दीवान टोडर मल्ल की हवेली का निर्माण अधर में लटका

फतेहगढ़ साहिब, 22 जनवरी (भूषण सूद): फतेहगढ़ साहिब की महान धरती जहां सरबंसदानी श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबज़ादे बाबा ज़ोरावर सिंह व बाबा फतेह सिंह व माता गुजरी जी की लासानी कुर्बानी हुई है वहीं मुगल साम्राज्य द्वारा साहिबज़ादों के संस्कार के लिए जगह नहीं दी थी और प्रांत सरहिंद के वज़ीर खां ने 1704 ई. में संस्कार के लिए सोने की मोहरें खड़ी कर जगह देने की शर्त रखी थी तो दीवान टोडर मल्ल ने उस समय में 78 हज़ार सोने की मोहरें खड़ीं कर अपनी ज़िंदगी की सारी कमाई इस संस्कार के लिए जगह खरीदने के लिए दे दी थी जहां कि आजकल गुरुद्वारा श्री ज्योतिसरूप साहिब सुशोभित है। इस प्रकार दुनिया के इतिहास में यह सबसे महंगी ज़मीन मानी जाती है। दुख की बात है कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा इस जहाज़ी हवेली की सम्भाल के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए जिस कारण इसकी हालत दयनीय बनी हुई है। शिरोमणि कमेटी ने इस हवेली का निर्माण कार्य 2014 में शुरू करवाया था और दूसरे राज्यों से कारीगरों को भी बुलाया था परंतु उनके द्वारा काम अधर में ही छोड़ दिया गया जिस कारण इसका निर्माण कार्य अधर में ही लटकता आ रहा है।
इस संबंधी जब गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब के मैनेजर अमरजीत सिंह के साथ बातचीत की तो उन्होंने बताया कि वर्ष 2008 से पहले इस विरासती हवेली की रूपरेखा पंजाब विरासत चैरीटेबल ट्रस्ट द्वारा सम्भाली गई थी। 29 अप्रैल 2008 में इस विरासती हवेली की रजिस्टरी पंजाब विरासत चैरीटेबल ट्रस्ट द्वारा गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब के नाम करवा दी थी, जिसके बाद इस हवेली का निर्माण कार्य आरम्भ हुआ।  इस संबंधी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के मौजूदा अध्यक्ष भाई गोबिंद सिंह लौंगोवाल के साथ सम्पर्क किया तो उन्होंने बताया कि शिरोमणि कमेटी द्वारा अब तक 70 लाख रुपए के करीब खर्च किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि गुरुघरों की कारसेवा का कार्य बाबा हरबंस सिंह दिल्ली वाले करते हैं जिन्हें यह सेवा का कार्य भी सौंप दिया गया है और उनके द्वारा जल्द ही इस हवेली का कार्य आरम्भ करवा दिया जाएगा।