कोलकाता रैली में विपक्षी एकजुटता के सरोकार  

           
आखिरकार पश्चिम बंगाल की तेज-तर्रार और मुखर मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने प्रमुख विपक्षी दलों और नरेंद्र मोदी से नाराज भाजपाईयों को एक मंच पर लाकर एकजुटता का संदेश व चुनौती राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को दे दी है। यह संदेश उस कांग्रेस को भी है, जो संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की छाया में राहुल गांधी को आगे बढ़ा रही है। लेकिन इस सभा से जो संदेश निकला है, वह यह संकेत देता है कि राहुल को प्रधानमंत्री के रूप में यह महागठबंधन अस्तित्व में आता भी है, तो स्वीकारेगा नहीं ? लिहाजा भाजपा और मोदी विरोध में गठबंधन की कोशिश के बीच अंदरूनी खींचतान भविष्य में बढ़ती दिखाई देगी। तृणमूल की महासभा से यह जो संदेश निकला है, इसके पहले सपा और बसपा का लोकसभा चुनाव के लिए हुआ गठबंधन भी यही संकेत दे चुका है। शायद सोनिया गांधी और राहुल ने इसी वजह से इस सभा से किनारा किया है। इनके गैर-हाजिर रहने की एक वजह यह भी हो सकती है कि जब चार माह पहले कांग्रेस के नेतृत्व में पेट्रलियम उत्पादों में बढ़ती महंगाई के विरुद्ध भारत बंद किया गया था, तब उसमें ममता तो गैर-हाजिर रही हीं, अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल भी अनुपस्थित रहे थे। ममता इस सभा में शायद इसलिए नहीं आईं थीं, क्योंकि कांग्रेस ने इस भारतबंद रैली में वामदलों का भी सहयोग लिया था। सभा में बसपा प्रमुख मायावती की अनुपस्थिति भी रहस्य बनी हुई है। छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को ऐसा ही संदेश मायावती और अजीत जोगी ने दिया था। बावजूद इसके परिणाम कांग्रेस को शुभ रहे और वह स्पष्ट बहुमत लाने में सफ ल रही थीं। हालांकि नेता मल्लिकार्जुन खड़गे कोलकाता की सभा में उपस्थित हुए और उन्होंने यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के संदेश को पढ़कर सुनाया। सभा में भाजपा के यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा और अरुण शौरी की उपस्थिति इस बात का स्पष्ट संकेत है कि भाजपा में असंतोष फ ूट रहा है।    
22 विपक्षी दल और 44 प्रमुख विपक्षी नेताओं ने इस सभा में प्रमुख रूप से मोदी सरकार को जड़ से उखाड़ फेंकने का शंखनाद किया। कश्मीर से कन्याकुमारी तक के मंच पर मौजूद नेताओं ने विपक्षी एकजुटता को समय की मांग की जरूरत बताते हुए एक सुर में भाजपा राजग सरकार को सत्ता से बेदखल करने की हुंकार भरी। इस यूनाईटेड इंडिया नाम से सुशोभित सभा में ममता ने मौजूदा केंद्र सरकार को एक्सपाइरी डेट सरकार की संज्ञा दी। वहीं सोनिया गांधी के संदेश में कहा गया कि दलों में मतभेद भले रहें, लेकिन मनभेद नहीं होना चाहिएं। राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने प्रधानमंत्री पद को लेकर कोई विवाद नहीं होने का अश्वासन दिया। इसी मत का समर्थन अखिलेश यादव ने किया। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने मोदी को प्रचार तंत्र के सहारे वजूद बनाए रखने वाला प्रधानमंत्री बताया। वहीं अरविंद केजरीवाल ने मोदी-शाह की जोड़ी को देश के लिए बड़ा खतरा बताया। बसपा की नुमाइंदगी सतीष चंद्र मिश्र ने की। भाजपा के यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा और अरुण शौरी ने मोदी को नोटबंदी, जीएसटी और राफेल विमान खरीद के मुद्दों को लेकर घेरा। शत्रुघ्न ने तो यहां तक कह डाला कि राफेल पर जब तक प्रधानमंत्री जवाब नहीं देगे, तब तक उन्हें चौकीदार चोर है, सुनते रहना पड़ेगा। कोलकाता में जब यह रैली समाप्त हुई तब केंद्र शासित प्रदेश दादरानगर हवेली की राजधानी सिलवासा में मोदी ने इस महागठबंधन पर पलटवार करते हुए कहा कि ‘यह ऐसे लोगों का गठजोड़ है, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ  उठाए उनके कड़े नीतिगत उपायों से नाराज हैं। क्योंकि उन्हें जनता का पैसा लूटने से रोक दिया गया है। लिहाजा यह गठबंधन मोदी के खिलाफ  नहीं बल्कि देश की जनता के खिलाफ  है।    
बहरहाल ममता की यह एकजुटता कांग्रेस को यह दिखाने में असफ ल रही कि उनकी देशव्यापी स्वीकार्यता राहुल से कहीं ज्यादा है। उत्तर प्रदेश में जिस तरह से सपा-बसपा ने कांग्रेस को अंगूठा दिखाकर परस्पर सीटों का बंटवारा कर लिया, कमोबेश उसी स्थिति का सामना कांग्रेस को पश्चिम बंगाल में भी करना पड़े ? ऐसे में कांग्रेस वामदलों के साथ बंगाल में समझौता कर ले? ऐसा हुआ तो कांग्रेस महागठबंधन से अलग-थलग भी पड़ सकती है। क्योंकि ममता बनर्जी और वामदलों के बीच 36 का आंकड़ा है। ममता जैसी रैली ही मायावती और अखिलेश उत्तर प्रदेश में करना चाहते हैं। दरअसल यहां अजीत सिंह के राष्ट्रीय लोकदल को सपा-बसपा गठबंधन में शामिल कर मायावती ने यह संदेश भी दिया है कि वे अकेली ऐसी नेता हैं, जिनकी देहरी पर सभी नेता आने को मजबूर होते हैं, जबकि वे किसी नेता की दहलीज पर नहीं जाती। इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि ममता की तृणमूल की तुलना में कम ही सही बहुजन समाज पार्टी का जनाधार होने के साथ मज़बूत वोट बैंक भी है। लिहाजा उत्तर प्रदेश के बाहर मायावती हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड में अपने सहयोगी दलों को मदद पहुंचा सकती हैं। हालांकि अभी यह तय होना है कि उत्तर प्रदेश की संभावित एकजुटता में अखिलेश और मायावती खिला पाते हैं। 
राजग गठबंधन में इस समय छोटे-बड़े करीब 40 दल शामिल हैं। लेकिन भाजपा स्पष्ट बहुमत में है, शायद इसलिए इनकी परवाह से वह बेफिक्र है। किंतु तीन बड़े राज्यों में सत्ता खोने और उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन के बाद उसे भविष्य के प्रति सचेत रहने की जरूरत है। क्योंकि अब राहुल गांधी परिपक्व हो गए हैं। क्षेत्रीय क्षत्रप भाजपा को रोकने के लिए महागठबंधन को बजूद में लाने की तैयारी में हैं। द्रमुक नेता एमके स्टालिन ने चेन्नई में करुणानिधि की मूर्ति के अनावरण के अवसर पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार जताकर यह संदेश दे दिया है कि कुछ क्षेत्रीय दलों के प्रमुख राहुल के नेतृत्व को स्वीकार कर लेंगे। हालांकि भाजपा के नेतृत्व वाले राजग के विरुद्ध चुनौती के रूप में अपने संकीर्ण हो चुके आकार को फैला रही कांग्रेस जल्दबाजी में नहीं दिख रही है। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि ममता बनर्जी, मायावती, नवीन पटनायक और अखिलेश यादव का रुख अभी राहुल का नेतृत्व स्वीकारने के प्रति स्पष्ट नहीं है। 
इधर तमिलनाडु में भाजपा अस्थिर मानसिकता से काम ले रही है। एआईएडीएमके से गठबंधन करने के मामले में वह असमंजस में है। क्योंकि यहां वह फिल्म अभिनेता रजनीकांत को प्रोत्साहित कर तमिलनाडु के छोटे-छोटे दलों के एका में लगी है। करुणानिधि का परिवार गृह-कलह में उलझा है, इसलिए भाजपा को उम्मीद है कि रजनीकांत एआईएडीमके का विकल्प बन सकते हैं। यह संभावना परवान चढ़ती दिख भी सकती है। तेलंगाना में पराजय के बाद भाजपा केसीआर पर डोरे डाल रही है, लेकिन उसके बड़े नेता अंटे में आ नहीं रहे है। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को भी भाजपा राजग की छत्रछाया में लाना चाहती है, किंतु दाल नहीं गल पा रही हैं। ममता और मायावती किस गठबंधन का हिस्सा बनती हैं, यह अंदाजा लगाना, फि लहाल दूर की कौड़ी है। ममता और मायावती जिस तरह से कांग्रेस को अलग-थलग रखते हुए विपक्षी दलों की एकजुटता के प्रयास में लगी हैं, उससे लगता है दोनों में ही प्रधानमंत्री बनने की लालसा अंगड़ाई ले रही है, जो मोदी और राहुल दोनों को ही चुनौती बन सकती है। 
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