दफ्तर तंत्र की कृपा हो तो सुशासन अन्यथा कुशासन

हमारे देश में एक त्रिवेणी पर शासन का पूरा ढांचा खड़ा माना जाता है जैसे न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका, जो लोग यह मानते हैं उन्हें यह नहीं पता कि एक दफ्तर तंत्र सारे खेल को बिगाड़ने की हिम्मत रखता है। शासन की बुनियाद दफ्तर प्राय: शासन की ज़रूरतों से अलग अपना एक स्वतंत्र तंत्र खड़ा कर लेता है, जिसमें सम्पूर्ण शक्ति हासिल करने की होड़ लगी रहती है। एक फाइल नीचे से ऊपर जाते-जाते प्राय: परेशान हो जाती है। कर्मचारियों में एक जिद्द जन्म ले लेती है, जिससे यह जाहिर करना होता है कि उन मज़री के बगैर शासन-प्रशासन का पत्ता भी नहीं हिल सकता। दफ्तर तंत्र में एक अजीब सी राजनीति अपने पंख फैला लेती है। चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी भी अपनी मौजूदगी का अहसास कराने के लिए ऐसे-ऐसे दावपेंच खेलता है कि साधारण व्यक्ति इनकी तिकड़यों को समझ नहीं पाता। कहा तो यह भी जाता है कि दफ्तर की अपनी एक कार्य पद्धति होती है परन्तु ऊंचे पदों पर बैठे लोग क्या उस कार्य पद्धति के अनुसार चलते हैं?
भारत में 30 राज्य हैं। 20 बड़े और 10 छोटे यदा-कदा उनके राजकाज पर प्रदर्शन रिपोर्ट भी तैयार होती रहती है। जब सन् 2014 में भाजपा नेतृत्व वाली सरकार के प्रधानमंत्री पद पर श्री नरेन्द्र मोदी सुशोभित हुए तब कुछ दिन के पश्चात् उन्होंने कहा कि मीडिया ने यह खबर प्रसारित की कि अब दफ्तरों में पदाधिकारी एवं कर्मचारी समय पर आने लगे हैं। मोदी जी ने इस खबर पर हैरानी प्रकट की कि क्या पहले नहीं आते थे? टी.वी. चैनलों पर इस खबर को चर्चा का विषय बनाकर खूब बहस मुबाहिसा होता रहा। योजनाएं बनती हैं, उन्हें आगे बढ़ाने और लागू करने का दायित्व दफ्तर तंत्र पर होता है। ऊंचे मकसद के रास्ते में कई बार यही दफ्तर तंत्र स्पीड ब्रेकर का काम कर जाता है। गुजरात माडल की बातें जब भी होती हैं, तब एक बात यह ज़रूर कही जाती है कि वहां हर काम के लिए सिंगल विंडो यानि एकल खिड़की ही कार्यरत है। यही कार्यशैली पूरे देश में क्यों नहीं अपनाई जा सकती। कई तरह के तरीके अपनाए गए कि किसी फाइल को अधिक से अधिक तीन दिन में निपटा देना चाहिए, क्या कभी ऐसा हुआ। सुविधा सैंटरों की पैदाईश भी काम में तेज़ी लाने के लिए ही हुई थी। धीरे-धीरे वह भी ‘ढाक के तीन पात’ सिद्ध होने लगे। जब लालू यादव रेल मंत्री बने तब उन्होंने दफ्तर तंत्र में सुधार लाने का प्रयास किया, जिसे रेलवे का ‘लालू-करण’ नाम दिया गया। धीरे-धीरे मिट्टी के कुल्हड़ और गरीब रथ जैसी योजनाओं में सब धुंधला हो गया। सारे इरादे धीरे-धीरे अधर में लटक गए और उसी बेढंगी चाल से दफ्तर तंत्र ने चलना शुरू कर दिया। जनता के पैसों पर उठ रहे संवेदनशील मुद्दों के गम्भीर सवाल हमेशा से उत्तर की तलाश में रहे। क्यों  खड़े हो जाते हैं बीच के लोग जिनको बिचौलिया कहा जाता है। सरकारें बदल गईं परन्तु दफ्तर तंत्र न बदला। हैरानी इस बात पर है कि ऊपर गंगोत्री से तो शुद्ध जल आता है परन्तु नीचे आते-आते गंदला हो जाता है। क्या कोई सरकार इस ओर ध्यान देगी? राजनीतिक दलों की मजबूरियां हैं कि लोकतंत्र में जो भी सरकार आती है उसे अपनी उपलब्धियों का हिसाब-किताब देना होता है, परन्तु एक दफ्तर में बैठा बाबू कभी भी इसके बारे में चिंता नहीं करता क्योंकि राजनेता का भविष्य पांच वर्ष के पश्चात् अनिश्चित हो जाता है। वह दोबारा सत्ता में आ भी सकता है और नहीं भी परन्तु दफ्तर तंत्र में बैठा कर्मचारी पक्की नौकरी पर है। वह जानता है कि बदली सम्भव है परन्तु बदलाव नहीं होगा।  एक ही ढर्रे पर दफ्तर की गाड़ी चलती रहती है। वह नहीं जानना चाहते कि उनकी कार्यशैली और उनका रवैया देश को किस ओर धकेल रहा है। इसमें एक शिकायत राजनेताओं से भी की जाती है जो बने रहते हैं कुछ लोगों के रखवाले। कारण कुछ भी हो दफ्तर तंत्र देश के विकास की गाड़ी को उतनी तेज़ी से चलने नहीं देता जितनी तेज़ी से विधायिका चलाना चाहती है।नई शुरुआत करनी ही होगी जिस तरह प्राइवेट सैक्टर का वर्क कल्चर देखने को मिलता है, वह सरकारी दफ्तरों में क्यों नहीं मिलता। मोदी जी ने एक बार कहा था कि कुछ लोग आधा दिन काम करते हैं आधा दिन गोल्फ खेलने चले जाते हैं। फाइलों के ढेर दफ्तर तंत्र में पड़े धूल चाटते नज़र आते हैं। इसलिए कोई ऐसा विभाग भी होना चाहिए जो कार्यालयों में यह देखे कि कौन-सा काम कितने दिन से लटका है और क्यों लटका है। पुल आधे-अधूरे खड़े हैं, सड़कें आधी-अधूरी बनी हैं।  आपदा की सहायता राशि लेने के लिए कुछ लोग एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर तक क्यों भटक रहे हैं? क्या किसी कार्यालय के बाहर शिकायत पेटी नहीं है, अगर है तो वह दो दिन में ही भर जायेगी। हम मानते हैं कि दफ्तर तंत्र में काम करने की सूझबूझ तो होती है, फिर क्यों ‘लंबित प्रथा’ मौजूद है। राजतंत्र को दफ्तर तंत्र की ओर भी ध्यान देना चाहिए ताकि जिस सुशासन को लाने का प्रयास किया जा रहा है, वह सुगमता से प्राप्त हो जाए।