से इस बिल के प्रति तीव्र प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गई हैं। परन्तु इस बिल के अनुसार 8 लाख से अधिक लोगों के लिए भारतीय नागरिक बनने का मार्ग प्रशस्त हो जायेगा। शेष रहते 32 लाख लोगों का क्या करना है, इस संबंध में सरकार के पास कोई स्पष्ट नहीं है। मानवीयता के नाते उन्हें बलपूर्वक देश से निकाला नहीं जा सकता परन्तु असम सहित उत्तर-पूर्वी राज्यों में इस बिल का असम गण परिषद एवं अन्य विरोधी पार्टियों की ओर से तीव्र विरोध हो रहा है। समय-समय पर बहुत से लोग शरणार्थियों के रूप में देश की पूर्वी सीमाओं को पार करके आए थे, तथा इनमें से अधिकतर असम सहित उत्तर-पूर्वी राज्यों में ही बस गए थे। इनमें से अधिकतर बंगाली मूल के लोग हैं। बंगलादेश इन्हें वापिस लेने के लिए किसी भी स्थिति में तैयार नहीं है। इसलिए तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बैनर्जी ने पिछले लम्बे समय से राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को लेकर ये धमकियां भी दी थीं कि इन शरणार्थियों के विरुद्ध किसी भी कार्रवाई से असम में गृहयुद्ध शुरू हो सकता है। नि:संदेह किसी भी सरकार के लिए यह समस्या अत्यधिक पेचीदा बन गई है। इसमें से आसानी से निकल पाना कठिन है। इस बिल के संबंध में कांग्रेस सहित अन्य विरोधी दलों ने अनेक प्रकार की आपत्तियां दर्ज की हैं तथा इसे संसदीय समिति के पास भेजने की मांग की है। इसमें कोई संदेह नहीं कि शरणार्थियों का यह अतीव पेचीदा एवं बड़ा हो गया मामला पूर्ण सोच-विचार एवं गम्भीरता के साथ प्रत्येक दृष्टिकोण को सामने रखते हुए ही हल करना पड़ेगा, परन्तु जो लोग पड़ोसी मुस्लिम देशों में कट्टरपंथियों के दबाव के कारण वह देश छोड़ने के लिए विवश होकर भारत आए हैं, उनका हाथ थामना भी देश की ज़िम्मेदारी है। शेष समस्या का हल पुन: गम्भीर सोच-विचार की मांग करता है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द