हर्ष एवं सद्भावना का त्यौहार लोहड़ी

लोहड़ी शब्द ‘लोही’ से बना है जिसका अभिप्राय: है वर्षा होना, फसलों का फूटना। एक लोकोक्ति है, कि अगर लोहड़ी के मौसम में वर्षा न हो तो कृषि का नुक्सान होता है। परम्परा के गुलशन से ही जन्म लेता है लोहड़ी का त्यौहार। यह त्यौहार मौसम के परिवर्तन, फसलों को बढ़ने तथा कई ऐतिहासिक तथा मिथ्यहासिक दंत कथाओं से जुड़ा हुआ है। मुख्य तौर पर भारत का प्रसिद्ध राज्य पंजाब कृषि प्रधान राज्य है। इसी वजह से किसानों, जमींदारों एवं मज़दूरों की मेहनत का पर्याय है लोहड़ी का त्यौहार। यह त्यौहार हर्ष तथा सद्भावना के साथ सर्दी की अल्हड़ ऋतु की विदायगी को रूपायमान करता है। लोहड़ी समस्त मज़हबों, धर्मों के लिए एकता का प्रतीक तथा संस्कृति का एक भव्य उपहार है। लोहड़ी माघ महीने की संक्रांति से पहली रात को मनाई जाती है। जिस घर में लड़का पैदा हुआ हो, अथवा घर में लड़कों का विवाह हुआ हो, वहां शगुन एवं हर्ष से लोहड़ी मनाई जाती है। बैंड-बाजे बजाए जाते हैं। इस दिन प्रत्येक घर में मुंगफली, रेवड़ियां, चिरवड़े, गच्चक, भुग्गा, तिलचौली, मक्की के भुने दाने, गुड़, फल इत्यादि लोहड़ी बांटने के लिए रखे जाते हैं। गन्ने के रस की खीर बनाई जाती है। दही के साथ इस का स्वाद अपना ही होता है। जिस नवजन्मे बच्चे के लिए लोहड़ी दी जाती है, उसके रिश्तेदार उसके लिए सुन्दर वस्त्र, खिलौने तथा जेवरात इत्यादि बनवा कर लाते हैं. आजकल तो लड़कियों की लोहड़ी भी खुशी एवं उमंग से मनाई जाती है। विकसित परिवारों में लड़की की लोहड़ी का चाव लड़के से कम नहीं करते। रिश्तेदार लड़की को आभूषण एवं सुन्दर वस्त्र देते हैं। इस दिन घर के आंगन, मोहल्लों, बाज़ारों इत्यादि में लकड़ियों के ढेर बना कर या उपलों का ढेर बना कर और उसको अग्नि भेंट कर गर्मी का लुत्फ लिया जाता है। चारों और बिखरी सर्दी तथा रूई की भांति फैली धुंध में अग्नि के सेंक का अपना ही आनंद होता है। इस अग्नि में तिल इत्यादि फैंकते हैं। घरों में समस्त परिवार बैठ कर हर्ष की अभिव्यक्ति के लिए गीत गायन करते हैं। देर रात तक ढोलक की आवाज़, ढोल के फड़कते ताल, गिद्दे, भंगड़े की धमक तथा गीतों की आवाज़ सुनाई देती है। रिश्तों की सुरभि, मोह-ममता तथा प्यार का नज़ारा चारों ओर देखने को मिलता है। एक सम्पूर्ण खुशी का आलम होता है। लोहड़ी  के त्यौहार के साथ जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध डाकू दुल्ला भट्टी ने एक निर्धन ब्राह्मण की दो बेटियों सुन्दरी एवं मुन्दरी को समय के शासक जालिमों से बचा कर उनकी शादी कराई थी तथा शगुन के तौर पर उनकी झोली में शक्कर डाली थी। उन निर्धन बेटियों की शादी कर के पिता के फज़र् निभाए। इस संबंध में एक लोग गीत आज भी प्रचलित है-सुन्दर मुन्दरिये हो, ‘तेरा कौन बेचारा-हो, दुल्ला भट्टी वाला हो, दुल्ले धी ब्याही-हो, सेर शक्कर पाई-हो, कुड़ी दे बोझे पाई हो। कुड़ी दा लाल पटाका-हो, कुड़ी दा शालू  पाटा हो : शालू कौन समेटे-हो, चाचा गाली देसे-हो, चाचे चूरी कुट्टी-हो, जिमींदारां लुट्टी-हो, जिमींदार सदाओ-हो, गिन-गिन पौले लाओ-हो, ‘इक पौला घस गया, जिमींदार वहुटी लै के नस्स गया,’ हो-हो-हो-हो-हो-हो-हो-हो-हो।  लोहड़ी के कई और परम्परावादी गीत भी प्रचलित हैं जैसे लोहड़ी बई लोहड़ी, तेरी जीवे जोड़ी, कलमदान विच कांनी। लड़के-लड़कियां इस दिन घर-घर लोहड़ी मांगते हैं। ग्रुप बना कर लोहड़ी मांगने का अपना ही एक मज़ा होता है। बेशक आज लोहड़ी के गीत अलोप होते जा रहे हैं। इस पर एक लोक गीत है : टांडा नी कुड़ियो टांडा, इस टांडे दे नाल कलीरा, जुग-जुग जीवे नी बीबी तेरा वीरा, इस वीरे दी वेल वदाई, घर चूड़े ते बीढ़े वाली आई, चूड़ा बीढ़ा वज्जे नी, शरीकनियां नूं सद्दो नीं, तेरा निक्का जीवे, वड्डा जीवे, वड्डा ते वडेरा जीवे, दे दे गुड़ दी रोड़ी, जोड़ी जीवे भाइयां दीं। लोहड़ी वाले घर से अगर जल्दी लोहड़ी न मिले तो लड़कियां यह गीत कहती हैं : ‘साडे पैरां हेठ रोड़, सानूं छेती-छेती तोर, साड़े पैरां हेठ परात, सानूं उत्तों पै गई रात।’ लड़का पैदा होने पर लड़कियां व्यंग्य-विनोद में उसके परिवार को इस गीत से संबोधन करती हैं :- गीगा लकड़ी दा शाबा, वे लड़ाका तेरा बाबा, गीगा तत्ता-तत्ता घिओ, वे लड़ाका तेरा पिओ, गीगा गोरी-गोरी गां, वे लड़ाकी तेरी मां। लड़के स्वांग बन कर नाचते गाते हुए भी लोहड़ी मांगते हैं। लोहड़ी के दूसरे दिन माघी का पवित्र त्यौहार मनाया जाता है। माघ माह को शुभ समझा जाता है। इस माह में विवाह शुभ माने जाते हैं। इसी माह में पुण्य दान करना, खास करके लड़कियों की शादी करना शुभ माना जाता है। ठिठुरती सर्दी में रजाई का आनंद, गन्ने का रस, मूली, गाजर इत्यादि खाने का मज़ा भी इसी महीने आता है। चावल की खिचड़ी, सरसों का साग, मक्की की रोटी और मक्खन खाने का जायका भी कमाल का होता है। माघी का मेला अनेक शहरों और खास करके मुक्तसर (पंजाब) में तो बड़े उत्साह से यह त्यौहार मनाया जाता है। सिखों के पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी ने माघ माह की ‘बारह माह बाणी’ में प्रशंसा की है। माघ मंजन संग साधुआं धूढ़ि कर इस्नान। श्री कृष्ण भगवान ने भी गीता के आठवें अध्याय में माघ माह का अति सुन्दर वर्णन किया है :-अग्नि ज्योर्ति शुक्ल, वण्मासा उत्तरायणन।  प्रयाग तीर्थ में महात्मा लोग प्रकल्प करते हैं। लोहड़ी का त्यौहार भारत में ही नहीं, विदेशों में भी धूमधाम से मनाया जाता है।

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