यूरोप ने नये सिरे से बनाया भारत से दोस्ती का रोड मैप 


हाल ही में यूरोपीय संघ ने भारत से संबंधों को लेकर अपनी योजना जारी की है। इससे पहले साल 2004 में भी द्विपक्षीय संबंधों को लेकर यूरोपीय संघ ने भारत के लिए रोड मैप जारी किया था, जिसे आशानुरूप कोई खास सफलता नहीं मिली थी। अब 14 वर्ष बाद फिर से एक रोड मैप रिलीज किया गया है। इसका क्या परिणाम निकलता है, यह तो समय ही बतायेगा, लेकिन इसे जारी करते हुए भारत में यूरोपीय संघ के राजदूत तोमाज कोज्लोवासकी ने कहा, ‘विदेशी संबंधों के क्षेत्र में यूरोपीय संघ के एजेंडा में भारत टॉप पर है... यह स्ट्रेटेजी पेपर जाहिर करता है कि यूरोपीय संघ ने भारत की प्राथमिकताओं को गंभीरता से लिया है। हम साथ मिलकर लम्बी छलांग लगाने के लिए तैयार हैं।’
नये डॉक्यूमेंट में बड़े-बड़े उद्देश्य व्यक्त किये गये हैं और इसमें यूरोपीय संघ व भारत की पार्टनरशिप को मजबूत करने के लिए एक रोड मैप दिया गया है। गौरतलब है कि एक स्पष्ट व ठोस योजना के अभाव में भारत और यूरोपीय संघ की पार्टनरशिप काफी समय से दिशाहीन होती जा रही थी बल्कि बिखर गई थी। नई योजना से मालूम होता है कि भारत को लेकर ब्रूसेल्स की सोच में काफी परिवर्तन आया है और यह मुख्य क्षेत्रों पर फोकस करता है जैसे-विस्तृत सामरिक पार्टनरशिप समझौते को पूर्ण करने की आवश्यकता, अफगानिस्तान व मध्य एशिया पर डायलॉग को तीव्र करने की चाहत करना, आतंकवाद से लड़ने के लिए टेक्निकल सहयोग को मजबूत बनाना और कट्टरता, हिंसक अतिवाद व आतंक फाइनेंसिंग को निरस्त करना। यूरोपीय संघ के दृष्टिकोण से, इनसे भी अधिक महत्वपूर्ण है इस आवश्यकता को मान्यता प्रदान करना कि भारत के साथ रक्षा व सुरक्षा सहयोग को विकसित किया जाये। 
ध्यान रहे कि यूरोपीय संघ अभी तक अपने हार्ड पॉवर टूल्स का प्रयोग करने में संकोच करता रहा है। भारत व यूरोपीय संघ बड़ी संख्या में मूल्यों व लोकतांत्रिक आदर्शों को शेयर करते हैं, लेकिन इसके बावजूद ऐसी पार्टनरशिप विकसित करने में संघर्ष करते रहे हैं जो 21वीं शताब्दी की अंतर्राष्ट्रीय राजनीति व अर्थव्यवस्था को रूप व दिशा दे सके। दोनों एक दूसरे की अज्ञानता, और अक्सर अहंकार, की शिकायतें करते रहते हैं हालांकि दोनों के पास इसके लिए अपनी-अपनी दु:ख भरी दास्तानें हैं।
पिछले एक दशक के दौरान भारत के व्यक्तिगत तौरपर यूरोपीय संघ के देशों से संबंधों में जबरदस्त सुधार आया है, और यूरोपीय संघ का भारत पर फोकस बढ़ा है, लेकिन अब जरूरी हो गया है कि दोनों एक दूसरे के प्रति गंभीर हो जायें। आज के युग में जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ग्लोबल लिबरल आर्डर की धज्जियां उड़ाने पर उतारू हैं, जो यूरोपीयों को बहुत अज़ीज़ है और चीन का उत्थान उन मूल्यों को चुनौती दे रहा है जिन्हें ब्रूसेल्स ग्लोबल स्थिरता के लिए प्रचारित करता है, तो भारत के साथ प्रगाढ़ संबंध प्राकृतिक परिणाम ही होना चाहिये।
पश्चिम के साथ संबंध बनाने में भारत झिझकता रहा है। हाल के वर्षों में नरेंद्र मोदी सरकार ने इस संकोच पर विराम लगाया है। दरअसल नई दिल्ली ब्रूसेल्स के ब्यूरोक्त्रेटिक कवच को भेदने में कठिनाई महसूस करती थी और इस प्रक्रिया में पूरे यूरोपीय संघ को ही नज़रंदाज़ कर दिया जाता था। अक्सर भारत, ब्रूसेल्स से निकलने वाले उच्च नैतिक उपदेश पर भी आपत्ति करता था। हालांकि यूरोपीय संघ के  देश भारत से व्यक्तिगत संबंध बनाने में अधिक व्यवहारिक हो रहे थे, लेकिन ब्रूसेल्स ने बड़े भाई का अड़ियल रुख अपनाये रखा, खासकर राजनीतिक मुद्दों पर और भारत की विदेश व सुरक्षा नीतियों की भू-सामरिक जरूरतों को नज़रंदाज़ करता रहा या उनसे अनजान बना रहा है।
इसका नतीजा था सीमित पार्टनरशिप, जो अधिकतर आर्थिक व व्यापार मामलों तक ही केन्द्रित रही। यूरोपीय संघ भारत का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर व सबसे बड़ा विदेशी निवेशक बन गया, लेकिन इस संबंध में कोई सामरिक कंटेंट नहीं था। शुरू में मोदी सरकार ने भारत व यूरोपीय संघ के बीच द्विपक्षीय वार्ता पर बल दिया, लेकिन इस सिलसिले में कोई ठोस बात आगे न बढ़ सकी। बहरहाल, ब्रैग्जिट के बाद यूरोपीय संघ की अलग राजनीति विकसित हो रही है और भारत यूरेशिया व इंडो-पैसिफि क की बेचैन भू-राजनीति का प्रबंधन करने का प्रयास कर रहा है, तो दोनों (यूरोपीय संघ व भारत) एक दूसरे से संबंध के महत्व को समझ रहे हैं। 
ब्रूसेल्स में नये सिरे से प्रयास है कि वह कुछ असरदार भू-राजनीतिक किरदार के रूप में उभरे और भारत के साथ कई अर्थों में उसकी दोस्ती गहरी हो क्योंकि भारत यूरोपीय संघ का स्वाभाविक पार्टनर है। चीन के विकास और ट्रम्प प्रशासन द्वारा अपने पश्चिमी सहयोगियों को अनदेखा किये जाने से यूरोपीय संघ में बहुत निराशा है। भारत दक्षिण एशिया व हिन्द महासागर क्षेत्रों से आगे देखने का प्रयास कर रहा है और ब्रूसेल्स की मजबूरी है कि वह अपनी सीमाओं से बाहर निकले। इसलिए यह आश्चर्य नहीं है कि यूरोपीय संघ इंटरनेशनल सोलर अलायंस का हिस्सा बन रहा है और उसने भारत को आमंत्रित किया है कि वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के जहाज़ों को सोमालिया तक फूड ट्रांस्पोर्ट करने के लिए एस्कॉर्ट करे। क्षेत्रीय मुद्दों पर दोनों सहयोग कर रहे हैं।
कुल मिलाकर देखा जाए तो नया डॉक्यूमेंट उचित समय पर आया है जब दोनों यूरोपीय संघ व भारत अपनी पार्टनरशिप पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। केवल यह दोहराते रहना कि भारत व यूरोपीय संघ ‘स्वाभाविक साथी’ हैं पर्याप्त नहीं है। डॉक्यूमेंट में जिन क्षेत्रों को रेखांकित किया गया है, जैसे सुरक्षा सहयोग, क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद का विरोध आदि पर फोकस करने की आवश्यकता है। साइबर सुरक्षा, शहरीकरण, पर्यावरण, स्किल डेवल्पमेंट आदि वरीयता क्षेत्रों में भारत को यूरोपीय संघ से संसाधन व एक्सपर्टीज चाहिए।
अब जब यूरोपीय संघ भारत की ओर फोकस कर रहा है तो नई दिल्ली को भी खुले दिल से उसका स्वागत करना चाहिए। पूर्व में भारत को शिकायत थी कि यूरोपीय संघ उसको गंभीरता से नहीं लेता है और वैचारिक मतभेद के बावजूद यूरोपीय संघ चीन से संबंध को अधिक महत्व देता था, परन्तु अब यह सब कुछ बदल सकता है।  -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर