देश में नई शिक्षा नीति छात्रों पर एक और नया प्रयोग

बच्चों की बुनियादी और हाई स्कूल की शिक्षा कैसी हो? उनको भाषा का कितना ज्ञान दिया जाए? गणित और विज्ञान की बातें कैसे सिखाई-समझाई जाएं? सामाजिकता, आर्थिकता, भौगोलिक और ऐतिहासिकता का बोध करवाने वाले पाठों के साथ तथ्यों और तर्कों को किस तरह से प्रस्तुत किया जाए?  अंग्रेजी, हिंदी और दूसरी क्षेत्रीय भाषाएं कितना ज़रूरी हों? परीक्षा के तनाव को कम करने वाले स्किल डेवल्पमेंट के लिए सिलेबस कैसा हो? पाठ्य पुस्तकें कैसी हों? यहां तक कि नैतिकता और मूल्यबोध के लिए वेद, पुराण, उपनिषद, गीता, दर्शन समेत रामायण, बौध धर्म के त्रिपिटक, सिख धर्म के गुरु ग्रंथ साहिब आदि के पाठ किस स्तर के हाें? इस बावत पिछली सरकारों की तरह राजग सरकार ने भी शिक्षा में बदलाव लाने के लिए नई शिक्षा नीति बनाई है। कुल मिलाकर 1986 से चली आ रही राष्ट्रीय शिक्षा नीति को नए सिरे से बदलने की कोशिश है। हालांकि इसमें 1992 और 2005 में भी कुछ बदलाव किए गए थे। इसके लिए मानव संसाधन मंत्रालय ने करीब डेढ़ साल पहले के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में नौ सदस्यीय कमेटी बनाई थी। उद्देश्य क्षेत्रीय असमानता और शिक्षा के बजारूपन को खत्म करना है। उम्मीद जताई गई है कि देश में अधिकाधिक डॉक्टर, इंजीनियर और वैज्ञानिक पैदा किए जाएं। उनके लिए विश्वस्तरीय शिक्षा की मज़बूत बुनियाद बनाई जाए। कमेटी द्वारा तैयार किए गए मसौदे के अनुसार देशभर में विज्ञान और गणित के सामान्य पाठ्यक्रम की अनुशंसा की गई है। अब इस नीति के अच्छे नतीजे शिक्षा-व्यवस्था, सिलेबस, परिवेश, अभ्यास, परीक्षा-प्रणाली और टीचिंग की कुशलता पर निर्भर करेगा। प्री-नर्सरी से लेकर 12वीं तक की शिक्षा नीति को पांच स्तंभों वाले फार्मूले के तहत बनाया गया है। उनमें उपलब्धता, सामर्थ्य, समानता, गुणवत्ता और जवाबदेही के अर्थ काफी व्यापक हो सकते हैं। इस बारे में सामान्य नागरिकों और बच्चों को समझाना आसान नहीं है।  इसे लागू करने के लिए एक दोष-रहित टाइम टेबल बनाना उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना जरूरी इसे देशभर में बच्चों के बौद्धिक स्तर की पहचान के अनुरूप उसे लागू किया जाना है। इसका कारण यह है कि राज्यों के अपने-अपने बोर्ड और सिलेबस हैं। उनके साथ राष्ट्रीय सिलेबस के साथ नीति पर चलना आसान नहीं होगा। अब रही बात स्कूली बच्चों की, तो उनकी सबसे अधिक जरूरत कोर्स के विषय को आसानी से समझाए जाने और अभ्यास की है। मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के अनुसार नई शिक्षा नीति देश में शिक्षा व्यवस्था को 2020 से लेकर 2040 तक को ध्यान में रखकर तैयार की गई है। गणित और विज्ञान विषयों के लिए पूरे देश में एक समान पाठ्यक्रम रखा जाना है। उसके मुताबिक केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने 10वीं की परीक्षा को लेकर कई बड़े बदलाव किए हैं। इन बदलवाें के तहत अगले साल 2020 से 10वीं में गणित विषय के दो स्तरों की पढ़ाई शुरू की जाएगी। मकसद ‘पढ़ाई का बोझ’ कम करना है। यह माना गया है कि गणित विषय को लेकर विद्यार्थियों पर इसका अतिरिक्त दबाव बना रहता है। इसे देखते हुए ही बोर्ड ने यह निर्णय लिया है। इस बदलाव के तहत अब दसवीं के बच्चों को बेसिक गणित और स्टैंडर्ड गणित की परीक्षा देनी होगी। बेसिक गणित उनके लिए होगा, जो सीनियर सेकेंडरी या उच्चतर स्तर पर गणित नहीं पढ़ना चाहते हैं। यह प्रयोग नया नहीं है। वर्ष 1982 के पहले भी हाई स्कूल स्तर पर मैथेमेटिक्स और एडवांस मैथेमेटिक्स का सिलेबस हुआ करता था। इनका चयन आठवीं में ही कर लिया जाता था। जनरल मैथेमेटिक्स वाले बच्चे अल्लजेबरा, अर्थमेटिक और ज्योमेट्री के कुल 72 में से सीमित प्रमेयों तक की ही पढ़ाई करते थे, जबकि एडवांस मैथेमेटिक्स वाले फि जिक्स में काम आने वाले मैथेमेटिक्स जैसे डयनमिक्स, स्टैटिक्स और ज्योमेट्री के सभी प्रमेयों का अध्ययन करते थे। एडवांस मैथेमेटिक्स से मैट्रिक पास करने वाला कोई बच्चा गणित की पढ़ाई करते हुए विज्ञान के विषयों से भी अवगत हो जाता था। उसके लिए इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कॅरिअर बनने के दरवाजे खुल जाते थे। इसके अतिरिक्त मेडिकल क्षेत्र को चुनने वाले आठवीं में बायोलॉजी और दूसरे सामाजिक क्षेत्र में जाने वाले आर्ट्स के विषयों की पढ़ाई करते रहे हैं। उन्हीं दिनों पूरी दुनिया में डिजिटल टेक्नोलॉजी की बुनियाद रखी जा रही थी। इसी के साथ कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट का आगाज भारत में भी हो चुका था। तब लंबे प्रश्नों के बदले छोटे-छोटे प्रश्नों और उसके अनुरूप पढ़ाई की जरूरत महसूस की गई। गणित पढ़ने वाले बच्चों का परिचय सिर्फ  दो अंकों ‘शून्य’ और ‘एक’ के बाइनरी सिस्टम से हुआ, जो कंप्यूटर की मूल भाषा है। डेटा संचालन को समझने के लिए सेट थ्योरी और लेखा में काम आने वाले स्टैटिस्टिक्स बच्चों को बताया जाने लगा। यह स्किल डेवल्पमेंट और वैश्विक स्तर पर बौद्धिकता विकसित करने में सहायक बनता था। विज्ञान में आगे की पढ़ाई के लिए इसे जरूरी समझा जाता था। कहने का मतलब यह है कि नई नीति के तहत बदले जाने वाले सिलेबस में कुछ नया नहीं है। यदि कुछ नया करना था तो कंप्यूटर के कंप्यूटिंग और इंटरनेट संबंधी कोर्स को सिलेबस में शामिल किया जाना था। इसे अनिवार्य विषयों की श्रेणी में रखा जाना चाहिए था। कंप्यूटर के बेसिक कोर्स में हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर  के माइक्रोसाफ्ट वर्ड, एक्सेल, फोटोशॉप, पेजमेकर, कोरल की पढ़ाई करवाई जानी चाहिए। बदलाव लाने वाले क्षेत्रों के लिए मशीन लर्निंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और इंटरनेट के कोर्स तैयार किए जाने चाहिएं थे। इनसे बच्चों में टेक्निकल मज़बूती आ सकती है और उन्हें आगे की पढ़ाई नौकरी के लिए कोचिंग क्लासेस आदि की जरूरत नहीं पड़ती। यह व्यवस्था 12वीं कक्षा तक होने पर वह खुद को न केवल प्रोफेशनल कोर्स के योग्य समझ सकता है बल्कि प्लेसमेंट के कई दरवाजे भी उसे खुले मिल सकते हैं। ऐसा करने पर ही नई शिक्षा नीति के सकारात्मक नतीजे मिल सकते हैं। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर