उच्चकोटि के विद्वान व नेता थे डॉ. राजेन्द्र प्रसाद

देशभक्त डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म 3 दिसम्बर सन् 1884 को बिहार में सारन ज़िले के जीरादेई नामक गांव में हुआ। उनके पिता श्री महादेव सहाय थे। प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के स्वामी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जिन्हें बाद में लोगों ने स्नेहवश ‘राजेन बाबू’ कहकर भी पुकारा, एक होनहार छात्र थे। बालक राजेन्द्र प्रसाद ने जब गांव की आरंभिक शिक्षा खत्म कर ली तो उनके अभिभावकों ने अंग्रेज़ी पढ़ने के लिए उन्हें छपरा भेजा। महात्मा गांधी जी से डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की भेंट लखनऊ में हुई। चंपारण में आंदोलन के दौरान उन्होंने गांधी जी का खूब साथ दिया। 1920 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन को बिहार में आगे बढ़ाया। शिक्षा तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। ब्रिटिश और सरकारी शिक्षा संस्थानों के बहिष्कार के चलते छात्रों के हितार्थ उन्होंने बिहार में ‘बिहार विद्यापीठ’ नामक राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना की। इसमें दो हज़ार छात्रों ने पढ़ाई की। उनके पुत्र भी इसी संस्थान में पढ़े। सन् 1929 से भारत की राष्ट्रीयता में एक नया मोड़ आया, जिसने जनता के मन में प्रचंड हलचल मचा दी। सन् 1930 से सन् 1934 तक सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया गया। बिहार में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने लाखों कठिनाइयों के बावजूद इस आंदोलन का नेतृत्व अडिग संकल्प और पूरे साहस के साथ किया। सन् 1934 में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। 26 जनवरी सन् 1950 को श्री राजेन्द्र प्रसाद ने भारतीय गणराज्य के राष्ट्रपति पद की शपथ ली और इसके तुरंत बाद उन्होंने कहा ‘हमारे गणराज्य का उद्देश्य है-इसके नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता और समता प्राप्त करना।’ डॉ. राजेन्द्र प्रसाद हमेशा आडम्बर और तड़क-भड़क से ऊपर रहे। सर्वोच्च पद पर पहुंच कर भी भोजन और वस्त्रों के बारे में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के पुराने और कम खर्ची के अभ्यास में कोई भी फर्क नहीं पड़ा। मनुष्य मात्र से स्वाभाविक प्रेम होने के कारण उन्होंने उच्च पद के सुयोगों को जनसाधारण की सच्ची सेवा में लगाया और जब भी कभी किसी ने उनसे मिलना चाहा, तो उन्होंने हमेशा समुचित शिष्टाचार के साथ अपना दरवाज़ा खुला रखा। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का व्यक्तित्व एक आदर्श व्यक्ति के उत्कृष्ट गुणों का समुच्चय है, वे उच्चकोटि के विद्वान व उच्चकोटि के नेता थे। एक निडर देश भक्त थे जो देश के स्वतंत्रता-संग्राम में हमेशा आगे रहे। गरीबों के विश्वस्त मित्र थे। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भारतीय संस्कृति के सच्चे प्रतिनिधि थे। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद महात्मा गांधी जी के घनिष्ठ सहयोगियों में से थे। 28 फरवरी सन् 1963 को सदाकत आश्रम (पटना) में इनका स्वर्गवास हो गया।

-धर्मपाल डोगरा ‘मिन्टू’