टेनिस के नये नियम- भारत पर आखिर क्या प्रभाव होगा ?


पहली जनवरी 2019 से टेनिस में जो नई प्रतिस्पर्धात्मक संरचना लागू हुई है, उससे कम से कम निचले स्तर पर टेनिस पहले जैसा नहीं रहेगा। हालांकि इसका प्रभाव इलीट लेवल पर भी पड़ेगा। इंटरनेशनल टेनिस फैडरेशन (आईटीएफ) ने टेनिस में सुधार के लिए पांच वर्ष पहले प्लेयर पाथवे स्टडी कमीशन बनाया था, जिसकी सिफारिशों को अब स्वीकार कर लिया गया है। इस परिवर्तन पर टेनिस समुदाय का ध्रुवीकरण हो गया है। क्यों? और इसका भारतीय टेनिस पर क्या प्रभाव पड़ेगा? उत्तर से पहले यह जानना आवश्यक है कि बदलाव क्या आये हैं?
    अब तक दोनों पुरुष व महिला टेनिस में सबसे निचला टियर प्रो सर्किट डॉलर 15के था, जिसकी जगह अब वर्ल्ड टेनिस टूर 15स (15,000 डॉलर प्राइज मनी) ले लेगा। इसमें एटीपी व डब्ल्यूटीए रैंकिंग पॉइंट्स नहीं मिलेंगे बल्कि आईटीएफ वर्ल्ड टेनिस रैंकिंग पॉइंट्स मिलेंगे। इस प्रकार आईटीएफ  रैंकिंग प्राप्त करने पर उच्च प्रतियोगिताओं (25स व ऊपर) में हिस्सा लिया जा सकता है। पुरुषों के लिए 25स प्रतियोगिताएं दोनों एटीपी रैंकिंग पॉइंट्स (सेमीफाइनल व उससे आगे) और आईटीएफ पॉइंट्स (सभी चक्र) दिला सकेंगी। साल 2020 से यह केवल आईटीएफ पॉइंट्स तक सीमित हो जायेगा। 
महिलाओं के लिए 25स व उससे ऊपर की प्रतियोगिताएं एक्सक्लूसिव डब्ल्यूटीए पॉइंट्स ऑफर करेंगी। नतीजतन अनेक खिलाड़ियों के पास दोनों प्रोफेशनल रैंकिंग व आईटीएफ  रैंकिंग होंगी। साथ ही 15स प्रतियोगिताओं में पांच स्थान टॉप 100 में उच्च रैंक प्राप्त जूनियर्स के लिए आरक्षित रहेंगी। आईटीएफ के अनुसार, प्रतिभाशाली युवा अपने करियर में जल्द उच्च स्तर टेनिस का हिस्सा बन सकेंगे। आईटीएफ  तीन महत्वपूर्ण कारणों से इन परिवर्तनों को आवश्यक मानता है। एक, जूनियर खिलाड़ियों को सीनियर टूर का हिस्सा बनने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा था। 
नई संरचना जूनियर टेनिस को बेहतर अंदाज में प्रोफैशनल खेल से लिंक कर देगी। दो, आईटीएफ के अपने शोध के अनुसार, 14,000 ‘प्रोफैशनल’ खिलाड़ियों में से मात्र 600 ही अपना खर्च निकाल पाते हैं। नतीजतन कुछ खिलाड़ी जल्द पैसा कमाने के चक्कर में अवैध तरीके अपनाने लगते हैं। नई संरचना में प्राइज मनी का सही वितरण होगा और अधिक खिलाड़ी अपनी जीविका अर्जित कर सकेंगे। और अंतिम यह कि नई प्रतियोगिताएं क्वालीफाइंग राऊंड सहित सात दिन में पूर्ण हो जायेंगी, जिससे अधिक देश उनका आयोजन कर सकेंगे और इस तरह ज्यादा खिलाड़ियों को अवसर मिलेंगे।
लेकिन रैंकिंग स्पॉट्स में कमी किये जाने पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं हुई हैं। अनुमान यह है कि एटीपी व डब्ल्यूटीए रैंकिंग वाले प्रोफैशनल खिलाड़ियों की संख्या लगभग 3000 से घटकर 750 पुरुष व 750 महिला रह जायेगी। यह संभव है कि इस सूची में भारत के 20 से अधिक खिलाड़ी न हों। तमिलनाडु टेनिस एसोसिएशन के उपाध्यक्ष कार्ति चिदम्बरम के अनुसार, यह सही दिशा में उठाया गया कदम है। जिनके पास एटीपी पॉइंट्स हैं, उनकी संख्या कम होनी चाहिए। एटीपी पॉइंट्स अर्जित करना गौरव की बात होनी चाहिए। यह ठीक नहीं है कि जिसके पास एक पॉइंट है वह भी अपने को वर्ल्ड-रैंक्ड समझे।  लेकिन दूसरों का मानना है कि यह टेनिस की यूएसपी को ही समाप्त कर देगा। 
वास्तव में टेनिस व्यक्तिगत स्पोर्ट्स है, जिसमें प्रवेश में रुकावटें बहुत कम हैं, जिससे बच्चे बड़े सपने देख सकते हैं। साथ ही यह थ्योरी भी है कि निचले स्तर पर टेनिस जानबूझकर कम आकर्षक है और बाजार स्वत: ही उन्हें निकाल देता है जो अगले पायदान पर नहीं चढ़ सकते। जब निचले स्तर पर प्राइज मनी पूल तक पहुंच न के बराबर है तो आईटीएफ  को ऐसा फैसला नहीं करना चाहिए था। इस परिवर्तन का तुरंत प्रभाव यह हुआ है कि प्रतियोगिताओं की संख्या कम हो गई है। 2019 के पहले तीन माह में पुरुष प्रतियोगिताएं 114 की जगह 69 होंगी यानी 40 प्रतिशत कम। 
साल 2018 के पहले तीन माह में भारत ने एक डॉलर 25के (महिला) और पांच डॉलर 15के की प्रतियोगिताएं आयोजित की थीं। अब 2019 में सिर्फ महिलाओं का 25स ही शेष है। अखिल भारतीय टेनिस संघ के महासचिव हिरोंमोय चटर्जी यह नई वर्ल्ड टेनिस टूर प्रतियोगिताएं पैसे की बर्बादी हैं। इनसे हमारे खिलाड़ी अपनी एटीपी रैंकिंग सुरक्षित नहीं रख सकते। इसलिए संघ ने लिखित में इन प्रस्तावों का विरोध किया था। ज्ञात रहे कि संघ के प्रमुख अनिल खन्ना आईटीएफ के 13 बोर्ड ऑफ  डायरेक्टर्स में शामिल हैं। भारत की नंबर एक खिलाड़ी, जिनकी विश्व रैंकिंग 195 पर नये नियमों का कोई प्रभाव नहीं होगा, लेकिन बाकी खिलाड़ियों की तस्वीर दो तीन माह में साफ  होगी। लेकिन इतना तय है कि जूनियर्स के लिए रास्ता एकदम स्पष्ट है, उनका परिचय प्रोफेशनल स्तर से जल्द हो जायेगा। 
यह सिस्टम अगर पहले होता तो यूकी भाम्बरी को काफी लाभ होता। 2009 में जूनियर ऑस्ट्रेलियन ओपन की सफलता के बाद उन्हें तीन चार वर्ष बर्बाद करने पड़े फ्यूचर्स खेलते हुए और उसके बाद ही उन्हें चैलेंजर्स में अवसर मिला था। वैसे पहले धोखे से भी आगे बढ़ने का अवसर मिल जाता था, लेकिन अब खिलाड़ी को आगे बढ़ने के लिए अपने स्तर पर ही खेलना पड़ेगा। ऐसा भारत के पुरुष वर्ग में नंबर 1 खिलाड़ी प्रजनेश गुनेस्वरण का कहना है। लेकिन विश्व में 878 रैंकिंग के खिलाड़ी सूरज प्रबोध के लिए स्थिति अस्पष्ट है। यह 23 वर्षीय खिलाड़ी पिछले वर्ष अप्रैल में एक डॉलर 25के प्रतियोगिता में सेमीफाइनल में पहुंचा और फिर भी एक पॉइंट ही अर्जित कर सका था।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर