एक खूबसूरत विजय गाथा कुतुब मीनार

इन्सान अपने अस्तित्व को बरकरार रखने के लिए हर सम्भव कोशिश करता है। इससे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह ज़िंदा रहेगा या नहीं। उसकी इसी अनंत लालसा ने दुनिया को कई नायाब तोहफे दिए हैं, जिनमें कुतुब मीनार भी एक है। इस मीनार के निर्माण के साथ कई बातें जुड़ी हुई हैं। इसके संबंध में कई मत मिलते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि इस मीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपनी भारत विजयों को मूर्त-रूप देने के लिए विजय मीनार के रूप में कराया था। कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो मानते थे कि कुतुब मीनार का निर्माण कुव्वतुल-इस्लाम मस्जिद में अजान के समय जनता को बुलाने के लिए किया गया था। एक मान्यता यह भी है कि पृथ्वीराज चौहान ने इस मीनार का निर्माण अपनी बेटी के लिए करवाया था, ताकि वह प्रात:कालीन पूजा-अर्चना के वक्त पवित्र यमुना नदी के दर्शन कर सके। कल्पनाएं कई हैं, मगर हकीकत यही है कि इस मीनार की तामीर, इंसानी ज़िंदगी की जद्दोजहद की बेहतरीन मिसाल है। इतिहास से ज्ञात स्रोतों के अनुसार, इस मीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1206 में करवाया था। उसकी योजना चार मंज़िलों की 225 फुट ऊंची मीनार बनवाने की थी, लेकिन उसकी अचानक हुई मौत ने इस योजना को पूरा नहीं होने दिया। इल्तुतमिश ने अंतत: इसका निर्माण करवाया। नीचे के आकार में 35 फुट घेरे में बनी यह मीनार ऊपर क्रमश: पतली होती गई। इसका सबसे ऊपर का घेरा 9 फुट है। नागरी और फारसी अभिलेखों से लबरेज इस इमारत की सारी लिखावट को अभी तक पूर्ण रूप से पढ़ा नहीं जा सका है लेकिन जितना पढ़ा जा सका है, उसके अनुसार इस इमारत को बिजली गिरने से वर्ष 1326 और वर्ष 1368 में दो बार नुक्सान पहुंचा था। इसे फिरोज़शाह तुगलक और सिकंदर लोधी ने फिर से ठीक कराया था। कुतुब मीनार की प्रथम तीन मंजिलें लाल पत्थर की बनी हैं। इन तीन मंज़िलों की योजना में भी अंतर है। पहली मंज़िल अंतर देते हुए कोणीय तथा गोलाकार लम्बी धारियों सहित, दूसरी की गोलाकार और तीसरी की केवल कोणीय है। इन मंज़िलों के टोड़ों से लटके छज्जे घुमावदार और लहरदार हैं। इस मीनार की इन मंज़िलों पर लेखात्मक सजावटी धारियां, इस मीनार की पत्थरी संवेदना को लयात्मक और भावुक बना देती हैं। ऊपर की शेष दो मंज़िलें गोलाकार हैं तथा इनमें संगमरमर का प्रयोग किया गया है। 72.5 मीटर ऊंची तथा 379 सीढ़ियों वाली यह मीनार दुनिया की सबसे खूबसूरत मीनारों में से एक है। इस दृढ़ और विशाल इमारत के परिसर में अन्य कई दुर्लभ और ऐतिहासिक इमारतें भी हैं। भारत की पहली मस्जिद, कुवत्तुल इस्लाम मस्जिद का निर्माण यहीं करवाया गया था। यह मस्जिद हिंदू-मुस्लिम शैली की प्रथम इमारत है। चूंकि इस मस्जिद के निर्माण में पुराने तराशे गए पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है, इसलिए इसमें स्थापत्य की अनेक शैलियां देखने को मिलती हैं। इस मस्जिद के आंगन में एक लौह स्तम्भ खड़ा है, जो पुरातत्व के अनुसार चौथी सदी का है। इसके संबंध में यह मान्यता है कि यह स्तम्भ वस्तुत: चंद्रगुप्त द्वितीय (गुप्त शासक) का अभिलेख है। दरअसल, किसी प्राचीन सराय की तरह दिखने वाला कुतुब मीनार का यह इलाका वक्त के पन्नों पर इंसानी वजूद की एक खूबसूरत गाथा है। (एजेंसी)

— अखिलेश कुमार