मूल्यांकन

जार्ज बर्नार्ड शॉ को एक दिन किसी बहन ने भोजन पर आमंत्रित किया। शॉ उस दिन बहुत व्यस्त थे, पर महिला नहीं मानी। शॉ लाचार हो गए। वह सचमुच बहुत ही व्यस्त थे, यहां तक कि उन्हें कपड़े बदलने का भी समय नहीं मिला। जो सामान्य कपड़े पहने थे, उन्हीं को पहने उन बहन के घर आ गए। महिला उन्हें देखकर बहुत खुश हुई, ज्यों ही उनके कपड़ों पर निगाह गई वह बड़ी क्षुब्ध हो उठीं। उन्होंने शॉ से कहा,‘ आप ऐसे कपड़े पहनकर क्यों आए हैं?’शॉ ने कहा, ‘मुझे कपड़े बदलने का समय ही नहीं मिला। आपके यहां ठीक वक्त पर जो पहुंचना था।’ महिला ने कहा, ‘नहीं-नहीं आप मोटर लेकर जाइए और कपड़े बदल आइए।’ विवश होकर शॉ ने उनकी बात मान ली। वह गाड़ी लेकर गए और सबसे अच्छे कपड़े पहनकर आ गए। उसके बाद उन्होंने वह किया जिसे देख कर पार्टी से लोग चकित रह गए। उन्होंने खाना लिया और कपड़ों पर पोतने लगे। लोगों ने कहा, ‘शॉ साहब, यह क्या कर रहे हैं, आप?’ शॉ गंभीर होकर बोले, ‘मैं वही कर रहा हूं, जो मुझे करना चाहिए। आज का खाना इन्हीं कपड़ों की बदौलत मेरे सामने आया है।’ उनके यह कहते ही पार्टी में सन्नाटा छा गया। मारे लज्जा के निमंत्रण देने वाली बहन का सिर झुक गया। उन्होंने समझ लिया कि व्यक्ति का मूल्यांकन उसकी प्रतिभा से होता है, कपड़ों से नहीं।

-धर्मपाल डोगरा ‘मिन्टू’